देहरादून: शिक्षा के व्यवसायीकरण के दौर में देहरादून नवादा में एक ऐसा स्कूल संचालित हो रहा है, जो सरहद पर तैनात जवानों के बच्चों में राष्ट्रवाद की बुनियाद को पिछले 20 वर्षों से मजबूत कर रहा है. नवादा ग्रामीण इलाके में ये स्कूल रिटायर्ड कर्नल राकेश कुकरेती (retired colonel rakesh kukreti) द्वारा 2002 से संचालित किया जा रहा है. इस स्कूल का नाम कर्नल रॉक्स स्कूल (Dehradun Colonel Rocks School) है. यहां सैनिक परिवारों के बच्चों को नर्सरी से कक्षा 5 तक गुरुकुल की तर्ज हर पर योगा, नृत्य, एथलेटिक, जिमनास्टिक, बॉलीबॉल सहित राष्ट्रीय खेल जैसे तमाम तरह की एक्टिविटी और बुनियादी शिक्षा मजबूत कर राष्ट्रवाद और देशभक्ति के लिए तैयार किया जाता है.
पिछले 20 सालों से कर्नल रॉक्स स्कूल (Dehradun Colonel Rocks School ) के नाम से नवादा में संचालित होने वाले इस विशेष सैनिक स्कूल में सबसे कम दरों पर फीस लेकर अब तक लगभग 1000 बच्चों की बुनियादी शिक्षा मजबूत कर पास आउट किया जा चुका है. इस दौरान तमाम ऐसे होनहार बच्चों को विशेष तैयारी देकर मुफ्त शिक्षा के लिए नवोदय विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए भी भेजा जा चुका है. इतना ही नहीं इसी स्कूल के कई बच्चों को यूरोप में उच्च शिक्षा के लिए भी तैयार किया गया. रिटायर्ड कर्नल राकेश कुकरेती अब सैनिक परिवारों के साथ-साथ सिविल परिवार के बच्चों को अपने यहां काफी समय एडमिशन देकर उनके भी एक अनुशासित क्रियाकलाप से जुड़कर एक बेहतर बुनियादी शिक्षा देने में जुटे हैं.
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वर्ष, 2002 से देहरादून डिफेंस कॉलोनी से कुछ दूरी पर नवादा गांव में बसे कर्नल रॉक्स स्कूल(Colonel Rocks School in Nawada Rural ) को संचालित करने वाले रिटायर्ड राकेश कुकरेती बताते हैं कि 20 साल पहले उन्होंने सैनिक परिवारों के पहाड़ दूरदराज स्थानों के बच्चों को बुनियादी शिक्षा से मजबूत करने का बीड़ा उठाया. ऐसे कई सैनिक हैं, जो सरहदों पर दूरदराज फील्ड में तैनात हैं.
उनके बच्चे सैनिक नियमों के अनुसार ऐसे स्थानों में उनके साथ नहीं रह सकते. इसी बात को समझते हुए उन्होंने सैनिक परिवारों के नौनिहालों को भारतीय और राष्ट्रवाद और देश सेवा के लिए तैयार करने के लिए मात्र ₹200 प्रति माह फीस लेकर अपना कारवां शरू किया. इस स्कूल को संचालित करने का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना नहीं बल्कि एक अनुशासित फौज की तरह उन सैनिक परिवार के बच्चों को गुरुकुल की पढ़ाई तर्ज पर तैयार करना था, जो आगे चल कर देश सेवा में अपनी भागीदारी निभा सके.
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रिटायर्ड कर्नल कुकरेती की पत्नी इरा कुकरेती सैनिक स्कूलों के साथ अन्य देश के कई स्कूलों में शिक्षक के तौर पर काम कर चुकी है. इरा कुकरेती का कहना है स्कूल खोले जाने का मकसद पहले दिन से तय था. रिटायर्ड होने के बाद सैनिक परिवार के बच्चों को एक मजबूत बुनियाद तैयार कर बेहतर शिक्षा देने की योजना उन्होंने बनाई. उन्होंने बताया आज से 20 साल पहले जवानों को बच्चों की सालाना पढ़ाई के लिए मात्र 1200 मिलते थे. उस दौर में वह अपने बच्चों को मनचाहे स्कूलों में पढ़ाने में असमर्थ थे.
इसी समस्या को देखते हुए उन्होंने अपने सामाजिक दायित्व को जीने की राह बनाते हुए यह बीड़ा उठाया. नवादा ग्रामीण क्षेत्र में आज से 20 साल पहले यहां नशाखोरी और शराब का कारोबार होता था. यहां एक सैनिक अनुशासित और गुरुकुल की तर्ज पर स्कूलिंग तैयार करना बहुत बड़ी चुनौती थी. इसके बावजूद कई तरह की समस्याओं को पार कर इस मसकद को आगे ले गये. उनका ये स्कूल आज इस इलाके की पहचान बन चुका है.
नवादा क्षेत्र में संचालित इस शिक्षण संस्थान में जिन सैनिक परिवारों के बच्चे बुनियाद मजबूत करने की मंशा से अपने नौनिहालों को शिक्षा दे रहे हैं, वे इस स्कूल संचालन तरीके की तारीफ करते नहीं थकते हैं. उनका मानना है कि आज शिक्षा व्यवसायीकरण के दौर में राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति सहित हर तरह की बुनियादी एक्टिविटी के साथ वास्तविक स्कूलिंग देना वर्तमान समय में समाज सुधार लाजवाब अभियान है.
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समाज सुधार के मकसद को लेकर संचालित होने वाले इस स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिकाएं भी इस बात को लेकर काफी संतुष्ट नजर आती हैं. वह भी इस अभियान का हिस्सा हैं. शिक्षिकाएं बताती हैं कि यहां सिर्फ नर्सरी से कक्षा 5 तक तमाम तरह के खेल कूद और तमाम आवश्यक एक्टिविटी के साथ बच्चों को प्रेमभाव से बेसिक पढ़ाई के लिए मजबूत किया जाता है. उनको अलग-अलग तरह के हॉबी में तैयार कर कई कंपटीशन में भाग लेने के लिए तैयार भी किया जाता है.
स्कूल के कई ऐसे छोटे बच्चे हैं, जो कई कंपटीशन में बाहर जाकर बड़े कक्षाओं के बच्चों को मात देकर सम्मान पाने से अपने को बड़ों से बेहतर पाकर खूब ख़ुश होते हैं. यही कारण है कि यहां स्कूल बच्चों के इच्छा अनुसार उन्हें स्कूली शिक्षा के साथ अन्य तरह प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने का कार्य भी सकारात्मक रूप में किया जाता है.