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अरुणाचल-चीन सीमा पर उजाड़ PLA चौकियों के पीछे छिपी है चीन की ये चाल

भारत और चीन के बीच कुल 3488 किमी की सीमा लगती है. सीमा पर भारत की ओर से चुनौतियां अधिक हैं, इसी के मद्देनजर चीन भारतीय बलों को फैलाने के लिए एक सचेत सैन्य रणनीति का पालन कर रहा है. संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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पीएलए चौकियों के पीछे छिपी है चीन की चाल
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Published : Sep 17, 2022, 6:46 PM IST

किबिथू (एलएसी के पास, अरुणाचल प्रदेश): छठी शताब्दी ईसा पूर्व के रणनीतिकार सुन त्ज़ु (Sun Tzu) की सैन्य रणनीति में 'धोखे की कला' केंद्रीय सिद्धांत रही है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने इसे आदात में डाल लिया है. सामरिक लाभ प्राप्त करने और रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए वह इसे अरुणाचल-चीन सीमा पर इसे लागू कर रही है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास चीन ने चौकियां और विशाल सैन्य संरचनाएं बनाई हैं. यहां मानव गतिविधि के बहुत अधिक संकेत नहीं हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ये तीन मंजिला इमारतें धोखे का प्रयास हो सकती हैं. किबिथु में एक दूरबीन के साथ तीन मंजिला बिल्डिंग को साफ देखा जा सकता है. चमकीले रंग वाली इस इमारत को देखने से लगता है कि इसे गैर सैन्य संस्थान दिखाने की कोशिश की गई है. एलएसी पर पीएलए सीमा चौकियों में भी कहानी कुछ ऐसी ही है.

अरुणाचल के अंजु जिले में अंतिम भारतीय सीमा चौकी किबिथु में तैनात एक स्थानीय सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर 'ईटीवी भारत' को बताया ' न केवल किबिथू के पार चीनी गांव सपचु में बल्कि अन्य सीमा चौकियों में भी एलएसी पर ज्यादा मानवीय गतिविधियां नहीं दिख रही हैं. ये इमारतें सिर्फ दिखावा प्रतीत होती हैं.' स्थानीय सरकारी अधिकारी की ये बात सुरक्षा प्रतिष्ठान के कई अन्य अधिकारियों से भी मेल खाती है.

बुनियादी ढांचा और इलाके : यहां ज्यादा लोगों के न दिखने का एक कारण ये भी हो सकता है कि इन सीमा चौकियों में ज्यादा संख्या में पीएलए कर्मी तैनात नहीं हैं. भारत की मजबूत उपस्थिति को देखते हुए इनका निर्माण किया गया है, ताकि जरूरत पड़ने पर सैनिकों को तेजी से भेजा जा सके. यही वजह है कि रोड-हेड सीमा चौकियों के बहुत करीब हैं.

दूसरी ओर इलाके और विकासशील बुनियादी ढांचे के कारण भारतीय प्रतिष्ठान को जवानों और रसद सामग्रियों को अग्रिम चौकियों तक पहुंचाने के लिए बहुत अधिक प्रयास करना होगा. ऐसी परिस्थितियों में भारत की ओर से भी सीमा पर या समीपवर्ती क्षेत्रों में जवानों की तैनाती की आवश्यकता हो सकती है. भारत की सीमा चौकियों में पर्याप्त संख्या में सैनिकों का समर्थन करने के लिए बुनियादी ढांचे की भी जरूरत है.

इसके लिए पूरे एलएसी पर भारतीय सैनिकों को तैनात करना होगा, जो हिमालय में दुनिया के कुछ सबसे कठिन इलाकों में से एक है. भारतीय बलों को रसद की भी जरूरत होगी, जिसका भार जाहिर तौर पर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.

कठिन हैं चुनौतियां : अरुणाचल में पांच मुख्य नदी घाटियां कामेंग, सुबनसिरी, सियांग, लोहित और तिरप हैं. ये उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थित गहरी घाटियां तेज बहने वाली नदियों के साथ स्थित हैं, जिससे पूर्व-पश्चिम लिंकेज में आसानी से जुड़ना भी सैन्य चुनौती है. दूसरी ओर, चीन के G219 और G695 राजमार्ग लगभग LAC के साथ-साथ पूर्व-पश्चिम दिशा के समानांतर चलते हैं. रिपोर्टों में कहा गया है कि अभी भी निर्माणाधीन G695 LAC से लगभग 35 किमी उत्तर की औसत दूरी पर स्थित है. जबकि G219- 50 साल से भी पहले बनाया गया था, जिसकी LAC से औसतन दूरी 200 किमी से कम है. इन राजमार्गों से एलएसी तक पहुंच अरुणाचल प्रदेश में एलएसी तक भारतीय पहुंच की तुलना में बहुत आसान है.

जबकि पूर्वी लद्दाख में पीएलए ने एलएसी के साथ बफर ज़ोन का निर्माण कर लिया है. वह प्रभावी रूप से गैर-सीमांकित सीमा को ठीक कर रहा है और भारतीय सुरक्षा कर्मियों को उन क्षेत्रों में गश्त करने से रोक रहा है, जहां वह पहले गश्त करते रहे हैं. देपसांग और डेमचोक कुछ अनसुलझे मुद्दे बने हुए हैं. लेकिन कुल मिलाकर पीएलए ने दोनों पक्षों के गश्ती दलों के बीच सीमा पर झड़पों और आमने-सामने मुठभेड़ों की गुंजाइश को काफी कम कर दिया है.सेंट्रल सेक्टर में भी पीएलए ने उत्तराखंड के चमोली जिले के बाराहोटी जैसी जगहों पर अपनी बात रखी है. समस्या सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में सबसे गंभीर है, जहां 2017 में पीएलए ने जामफेरी रिज तक पहुंचने का प्रयास किया. उसने चिकन नेक को नजरअंदाज किया था. वह अरुणाचल प्रदेश पर 'दक्षिणी तिब्बत' का हिस्सा होने का दावा भी करता रहा है. ये मुद्दा आने वाले समय में भी रहेगा.

जब से अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में मौजूदा सीमा संघर्ष शुरू हुआ है, भारतीय सेना और पीएलए दोनों ने एलएसी और गहराई वाले क्षेत्रों में युद्ध जैसे उपकरणों के साथ 1,00,000 से अधिक सैनिकों को जुटाया और तैनात किया है.

पढ़ें- भारत ने तैयार किया चीन का 'काउंटर' प्लान, 'घोस्ट विलेज' होंगे आबाद

किबिथू (एलएसी के पास, अरुणाचल प्रदेश): छठी शताब्दी ईसा पूर्व के रणनीतिकार सुन त्ज़ु (Sun Tzu) की सैन्य रणनीति में 'धोखे की कला' केंद्रीय सिद्धांत रही है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने इसे आदात में डाल लिया है. सामरिक लाभ प्राप्त करने और रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए वह इसे अरुणाचल-चीन सीमा पर इसे लागू कर रही है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास चीन ने चौकियां और विशाल सैन्य संरचनाएं बनाई हैं. यहां मानव गतिविधि के बहुत अधिक संकेत नहीं हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ये तीन मंजिला इमारतें धोखे का प्रयास हो सकती हैं. किबिथु में एक दूरबीन के साथ तीन मंजिला बिल्डिंग को साफ देखा जा सकता है. चमकीले रंग वाली इस इमारत को देखने से लगता है कि इसे गैर सैन्य संस्थान दिखाने की कोशिश की गई है. एलएसी पर पीएलए सीमा चौकियों में भी कहानी कुछ ऐसी ही है.

अरुणाचल के अंजु जिले में अंतिम भारतीय सीमा चौकी किबिथु में तैनात एक स्थानीय सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर 'ईटीवी भारत' को बताया ' न केवल किबिथू के पार चीनी गांव सपचु में बल्कि अन्य सीमा चौकियों में भी एलएसी पर ज्यादा मानवीय गतिविधियां नहीं दिख रही हैं. ये इमारतें सिर्फ दिखावा प्रतीत होती हैं.' स्थानीय सरकारी अधिकारी की ये बात सुरक्षा प्रतिष्ठान के कई अन्य अधिकारियों से भी मेल खाती है.

बुनियादी ढांचा और इलाके : यहां ज्यादा लोगों के न दिखने का एक कारण ये भी हो सकता है कि इन सीमा चौकियों में ज्यादा संख्या में पीएलए कर्मी तैनात नहीं हैं. भारत की मजबूत उपस्थिति को देखते हुए इनका निर्माण किया गया है, ताकि जरूरत पड़ने पर सैनिकों को तेजी से भेजा जा सके. यही वजह है कि रोड-हेड सीमा चौकियों के बहुत करीब हैं.

दूसरी ओर इलाके और विकासशील बुनियादी ढांचे के कारण भारतीय प्रतिष्ठान को जवानों और रसद सामग्रियों को अग्रिम चौकियों तक पहुंचाने के लिए बहुत अधिक प्रयास करना होगा. ऐसी परिस्थितियों में भारत की ओर से भी सीमा पर या समीपवर्ती क्षेत्रों में जवानों की तैनाती की आवश्यकता हो सकती है. भारत की सीमा चौकियों में पर्याप्त संख्या में सैनिकों का समर्थन करने के लिए बुनियादी ढांचे की भी जरूरत है.

इसके लिए पूरे एलएसी पर भारतीय सैनिकों को तैनात करना होगा, जो हिमालय में दुनिया के कुछ सबसे कठिन इलाकों में से एक है. भारतीय बलों को रसद की भी जरूरत होगी, जिसका भार जाहिर तौर पर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.

कठिन हैं चुनौतियां : अरुणाचल में पांच मुख्य नदी घाटियां कामेंग, सुबनसिरी, सियांग, लोहित और तिरप हैं. ये उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थित गहरी घाटियां तेज बहने वाली नदियों के साथ स्थित हैं, जिससे पूर्व-पश्चिम लिंकेज में आसानी से जुड़ना भी सैन्य चुनौती है. दूसरी ओर, चीन के G219 और G695 राजमार्ग लगभग LAC के साथ-साथ पूर्व-पश्चिम दिशा के समानांतर चलते हैं. रिपोर्टों में कहा गया है कि अभी भी निर्माणाधीन G695 LAC से लगभग 35 किमी उत्तर की औसत दूरी पर स्थित है. जबकि G219- 50 साल से भी पहले बनाया गया था, जिसकी LAC से औसतन दूरी 200 किमी से कम है. इन राजमार्गों से एलएसी तक पहुंच अरुणाचल प्रदेश में एलएसी तक भारतीय पहुंच की तुलना में बहुत आसान है.

जबकि पूर्वी लद्दाख में पीएलए ने एलएसी के साथ बफर ज़ोन का निर्माण कर लिया है. वह प्रभावी रूप से गैर-सीमांकित सीमा को ठीक कर रहा है और भारतीय सुरक्षा कर्मियों को उन क्षेत्रों में गश्त करने से रोक रहा है, जहां वह पहले गश्त करते रहे हैं. देपसांग और डेमचोक कुछ अनसुलझे मुद्दे बने हुए हैं. लेकिन कुल मिलाकर पीएलए ने दोनों पक्षों के गश्ती दलों के बीच सीमा पर झड़पों और आमने-सामने मुठभेड़ों की गुंजाइश को काफी कम कर दिया है.सेंट्रल सेक्टर में भी पीएलए ने उत्तराखंड के चमोली जिले के बाराहोटी जैसी जगहों पर अपनी बात रखी है. समस्या सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में सबसे गंभीर है, जहां 2017 में पीएलए ने जामफेरी रिज तक पहुंचने का प्रयास किया. उसने चिकन नेक को नजरअंदाज किया था. वह अरुणाचल प्रदेश पर 'दक्षिणी तिब्बत' का हिस्सा होने का दावा भी करता रहा है. ये मुद्दा आने वाले समय में भी रहेगा.

जब से अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में मौजूदा सीमा संघर्ष शुरू हुआ है, भारतीय सेना और पीएलए दोनों ने एलएसी और गहराई वाले क्षेत्रों में युद्ध जैसे उपकरणों के साथ 1,00,000 से अधिक सैनिकों को जुटाया और तैनात किया है.

पढ़ें- भारत ने तैयार किया चीन का 'काउंटर' प्लान, 'घोस्ट विलेज' होंगे आबाद

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