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रेलवे को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति से लाखों टन कार्बन उत्सर्जन की होगी कटौती : अध्ययन

भारतीय रेलवे को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति, दो अरब यात्रियों को सौर ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों में यात्रा करने में सक्षम बनाएगी और सालाना लगभग 70 लाख टन कार्बन उत्सर्जन की कटौती में मदद करेगी. एक अध्ययन में यह कहा गया है.

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Published : Sep 1, 2021, 9:37 PM IST

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नई दिल्ली : भारतीय रेलवे को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति, दो अरब यात्रियों को सौर ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों में यात्रा करने में सक्षम बनाएगी और सालाना लगभग 70 लाख टन कार्बन उत्सर्जन की कटौती में मदद करेगी. एक अध्ययन में यह कहा गया है.

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) क्लाइमेट ट्रेंड्स और ब्रिटेन के हरित प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप राइडिंग सनबीम्स द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि ग्रिड के माध्यम से जुड़े बिना, भारतीय रेलवे लाइनों को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति औसतन चार ट्रेनों में से कम से कम एक को प्रतिस्पर्धी दरों पर ऊर्जा प्रदान करेगी.

अध्ययन में कहा गया है, 'भारतीय रेलवे की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उस अवधि के दौरान आठ अरब से अधिक यात्रियों की आवाजाही हुई, जिसका अर्थ यह होगा कि दो अरब यात्री सीधे सौर ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं.'

अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय रेलवे को 2030 तक 'नेट जीरो' कार्बन उत्सर्जक बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के संबंध में विद्युतीकरण, ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा के मिश्रण की आवश्यकता होगी.

नए विश्लेषण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस नयी सौर क्षमता का लगभग एक चौथाई यानि 5,272 मेगावाट तक रेलवे की ओवरहेड लाइनों में फीड किया जा सकता है. इससे ऊर्जा का नुकसान रोकने और रेलवे के लिए धन की बचत में भी मदद मिलेगी.

शोधकर्ताओं ने पाया कि कोयले पर आश्रित ग्रिड से आपूर्ति की गई ऊर्जा के बजाए सौर उर्जा की आपूर्ति से हर साल 68 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती हो सकती है.

रिपोर्ट के सह-लेखक और राइडिंग सनबीम्स के संस्थापक लियो मरे ने कहा, 'अभी भारत पर्यावरण के दो महत्वपूर्ण मोर्च पर दुनिया का नेतृत्व कर रहा है जिनमें रेल विद्युतीकरण और सौर ऊर्जा को अपनाया जाना शामिल है. हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय रेलवे में इन दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कार्बन तकनीकों के साथ जोड़ने से भारत को कोविड-19 महामारी से आर्थिक सुधार और पर्यावरण संकट से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन को बंद करने के प्रयासों में बढ़ावा मिल सकता है.'

यह भी पढ़ें- भारत में हाइड्रोजन फ्यूल से चलेगी ट्रेन, रेलवे का ऐसा है प्लान

रिपोर्ट की एक अन्य लेखिका और 'क्लाइमेट ट्रेंड्स' की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि सरकार रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी रकम खर्च करती है. उन्होंने कहा, 'भारतीय रेलवे प्रत्येक भारतीय के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह न केवल परिवहन का सबसे व्यावहारिक साधन है, बल्कि यह देश में सबसे प्रसिद्ध और सबसे बड़ा नियोक्ता भी है. सरकार रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च करती है, जो बदले में, राष्ट्र के 'नेट जीरो' (कार्बन उत्सर्जन घटाने) दृष्टिकोण में एक बड़ी भूमिका निभाएगा.'

उन्होंने कहा, 'यह विश्लेषण किया गया है कि सभी डीजल इंजनों को विद्युत में परिवर्तित करने से वास्तव में अल्पावधि में उत्सर्जन में वृद्धि होगी,लेकिन यह रिपोर्ट लोकोमोटिव सिस्टम को सौर पैनल प्रतिष्ठानों से सीधा जोड़कर बिजली की कुल मांग के एक चौथाई से अधिक की आपूर्ति के अवसर को भी दिखाती है.'

शोधकर्ताओं ने यह भी आगाह किया है कि 2023 तक सभी मार्गों के पूर्ण विद्युतीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ-साथ अल्पावधि में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है क्योंकि वर्तमान में बिजली उत्पादन के लिए भारत की कोयले पर निर्भरता है.

(पीटीआई भाषा)

नई दिल्ली : भारतीय रेलवे को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति, दो अरब यात्रियों को सौर ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों में यात्रा करने में सक्षम बनाएगी और सालाना लगभग 70 लाख टन कार्बन उत्सर्जन की कटौती में मदद करेगी. एक अध्ययन में यह कहा गया है.

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) क्लाइमेट ट्रेंड्स और ब्रिटेन के हरित प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप राइडिंग सनबीम्स द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि ग्रिड के माध्यम से जुड़े बिना, भारतीय रेलवे लाइनों को सौर ऊर्जा की सीधी आपूर्ति औसतन चार ट्रेनों में से कम से कम एक को प्रतिस्पर्धी दरों पर ऊर्जा प्रदान करेगी.

अध्ययन में कहा गया है, 'भारतीय रेलवे की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उस अवधि के दौरान आठ अरब से अधिक यात्रियों की आवाजाही हुई, जिसका अर्थ यह होगा कि दो अरब यात्री सीधे सौर ऊर्जा से चलने वाली ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं.'

अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय रेलवे को 2030 तक 'नेट जीरो' कार्बन उत्सर्जक बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के संबंध में विद्युतीकरण, ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा के मिश्रण की आवश्यकता होगी.

नए विश्लेषण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस नयी सौर क्षमता का लगभग एक चौथाई यानि 5,272 मेगावाट तक रेलवे की ओवरहेड लाइनों में फीड किया जा सकता है. इससे ऊर्जा का नुकसान रोकने और रेलवे के लिए धन की बचत में भी मदद मिलेगी.

शोधकर्ताओं ने पाया कि कोयले पर आश्रित ग्रिड से आपूर्ति की गई ऊर्जा के बजाए सौर उर्जा की आपूर्ति से हर साल 68 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती हो सकती है.

रिपोर्ट के सह-लेखक और राइडिंग सनबीम्स के संस्थापक लियो मरे ने कहा, 'अभी भारत पर्यावरण के दो महत्वपूर्ण मोर्च पर दुनिया का नेतृत्व कर रहा है जिनमें रेल विद्युतीकरण और सौर ऊर्जा को अपनाया जाना शामिल है. हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय रेलवे में इन दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कार्बन तकनीकों के साथ जोड़ने से भारत को कोविड-19 महामारी से आर्थिक सुधार और पर्यावरण संकट से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन को बंद करने के प्रयासों में बढ़ावा मिल सकता है.'

यह भी पढ़ें- भारत में हाइड्रोजन फ्यूल से चलेगी ट्रेन, रेलवे का ऐसा है प्लान

रिपोर्ट की एक अन्य लेखिका और 'क्लाइमेट ट्रेंड्स' की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि सरकार रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी रकम खर्च करती है. उन्होंने कहा, 'भारतीय रेलवे प्रत्येक भारतीय के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह न केवल परिवहन का सबसे व्यावहारिक साधन है, बल्कि यह देश में सबसे प्रसिद्ध और सबसे बड़ा नियोक्ता भी है. सरकार रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च करती है, जो बदले में, राष्ट्र के 'नेट जीरो' (कार्बन उत्सर्जन घटाने) दृष्टिकोण में एक बड़ी भूमिका निभाएगा.'

उन्होंने कहा, 'यह विश्लेषण किया गया है कि सभी डीजल इंजनों को विद्युत में परिवर्तित करने से वास्तव में अल्पावधि में उत्सर्जन में वृद्धि होगी,लेकिन यह रिपोर्ट लोकोमोटिव सिस्टम को सौर पैनल प्रतिष्ठानों से सीधा जोड़कर बिजली की कुल मांग के एक चौथाई से अधिक की आपूर्ति के अवसर को भी दिखाती है.'

शोधकर्ताओं ने यह भी आगाह किया है कि 2023 तक सभी मार्गों के पूर्ण विद्युतीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ-साथ अल्पावधि में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है क्योंकि वर्तमान में बिजली उत्पादन के लिए भारत की कोयले पर निर्भरता है.

(पीटीआई भाषा)

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