देहरादून: देवभूमि के लिए आज का दिन बेहद खास रहा. सोमवार को भगवान शिव के अलग-अलग केदारों के कपाट भी खोले गए. सोमवार सुबह भगवान केदारनाथ के कपाट खोले गए. इसके साथ ही ब्रह्ममुहूर्त में रुद्रनाथ और तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाट भी 17 मई को विधि-विधान के साथ खोल दिए गए.
चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के कपाट विधि विधान से पूजा कर ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए हैं. पुजारी रिंकू तिवारी ने सुबह 5 बजे वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ 6 माह के लिए भगवान रुद्रनाथ मंदिर के कपाट खोले.
बता दें इससे पहले तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली अंतिम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंची थी. सोमवार सुबह भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली को चोपता से तुंगनाथ धाम लाया गया. जिसके बाद तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाट खोले गए. डोली के धाम पहुंचने के बाद ग्रीष्मकाल के लिए तुंगनाथ के कपाट विधि-विधान से खोल दिए गए.
इससे पहले रविवार को भूतनाथ मंदिर में आचार्यों ने पंचाग पूजन के तहत ब्रह्म बेला पर भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना की. 10 बजे भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली ने धाम के लिए प्रस्थान किया. डोली के पाबजगपुड़ा गांव पहुंचने के बाद भक्तों ने अर्ध्य देकर डोली को कैलाश के लिए विदा किया था.
तुंगनाथ दिव्य स्थान जहां बसते हैं शिव और राम
तुंगनाथ एक ऐसा दिव्य स्थान है जहां शिव और राम दोनों की कृपा बरसती है. देवों के देव महादेव के पंच केदारों में से एक तुंगनाथ अन्य केदारों की तुलना विशेष महत्ता इसलिए रखता है, क्योंकि यहां रामचंद्र ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे.
पांडवों ने बनाया तुंगनाथ का मंदिर
कहा जाता है कि पांडवों ने तुंगनाथ मंदिर की स्थापना की थी. पंचकेदारों में यह मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है. तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है. मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है और चोपता से तीन किलोमीटर दूर स्थित है
ब्रह्ममुहूर्त में खुलेंगे रुद्रनाथ के कपाट
केदारनाथ, तुंगनाथ के साथ ही सोमवार को रुद्रनाथ के कपाट भी खोले गए. सोमवार सुबह ब्रह्ममुहूर्त में रुद्रनाथ मंदिर के कपाट खुल गए. कोविड के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए पिछले साल की तरह इस बार भी 20 भक्तों को ही रुद्रनाथ मंदिर तक जाने की अनुमति दी गई थी. रुद्रनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तगण लगभग 24 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करते हैं. रुद्रनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तगण पुंग, ल्वींठी, पनार और पित्रधार जैसे सुरम्य बुग्यालों से होकर गुजरते हैं.
बता दें इससे पहले रविवार को गोपीनाथ मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद रुद्रनाथ की डोली पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ धाम के लिए रवाना किया गया. इस बार रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना का जिम्मा पंडित धर्मेंद्र तिवारी को सौंपा गया. अब ग्रीष्मकाल में 5 माह तक भगवान भोलेनाथ कैलाश में विराजमान रहेंगे. 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर में भोलेनाथ के मुख के दर्शन होते हैं. मंडल घाटी में प्रवेश करने पर गंगोलगांव, सगर, ग्वाड़ गांव के ग्रामीणों ने डोली का फूल-मालाओं से स्वागत किया.
यहां भगवान शिव के मुख के होते हैं दर्शन
रुद्रनाथ पंच केदारों में से एक है. पंचकेदार यानी पांच केदार पांच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है. ये मंदिर उत्तराखंड में स्थित है. इन मंदिरों से जुड़ी कुछ मान्यताएं भी हैं. कहा जाता है कि है इनका निर्माण पांडवों ने किया था. रुद्रनाथ धाम चमोली जिले में समुद्रतल से 11808 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं.
आस्था पर कोरोना का साया
कोरोना संक्रमण के कारण चारधाम यात्रा को स्थगित किया गया है. जिसके कारण बाबा केदार के इन धामों में भी श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति नहीं दी गई है. मंदिर में सीमित संख्या में ही भक्तों के जाने की अनुमति है.