हैदराबाद: देश में कोरोना की दूसरी लहर चल रही है. सेहत के बाद सबसे ज्यादा असर हर आम और खास की जेब पर पड़ा है. देश फिलहाल कोरोना की दूसरी लहर का कहर झेल रहा है लेकिन इस बीच एक रिपोर्ट आई है जो पिछले साल कोरोना के कारण रोजगार में हुए नुकसान को बताती है. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने एक रिपोर्ट जारी की है. जिसमें पिछले साल कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के बाद कामगारों या रोजगार पर पड़े असर के बारे में बताया गया है.
मुख्य निष्कर्ष
- अप्रैल-मई 2020 में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान 10 करोड़ लोगों की नौकरियां गई. इनमें से ज्यादातर जून 2020 तक काम पर लौट आए लेकिन 2020 के अंत तक 1.5 करोड़ लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया.
-आय में भी कमी दर्ज की गई. औसतन चार लोगों के घर में जनवरी 2020 में प्रति व्यक्ति आय 5,989 रुपये थी जो अक्टूबर 2020 में 4,979 रुपये हो गई.
-2019-20 की दूसरी तिमाही और 2020-21 की दूसरी तिमाही की तुलना करें तो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में श्रम क्षेत्र की हिस्सेदारी 5% गिरकर 32.5 % से 27% रह गई थी. कुल आय में गिरावट 90 फीसदी कमाई में कमी के कारण और 10 फीसदी रोजगार छिनने की वजह से हुई.
-महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में सबसे ज्यादा नौकरियां गई. लॉकडाउन के कारण यातायात से लेकर तमाम प्रतिबंध लगे जिनके कारण आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा और आय का नुकसान हुआ. गतिशीलता में 10 फीसदी की गिरावट आय में 7.5% गिरावट के साथ जुड़ी थी.
-लॉकडाउन के दौरान और उसके महीनों बाद, 41 फीसद कामकाजी पुरुष कार्यरत रहे और 7 फीसदी ने रोजगार खो दिया और काम पर वापस नहीं लौटे. जबकि सिर्फ 19 फीसद महिलाओं को ही वापस काम मिला और 47 फीसदी को लॉकडाउन के कारण नौकरी गंवानी पड़ी, इन्हें 2020 के अंत तक रोजगार नहीं मिला.
- महिलाओं के साथ ही युवा श्रमिक भी बहुत प्रभावित हुए. 15 से 24 साल की आयु वर्ग के 33 फीसदी श्रमिकों को दिसंबर 2020 तक रोजगार नहीं मिल पाया जबकि 25 से 44 साल के 6% को रोजगार वापस नहीं मिल पाया.
अनौपचारिक रोजगार में हुई वृद्धि
साल 2019 के अंत से साल 2020 के अंत के दौरान करीब आधे वेतनभोगी श्रमिक स्व-रोजगार (30%), आकस्मिक वेतन (10%) या अनौपचारिक वेतनभोगी (9%) श्रमिकों के रूप में अनौपचारिक कार्य में चले गए.
कृषि,निर्माण और छोटे व्यापार सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. शिक्षा, स्वास्थ्य और पेशेवर सेवा से अन्य क्षेत्रों में श्रमिकों का प्रवाह देखा गया. करीब 18 फीसद शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग अब कृषि क्षेत्र में हैं और इसी तरह स्वास्थ्य क्षेत्र के भी इतने ही लोग छोटे व्यापारों से जुड़ गए.
गरीब परिवार सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, गरीबी और असमानता की खाई बढ़ गई
- अप्रैल और मई में सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों ने अपनी पूरी आय खो दी.
- अमीर परिवारों ने महामारी से पहले की आय के एक चौथाई का नुकसान हुआ.
- 23 करोड़ अतिरिक्त लोग राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गए.
- मार्च से अक्टूबर तक के आठ महीनों से अधिक के समय में सबस निचले तबके के 10 फीसदी में आने वाले औसत परिवार में प्रतिव्यक्त 15,700 या 2 महीने से अधिक की आय का नुकसान हुआ
कम भोजन और उधार लेकर परिवारों ने किया गुजारा
- परिवारों ने अपने भोजन में कटौती करने के साथ साथ, संपत्ति बेचने और दोस्त, परिजनों, साहूकारों से पैसे उधार लिए.
-इस रिपोर्ट को तैयार करते समय 90 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि लॉकडाउन के कारण घर में भोजन की कमी हो गई थी.
- इससे भी अधिक चिंता की बात ये है कि 20 फीसदी लोगों ने बताया कि लॉकडाउन के 6 महीने बाद भी भोजन का सेवन बेहतर नहीं हुआ.
- 6 महीने बाद भी 20 फीसदी गरीब परिवारों में खाने-पीने के मामले में लॉकडाउन के वक्त जैसे ही हालात थे.
- लॉकडाउन के कारण ऋण के जाल में फंसते गए, खासकर सबसे गरीब परिवार
सरकारी राहत ने मदद की लेकिन कई महरूम भी रहे
साल 2020 में मुफ्त राशन, नकद हस्तांतरण, मनरेगा, पेंशन जैसी कुछ प्रमुख योजनाएं साल 2020 में घोषित प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और आत्मनिर्भर भारत योजना के साथ प्रमुख सहायक के रूप में थे. जिससे गरीब परिवारों पर महामारी के असर को कम किया जा सके.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कवरेज जन धन द्वार प्राप्त कवरेज से अधिक है. कई सर्वेक्षणों में लगभग 90 फीसद परिवारों के पास राशन कार्ड था लेकिन जनधन कवरेज बहुत छोटा था, लगभग 50 फीसद परिवारों में एक महिला के स्वामित्व वाला जन धन खाता था.
प्रवासियों ने कोविड-19 के सबसे कठोर प्रभाव को सबके सामने प्रस्तुत किया. वर्ग, जाति या भाषाई पहचना और स्थाई निवास की कमी के साथ-साथ इनकी राजनीतिक आवाज भी उन राज्यों में नहीं होती जहां ये काम करने जाते हैं. ऐसे में इन्हें नुकसान झेलना पड़ता है. रिपोर्ट के मुताबिक 81 फीसदी प्रवासियों ने लॉकडाउन के दौरान रोजगार खोया जबकि 64 फीसदी गैर प्रवासियों की नौकरी गई. वहीं 31 फीसद प्रवासियों ने राशन ना मिलने की शिकायत की और ऐसी शिकायत करने वाले गैर प्रवासी सिर्फ 15 फीसद थे.
ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2020 तक 252 करोड़ से अधिक कार्य दिवस थे जो साल 2019 के मुकाबले 43 फीसदी अधिक थे.
नीति सिफारिशें
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत जून तक मुफ्त राशन का विस्तार, कम से कम 2021 के अंत तक
- 5000 रु. के नकद हस्तांतरण तीन महीने के लिए कई जरूरतमंद घरों तक डिजिटल माध्यमों से पहुंच सकता है लेकिन इसे सिर्फ जन धन खातों तक सीमित ना रखा जाए.
-मनरेगा के तहत 150 दिनों का रोजगार और न्यूनतम मजदूरी को राज्य की न्यूनतम मजदूरी को देखते हुए संशोधित करना. इसका बजट 1.75 लाख करोड़ तक किया जाए.
- सबसे प्रभावित जिलों में शहरी रोजगार कार्यक्रम शुरू करना, खासकर महिला श्रमिकों को ध्यान में रखते हुए.
-वृद्धावस्था पेंशन में केंद्र के योगदान को कम से कम 500 रुपये बढ़ाना. सभी मनरेगा मजदूरों का भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम के तहत पंजीकृत करना जिससे वो सामाजिक सुरक्षा का लाभ पा सकेंगे.
- 25 लाख आंगनवाडी और आशा वर्कर्स कोरोना काल में काम करने के लिए 30,000 रुपये (6 महीने के लिए 5 हजार मासिक) देना.
-राष्ट्रीय रोजगार नीति, जिसमें सामाजिक बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने के साथ-साथ निजी निवेश की सुविधा भी शामिल है.
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