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छत्तीसगढ़ की कांगेर वैली में देवी बास्ताबुंदिन को भक्त चढ़ाते हैं काला चश्मा, जानिए क्या है वजह

छत्तीसगढ़ में बस्तर की कांगेर वैली में देवी बास्ताबुंदिन का मंदिर है. यहां चैत्र नवरात्र के दौरान खास आयोजन होता है. इस देवी मंदिर की खास बात यह है कि यहां भक्त प्रसाद के रूप में मां को काला चश्मा चढ़ाते हैं. जानिए भक्त ऐसा क्यों करते हैं.

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Published : Apr 8, 2022, 4:52 PM IST

Devotees offer black glasses to Goddess Bastabundin
देवी बास्ताबुंदिन को भक्त चढ़ाते हैं काला चश्मा

बस्तर: पूरे देश में देवी की पूजा का पर्व चैत्र नवरात्रि मनाया जा रहा है. 2 अप्रैल से शुरू हुए चैत्र नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक चलेगा. इस दौरान सभी देवी मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. छत्तीसगढ़ के बस्तर में बास्ताबुंदिन देवी की भी पूजा चैत्र नवरात्र में की जा रही है. इस धाम की मान्यताएं कुछ अलग हैं. यहां श्रद्धालु मनोकामना पूरे होने पर मां को नारियल, फल, मिठाई प्रसाद के रूप में नहीं चढ़ाते बल्कि देवी मां को काला चश्मा चढ़ाते हैं. यह मान्यता सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है.

जानिए भक्त देवी को क्यों चढ़ाते हैं चश्मा: दरअसल बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के कोटमसर गांव में हर 3 साल के अंतराल पर देवी बास्ताबुंदिन की जात्रा होती है और देवी को चश्मे चढ़ाकर जंगल के हरे भरे रहने की भक्त कामना करते हैं. दरअसल बस्तर के आदिवासियों के लिए बस्तर के घने जंगल, जीवनयापन के लिए सबसे उत्तम और कुदरती देन हैं. आदिवासियों का मानना है कि भगवान ने उन्हें जंगल वरदान के रूप में भेंट किया है.

जंगल को नजर न लगे इसलिए देवी मां को चढ़ाते हैं चश्मा: आदिवासी अपने जंगल को जान से भी ज्यादा चाहते हैं. वे ना केवल जंगल का संरक्षण संवर्धन मन से करते हैं, बल्कि अपनी आराध्य देवी से मन्नत मांगते हैं कि उनके जंगल को किसी की बुरी नजर ना लगे. इतना ही नहीं किसी की बुरी नजर ना लगे इसके लिए बकायदा अपने आराध्य देवी को नजर का चश्मा भी चढ़ाते हैं. सदियों से चली आ रही देवी के प्रति इस मन्नत को युवा पीढ़ी ने भी अपना लिया है. वे भी देवी को चश्मा चढ़ाने लगे हैं.

इस साल होगा मेले का आयोजन: देवी को चश्मा चढ़ाने के लिए कोटोमसर वासी 3 साल का इंतजार करते हैं. इसकी वजह है कुटुमसर उसके आसपास के गांव के लोग अपने-अपने आर्थिक सहयोग से इस देवी की पूजा के अवसर का आयोजन करते हैं. देवी पूजा करने और मन्नत मांगने वालों का मजमा इतना जबरदस्त लगता है कि मजमा मेले की शक्ल ले लेता है. कांगेर वैली में निवास करने वाले आदिवासियों की संस्कृति के विशेष जानकार गंगाराम बताते हैं कि, पहले एक ही परिवार के द्वारा देवी की पूजा की जाती थी. पर कुछ सालों से पूरे गांव या यू कहें पूरे बस्तरवासियों ने इसे अपना लिया है.

ये भी पढ़ें - राजसमंद के इस मंदिर में लग रहा भक्तों का तांता, जानें क्यों

मंदिर के पुजारी जीतू का कहना है कि, इस साल भी देवी की कृपा होगी और हरे भरे वन की देवी रक्षा करेंगी. फिर से पूरा गांव देवी को चश्मा चढ़ाने में कामयाब होगा. मंदिर के सिरहा संपत बताते हैं कि देवी को चढ़ाए गए ज्यादातर चश्मे भक्त अपने साथ ले जाते हैं. वहीं मेले के दूसरे दिन देवी को चश्मा पहनाकर पूरे गांव की परिक्रमा करवाई जाती है. ताकि बास्ताबुंदिन देवी की कृपा पूरे गांव में बनी रहे और वह पूरे ग्रामवासियों की रक्षा करें.

बस्तर: पूरे देश में देवी की पूजा का पर्व चैत्र नवरात्रि मनाया जा रहा है. 2 अप्रैल से शुरू हुए चैत्र नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक चलेगा. इस दौरान सभी देवी मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. छत्तीसगढ़ के बस्तर में बास्ताबुंदिन देवी की भी पूजा चैत्र नवरात्र में की जा रही है. इस धाम की मान्यताएं कुछ अलग हैं. यहां श्रद्धालु मनोकामना पूरे होने पर मां को नारियल, फल, मिठाई प्रसाद के रूप में नहीं चढ़ाते बल्कि देवी मां को काला चश्मा चढ़ाते हैं. यह मान्यता सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है.

जानिए भक्त देवी को क्यों चढ़ाते हैं चश्मा: दरअसल बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के कोटमसर गांव में हर 3 साल के अंतराल पर देवी बास्ताबुंदिन की जात्रा होती है और देवी को चश्मे चढ़ाकर जंगल के हरे भरे रहने की भक्त कामना करते हैं. दरअसल बस्तर के आदिवासियों के लिए बस्तर के घने जंगल, जीवनयापन के लिए सबसे उत्तम और कुदरती देन हैं. आदिवासियों का मानना है कि भगवान ने उन्हें जंगल वरदान के रूप में भेंट किया है.

जंगल को नजर न लगे इसलिए देवी मां को चढ़ाते हैं चश्मा: आदिवासी अपने जंगल को जान से भी ज्यादा चाहते हैं. वे ना केवल जंगल का संरक्षण संवर्धन मन से करते हैं, बल्कि अपनी आराध्य देवी से मन्नत मांगते हैं कि उनके जंगल को किसी की बुरी नजर ना लगे. इतना ही नहीं किसी की बुरी नजर ना लगे इसके लिए बकायदा अपने आराध्य देवी को नजर का चश्मा भी चढ़ाते हैं. सदियों से चली आ रही देवी के प्रति इस मन्नत को युवा पीढ़ी ने भी अपना लिया है. वे भी देवी को चश्मा चढ़ाने लगे हैं.

इस साल होगा मेले का आयोजन: देवी को चश्मा चढ़ाने के लिए कोटोमसर वासी 3 साल का इंतजार करते हैं. इसकी वजह है कुटुमसर उसके आसपास के गांव के लोग अपने-अपने आर्थिक सहयोग से इस देवी की पूजा के अवसर का आयोजन करते हैं. देवी पूजा करने और मन्नत मांगने वालों का मजमा इतना जबरदस्त लगता है कि मजमा मेले की शक्ल ले लेता है. कांगेर वैली में निवास करने वाले आदिवासियों की संस्कृति के विशेष जानकार गंगाराम बताते हैं कि, पहले एक ही परिवार के द्वारा देवी की पूजा की जाती थी. पर कुछ सालों से पूरे गांव या यू कहें पूरे बस्तरवासियों ने इसे अपना लिया है.

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मंदिर के पुजारी जीतू का कहना है कि, इस साल भी देवी की कृपा होगी और हरे भरे वन की देवी रक्षा करेंगी. फिर से पूरा गांव देवी को चश्मा चढ़ाने में कामयाब होगा. मंदिर के सिरहा संपत बताते हैं कि देवी को चढ़ाए गए ज्यादातर चश्मे भक्त अपने साथ ले जाते हैं. वहीं मेले के दूसरे दिन देवी को चश्मा पहनाकर पूरे गांव की परिक्रमा करवाई जाती है. ताकि बास्ताबुंदिन देवी की कृपा पूरे गांव में बनी रहे और वह पूरे ग्रामवासियों की रक्षा करें.

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