नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की रिसर्च टीम ने एक नई उपलब्धि अपने नाम की है. डीयू की रसायन विज्ञान विभाग की शोध करने वाली टीम ने एक अणु विकसित किया है, जिसमें पार्किंसंस रोग का इलाज करने की क्षमता है. ऐसे में अब दिमाग की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए एक आशा की किरण दिखाई दी है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो बहुत जल्द दिमाग की जटिल बीमारियों में शामिल पार्किंसन रोग का इलाज भी हो सकेगा.
क्या कहते हैं प्रोफेसर: डीयू के केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर दीवान एस. रावत ने बताया कि उन्होंने मैक्लीन अस्पताल के प्रोफेसर के साथ एक सहयोगी अनुसंधान कार्यक्रम 2012 में शुरू किया था. जिसे 2014 में पेटेंट करवाया गया था. तब से जानवरों पर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि रिसर्च टीम द्वारा विकसित डोपामाइन न्यूरॉन की मृत्यु को रोकता है.
प्रोफेसर रावत ने बताया कि डोपामाइन का न्यूरॉन पर उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है. बाद के अध्ययन इस बात कि पुष्टि करता हैं कि यह न केवल डोपामाइन न्यूरॉन की मृत्यु को रोकता है, बल्कि यह अल्फा सिन्यक्लिन प्रोटीन के एकत्रीकरण को भी रोकता है. अणु भी ऑटोफैगी को प्रेरित करता है. ये अध्ययन चूहों के मॉडल पर किए गए थे. ये सभी अध्ययन पुष्टि करता हैं कि पार्किंसंस रोग के उपचार संभव हैं. दवा के रूप में विकसित किए जाने के लिए इस काम में वोस्टन स्थित फार्मा उद्योग मानव नैदानिक परीक्षण करेगा. इस सहयोगी कार्य को एक शीर्ष अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन द्वारा स्वीकार किया गया है.
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जानिए पार्किंसंस रोग क्या है?: पार्किंसंस रोग मस्तिष्क के हिस्से में तंत्रिका कोशिकाओं के नुकसान के कारण होता है, जिसे थायरिया कहा जाता है. ये कोशिकाएं डोपामाइन उत्पादन को नियंत्रित करती है. डोपामाइन शरीर में गति को नियंत्रित करने में मदद करता है, लेकिन जब कोशिकाएं खराब होती हैं, तब डोपामाइन का काम उत्पादन होता है. गौरतलब है कि पार्किंसंस रोग के लिए अभी कोई इलाज नहीं है. पार्किंसंस के मुख्य लक्षणों में मस्तिष्क की संवाद करने की क्षमता क्षीण होती है. आज तक पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए कोई दवा नहीं है. केवल एल-डोपा और इसके डेरिवेटिव रोग के प्रबंधन के लिए दिए जाते हैं.
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