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'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर विवादों में जेएनयू कैंपस

नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी फिल्म 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग (ram ke naam documentary screening) को लेकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) चर्चा में है. जेएनयू के स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर- टेफल्स में राम के नाम डॉक्यूमेंट्री (Ram ke naam documentary) की स्क्रीनिंग कराई गई. विश्वविद्यालय प्रशासन के सर्कुलर के बावजूद डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग हुई. जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष का कहना है कि फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है. जानिए क्या है पूरा मामला

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जेएनयू में 'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग
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Published : Dec 5, 2021, 11:39 AM IST

Updated : Dec 5, 2021, 2:07 PM IST

नई दिल्ली : 'राम के नाम' पर विवाद, और राम के नाम पर राजनीति, देश में कोई नई बात नहीं है. जेएनयू कैंपस में जेएनयू छात्र संघ द्वारा एक बार फिर 'राम के नाम' फिल्म स्क्रीनिंग (jnusu ram ke naam screening) की घोषणा की गई. प्रशासन को इसका पता लगते ही तत्काल प्रभाव से स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी गई. लेकिन प्रशासन के फैसले के खिलाफ जेएनयू छात्र संघ न सिर्फ फिल्म की स्क्रीनिंग ही नहीं की, बल्कि सैकड़ों छात्रों ने इस फिल्म को भी देखा.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और विवाद का चोली दामन का रिश्ता है. यहां पर अक्सर कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिन पर विवाद होते हैं. ताजा घटनाक्रम चार दिसंबर का है. इस दिन जेएनयू छात्र संघ की ओर से 'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग (jnusu ram ke naam screening) करने की घोषणा की गई. यह फिल्म भले ही सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित है, लेकिन इस फिल्म के साथ विवाद भी जुड़ा है. इसी विवाद के डर से 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग की सूचना मिलते ही जेएनयू प्रशासन (ram ke naam documentary jnu administration) ने छात्र संघ को नोटिस जारी कर दिया.

जेएनयू प्रशासन ने कहा कि 'राम के नाम' फिल्म (jnu administration ram ke naam documentary) की स्क्रीनिंग रोकने को कहा. प्रशासन ने कहा कि फिल्म की स्क्रीनिंग करने पर कैंपस में धार्मिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका है. प्रशासन के नोटिस को ताक पर रखते हुए जेएनयू छात्र संघ ने 'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग की. रात 9:30 बजे 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग के मौके पर सैकड़ों छात्र जमा हुए. स्क्रीनिंग के दौरान माहौल न बिगड़े, इसको लेकर स्थानीय सुरक्षाकर्मी मुस्तैद थे.

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'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग पर आइशी घोष का ट्वीट

'राम के नाम' की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद पर जेएनयू छात्रसंघ प्रेसिडेंट आइशी घोष (jnusu aishe ram ke naam documentary) कहती हैं कि इस फिल्म को लेकर विवाद या डर का माहौल खड़ा करना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि जेएनयू प्रशासन ने अपने सर्कुलर में कहा था कि 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग पर कार्रवाई की जा सकती है.

आइशी ने कहा कि स्क्रीनिंग कोई गलत फैसला नहीं है. यह कोई प्रतिबंधित फिल्म नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों ने अफवाह फैलाने और डराने की कोशिश भी की, लेकिन हजारों छात्रों ने स्क्रीनिंग में भाग लिया.

जेएनयू में राम के नाम की स्क्रीनिंग पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बकौल आइशी, अयोध्या और काशी, मथुरा का जिक्र कर, व्हाट्सएप में गलत संदेश फैलाने की कोशिश की गई. उन्होंने कहा कि विचारधारा अलग होने के बावजूद हम आपस में बहस करते हैं, असहमत होते हैं. आइशी ने कहा कि असहमति को यूनिवर्सिटी कैंपस से खत्म करने की कोशिश ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि फिल्म देखी जाए, इसके बाद छात्रसंघ चर्चा करने के लिए तैयार है.

आइशी ने बताया कि 2019 में जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के बाद जेएनयूएसयू का दफ्तर बंद किए जाने का विरोध किया गया था. उस समय भी यह फिल्म दिखाई गई थी.

जेएनयू में राम के नाम दिखाने से सामाजिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका के सवाल पर आइशी ने कहा कि अगर ऐसा कुछ था, तो जेएनयू प्रशासन को सुरक्षा के इंतजाम करने चाहिए. हालांकि, इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है.

आइशी ने कहा कि जेएनयू प्रशासन खुद डरा हुआ है. उन्हें खुद पर भरोसा नहीं है. उन्होंने कहा कि राम के नाम की स्क्रीनिंग पर जिन लोगों को आपत्ति है, उन्हें फिल्म देखनी चाहिए और हम चर्चा के लिए तैयार हैं.

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जेएनयू प्रशासन के सर्कुलर को आइशी घोष ने किया ट्वीट

विरोध के रूप में राम के नाम की स्क्रीनिंग करवाने के सवाल पर आइशी ने कहा, भाजपा के जो लोग सेक्युलर मास्क पहन कर रहते हैं, सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के पीछे इनका असली चेहरा सामने आता है. विभाजन की राजनीति के लिए ललकारे जाने की सच्चाई सामने आती है.

उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग नहीं चाहते कि जो नए छात्र और युवा यूनिवर्सिटी में आ रहे हैं, उन तक राम के नाम जैसी फिल्में पहुंचे, जिससे सोच बदलती है. आइशी ने कहा कि यूनिवर्सिटी के बाहर कम्युनल प्रोपगैंडा भरा जा रहा है. छात्र यूनिवर्सिटी में आने पर एक दूसरे से सीखते हैं. इस सीखने की प्रक्रिया को रोकने की कोशिश की जा रही है.

फिल्म निर्माता का बयान

आनंद पटवर्धन ने कहा कि प्रशासन के मना करने के बावजूद जेएनयू छात्र संघ द्वारा राम के नाम फिल्म की स्क्रीनिंग का फैसला सराहनीय है. उन्होंने कहा कि सीबीएफसी ने इस फिल्म को यू सर्टिफिकेट दिया है. इसे 1992 में राम के नाम को बेस्ट इन्वेस्टिगेटिव डॉक्यूमेंट्री की कैटेगरी में राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है.

जेएनयू में 'राम के नाम' डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर विवाद

पटवर्धन ने बताया कि राम के नाम दूरदर्शन पर भी दिखाई जा चुकी है. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद राम के नाम फिल्म को प्राइम टाइम यानी रात नौ बजे दूरदर्शन पर दिखाया जा चुका है. ऐसे में नई पीढ़ी को भी यह फिल्म देखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि फिल्म की स्क्रीनिंग एक ही स्थिति में रोकी जा सकती है, जब देश में पूरी तरह से फासिज्म आ जाए, लेकिन अभी ऐसे हालात नहीं हैं.

'राम के नाम' पर हंगामा क्यों ?

निर्माता आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री पिक्चर 'राम के नाम' बाबरी मस्जिद विवाद की घटनाओं से जुड़ी है. इस फिल्म में बीजेपी, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को दिखाया गया है. फिल्म में तत्कालीन नेताओं की भूमिका दिखाई गई है. लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा भी दिखाई गई है.

जेएनयू प्रेसिडेंट आइशी घोष का कहना है कि बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने जानबूझकर लोगों को गुमराह करने का काम किया था. जिससे कई लोगों की जान गई थी. आइशी घोष के मुताबिक बीजेपी देश में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करती है.

पढ़ें: JNU: 'राम के नाम' डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रशासन और छात्रसंघ आमने-सामने

आपको बता दें, यह फिल्म इस कैंपस में पहली बार नहीं दिखायी गई है. 16 अक्टूबर 2019 में भी इस फिल्म को दिखाया गया था. उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

(इनपुट- मीडिया रिपोर्ट्स)

नई दिल्ली : 'राम के नाम' पर विवाद, और राम के नाम पर राजनीति, देश में कोई नई बात नहीं है. जेएनयू कैंपस में जेएनयू छात्र संघ द्वारा एक बार फिर 'राम के नाम' फिल्म स्क्रीनिंग (jnusu ram ke naam screening) की घोषणा की गई. प्रशासन को इसका पता लगते ही तत्काल प्रभाव से स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी गई. लेकिन प्रशासन के फैसले के खिलाफ जेएनयू छात्र संघ न सिर्फ फिल्म की स्क्रीनिंग ही नहीं की, बल्कि सैकड़ों छात्रों ने इस फिल्म को भी देखा.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और विवाद का चोली दामन का रिश्ता है. यहां पर अक्सर कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिन पर विवाद होते हैं. ताजा घटनाक्रम चार दिसंबर का है. इस दिन जेएनयू छात्र संघ की ओर से 'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग (jnusu ram ke naam screening) करने की घोषणा की गई. यह फिल्म भले ही सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित है, लेकिन इस फिल्म के साथ विवाद भी जुड़ा है. इसी विवाद के डर से 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग की सूचना मिलते ही जेएनयू प्रशासन (ram ke naam documentary jnu administration) ने छात्र संघ को नोटिस जारी कर दिया.

जेएनयू प्रशासन ने कहा कि 'राम के नाम' फिल्म (jnu administration ram ke naam documentary) की स्क्रीनिंग रोकने को कहा. प्रशासन ने कहा कि फिल्म की स्क्रीनिंग करने पर कैंपस में धार्मिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका है. प्रशासन के नोटिस को ताक पर रखते हुए जेएनयू छात्र संघ ने 'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग की. रात 9:30 बजे 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग के मौके पर सैकड़ों छात्र जमा हुए. स्क्रीनिंग के दौरान माहौल न बिगड़े, इसको लेकर स्थानीय सुरक्षाकर्मी मुस्तैद थे.

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'राम के नाम' फिल्म की स्क्रीनिंग पर आइशी घोष का ट्वीट

'राम के नाम' की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद पर जेएनयू छात्रसंघ प्रेसिडेंट आइशी घोष (jnusu aishe ram ke naam documentary) कहती हैं कि इस फिल्म को लेकर विवाद या डर का माहौल खड़ा करना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि जेएनयू प्रशासन ने अपने सर्कुलर में कहा था कि 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग पर कार्रवाई की जा सकती है.

आइशी ने कहा कि स्क्रीनिंग कोई गलत फैसला नहीं है. यह कोई प्रतिबंधित फिल्म नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों ने अफवाह फैलाने और डराने की कोशिश भी की, लेकिन हजारों छात्रों ने स्क्रीनिंग में भाग लिया.

जेएनयू में राम के नाम की स्क्रीनिंग पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

बकौल आइशी, अयोध्या और काशी, मथुरा का जिक्र कर, व्हाट्सएप में गलत संदेश फैलाने की कोशिश की गई. उन्होंने कहा कि विचारधारा अलग होने के बावजूद हम आपस में बहस करते हैं, असहमत होते हैं. आइशी ने कहा कि असहमति को यूनिवर्सिटी कैंपस से खत्म करने की कोशिश ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि फिल्म देखी जाए, इसके बाद छात्रसंघ चर्चा करने के लिए तैयार है.

आइशी ने बताया कि 2019 में जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के बाद जेएनयूएसयू का दफ्तर बंद किए जाने का विरोध किया गया था. उस समय भी यह फिल्म दिखाई गई थी.

जेएनयू में राम के नाम दिखाने से सामाजिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका के सवाल पर आइशी ने कहा कि अगर ऐसा कुछ था, तो जेएनयू प्रशासन को सुरक्षा के इंतजाम करने चाहिए. हालांकि, इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है.

आइशी ने कहा कि जेएनयू प्रशासन खुद डरा हुआ है. उन्हें खुद पर भरोसा नहीं है. उन्होंने कहा कि राम के नाम की स्क्रीनिंग पर जिन लोगों को आपत्ति है, उन्हें फिल्म देखनी चाहिए और हम चर्चा के लिए तैयार हैं.

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जेएनयू प्रशासन के सर्कुलर को आइशी घोष ने किया ट्वीट

विरोध के रूप में राम के नाम की स्क्रीनिंग करवाने के सवाल पर आइशी ने कहा, भाजपा के जो लोग सेक्युलर मास्क पहन कर रहते हैं, सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के पीछे इनका असली चेहरा सामने आता है. विभाजन की राजनीति के लिए ललकारे जाने की सच्चाई सामने आती है.

उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग नहीं चाहते कि जो नए छात्र और युवा यूनिवर्सिटी में आ रहे हैं, उन तक राम के नाम जैसी फिल्में पहुंचे, जिससे सोच बदलती है. आइशी ने कहा कि यूनिवर्सिटी के बाहर कम्युनल प्रोपगैंडा भरा जा रहा है. छात्र यूनिवर्सिटी में आने पर एक दूसरे से सीखते हैं. इस सीखने की प्रक्रिया को रोकने की कोशिश की जा रही है.

फिल्म निर्माता का बयान

आनंद पटवर्धन ने कहा कि प्रशासन के मना करने के बावजूद जेएनयू छात्र संघ द्वारा राम के नाम फिल्म की स्क्रीनिंग का फैसला सराहनीय है. उन्होंने कहा कि सीबीएफसी ने इस फिल्म को यू सर्टिफिकेट दिया है. इसे 1992 में राम के नाम को बेस्ट इन्वेस्टिगेटिव डॉक्यूमेंट्री की कैटेगरी में राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है.

जेएनयू में 'राम के नाम' डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर विवाद

पटवर्धन ने बताया कि राम के नाम दूरदर्शन पर भी दिखाई जा चुकी है. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद राम के नाम फिल्म को प्राइम टाइम यानी रात नौ बजे दूरदर्शन पर दिखाया जा चुका है. ऐसे में नई पीढ़ी को भी यह फिल्म देखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि फिल्म की स्क्रीनिंग एक ही स्थिति में रोकी जा सकती है, जब देश में पूरी तरह से फासिज्म आ जाए, लेकिन अभी ऐसे हालात नहीं हैं.

'राम के नाम' पर हंगामा क्यों ?

निर्माता आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री पिक्चर 'राम के नाम' बाबरी मस्जिद विवाद की घटनाओं से जुड़ी है. इस फिल्म में बीजेपी, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को दिखाया गया है. फिल्म में तत्कालीन नेताओं की भूमिका दिखाई गई है. लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा भी दिखाई गई है.

जेएनयू प्रेसिडेंट आइशी घोष का कहना है कि बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने जानबूझकर लोगों को गुमराह करने का काम किया था. जिससे कई लोगों की जान गई थी. आइशी घोष के मुताबिक बीजेपी देश में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करती है.

पढ़ें: JNU: 'राम के नाम' डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रशासन और छात्रसंघ आमने-सामने

आपको बता दें, यह फिल्म इस कैंपस में पहली बार नहीं दिखायी गई है. 16 अक्टूबर 2019 में भी इस फिल्म को दिखाया गया था. उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

(इनपुट- मीडिया रिपोर्ट्स)

Last Updated : Dec 5, 2021, 2:07 PM IST
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