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स्वीडन की संस्था का दावा, दुनिया के कई देशों में घट रहे लोकतांत्रिक मूल्य

स्वीडन की एक संस्था है वी-डेम. इसका दावा है कि दुनिया के कई देशों में लोकतांत्रिक मूल्य कम हुए हैं. इसकी रिपोर्ट के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के लिए खतरा अधिक हो गया है. तीन साल पहले निरंकुशता की राह पर मात्र 19 राष्ट्र चल रहे थे, पर आज यह संख्या 32 है. इसने 10 संकेतक तैयार किए हैं. इनमें से आठ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया से जुड़े हैं. भारत को लेकर भी कई टिप्पणियां की गई हैं.

blow on Largest Democracy
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Published : Mar 11, 2021, 6:54 PM IST

हैदराबाद : स्वीडन स्थित एक संस्था वी- डेम इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि दुनिया के कई देशों में लोकतांत्रिक मूल्य कम हुए हैं. इसकी वजह से उन देशों की छवि को धक्का पहुंचा है. रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 'चुनावी निरंकुशता' सबसे सामान्य शासन व्यवस्था बनी हुई है. यह व्यवस्था 87 राष्ट्रों में व्याप्त है और यहां दुनिया की 68% आबादी रहती है.

रिपोर्ट के अनुसार बीते दशक में उदारवादी लोकतंत्रिक देशों की संख्या 41 से घटकर 32 हो गई है. इन देशों में दुनिया का केवल 14 प्रतिशत हिस्सा रहता है.

रिपोर्ट में निरंकुशता की लहर के बारे में भी बात की गई है. इसमें बताया गया है कि बीते 10 वर्षों में लोकतंत्र को अपनाने वाले देशों की संख्या में कमी आई है. रिपोर्ट बताता है कि उदार लोकतंत्र के व्यापक स्तरों पर महामारी का प्रत्यक्ष प्रभाव 2020 में सीमित था. जाहिर है, इनके दीर्घकालिक परिणाम बदतर हो सकते हैं. यह दुनिया के एक तिहाई हिस्से, जिसके 25 देशों में 2.6 बिलियन लोग रहते हैं, में निरंकुशता की तेजी की लहर को दिखाता है.

जी-20 के कई देशों जैसे ब्राजील, तुर्की और संयुक्त राज्य अमेरिका इस बहाव का हिस्सा हैं. इसमें भारत का भी नाम लिया गया है.

संस्थान दावा करता है कि निरंकुश शासन में रहने वाली विश्व की आबादी का हिस्सा 48% से 68% हो गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि ब्राजील और तुर्की में लोकतंत्र खत्म हो रहा है. पोलैंड की स्थिति सबसे खराब बताई गई है.

पोलिश लॉ एंड जस्टिस पार्टी, हंगेरियन फाइड्ज पार्टी और तुर्की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं.

इस रिपोर्ट ने निरंकुशता को परिभाषित करने की कोशिश की है. इसके अनुसार निरंकुशता आमतौर पर एक समान पैटर्न का अनुसरण करता है. सत्तारूढ़ सरकारें पहले मीडिया और नागरिक समाज पर हमला करती हैं और विरोधियों का अनादर करके और झूठी जानकारी फैलाकर समाजों का ध्रुवीकरण करती हैं. वह औपचारिक संस्थानों को कमजोर करने के लिए एक तर्कहीन प्रचार करती हैं.

रिपोर्ट में लिखा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के लिए खतरा तेज हो गया है. केवल तीन साल पहले निरंकुशता की राह पर 19 राष्ट्र चल रहे थे, पर आज यह संख्या 32 है. 10 संकेतकों में से 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के हैं, जो बीते 10 वर्षों में सबसे बड़ी संख्या में घटे हैं. नागरिक समाज का दमन भी तेज हो गया है.

रिपोर्ट कहता है कि 1970 और 1980 के दशक की तुलना में दुनिया अभी भी अधिक लोकतांत्रिक है. वैसे, 2020 में उदार लोकतंत्रों की वैश्विक गिरावट जारी है. देखा जाए तो 2020 में औसत वैश्विक नागरिक को 1990 जितनी लोकतांत्रिक आजादी है. चुनावी निरंकुशता सबसे सामान्य शासन व्यवस्था बनी हुई है.

निरंकुश देशों में दुनिया की 68 प्रतिशत आबादी रहती है. वहीं उदार लोकतंत्र में दुनिया की 14 प्रतिशत आबादी रहती है. इसी कड़ी में चुनावी लोकतंत्रों में दुनिया की शेष 19% आबादी रहती है.

इस रिपोर्ट में भारत को लेकर भी कई नकारात्मक टिप्पणियां की गई हैं. दावा किया गया है कि मीडिया की स्वतंत्रता घटी है. सिविल सोसाइटी पर बंदिशें लगी हैं. धर्मनिरपेक्षता को लेकर सवाल खड़े हुए हैं.

रिपोर्ट में 1967 के गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) का हवाला दिया गया है. इसे लोकतंत्र के अनुरूप नहीं माना गया है.

रिपोर्ट ने सीएए के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन का भी जिक्र किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की ने 2014 में लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति खो दी और इसके बाद 2018 में हंगरी ने.

हैदराबाद : स्वीडन स्थित एक संस्था वी- डेम इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि दुनिया के कई देशों में लोकतांत्रिक मूल्य कम हुए हैं. इसकी वजह से उन देशों की छवि को धक्का पहुंचा है. रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 'चुनावी निरंकुशता' सबसे सामान्य शासन व्यवस्था बनी हुई है. यह व्यवस्था 87 राष्ट्रों में व्याप्त है और यहां दुनिया की 68% आबादी रहती है.

रिपोर्ट के अनुसार बीते दशक में उदारवादी लोकतंत्रिक देशों की संख्या 41 से घटकर 32 हो गई है. इन देशों में दुनिया का केवल 14 प्रतिशत हिस्सा रहता है.

रिपोर्ट में निरंकुशता की लहर के बारे में भी बात की गई है. इसमें बताया गया है कि बीते 10 वर्षों में लोकतंत्र को अपनाने वाले देशों की संख्या में कमी आई है. रिपोर्ट बताता है कि उदार लोकतंत्र के व्यापक स्तरों पर महामारी का प्रत्यक्ष प्रभाव 2020 में सीमित था. जाहिर है, इनके दीर्घकालिक परिणाम बदतर हो सकते हैं. यह दुनिया के एक तिहाई हिस्से, जिसके 25 देशों में 2.6 बिलियन लोग रहते हैं, में निरंकुशता की तेजी की लहर को दिखाता है.

जी-20 के कई देशों जैसे ब्राजील, तुर्की और संयुक्त राज्य अमेरिका इस बहाव का हिस्सा हैं. इसमें भारत का भी नाम लिया गया है.

संस्थान दावा करता है कि निरंकुश शासन में रहने वाली विश्व की आबादी का हिस्सा 48% से 68% हो गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि ब्राजील और तुर्की में लोकतंत्र खत्म हो रहा है. पोलैंड की स्थिति सबसे खराब बताई गई है.

पोलिश लॉ एंड जस्टिस पार्टी, हंगेरियन फाइड्ज पार्टी और तुर्की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं.

इस रिपोर्ट ने निरंकुशता को परिभाषित करने की कोशिश की है. इसके अनुसार निरंकुशता आमतौर पर एक समान पैटर्न का अनुसरण करता है. सत्तारूढ़ सरकारें पहले मीडिया और नागरिक समाज पर हमला करती हैं और विरोधियों का अनादर करके और झूठी जानकारी फैलाकर समाजों का ध्रुवीकरण करती हैं. वह औपचारिक संस्थानों को कमजोर करने के लिए एक तर्कहीन प्रचार करती हैं.

रिपोर्ट में लिखा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के लिए खतरा तेज हो गया है. केवल तीन साल पहले निरंकुशता की राह पर 19 राष्ट्र चल रहे थे, पर आज यह संख्या 32 है. 10 संकेतकों में से 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के हैं, जो बीते 10 वर्षों में सबसे बड़ी संख्या में घटे हैं. नागरिक समाज का दमन भी तेज हो गया है.

रिपोर्ट कहता है कि 1970 और 1980 के दशक की तुलना में दुनिया अभी भी अधिक लोकतांत्रिक है. वैसे, 2020 में उदार लोकतंत्रों की वैश्विक गिरावट जारी है. देखा जाए तो 2020 में औसत वैश्विक नागरिक को 1990 जितनी लोकतांत्रिक आजादी है. चुनावी निरंकुशता सबसे सामान्य शासन व्यवस्था बनी हुई है.

निरंकुश देशों में दुनिया की 68 प्रतिशत आबादी रहती है. वहीं उदार लोकतंत्र में दुनिया की 14 प्रतिशत आबादी रहती है. इसी कड़ी में चुनावी लोकतंत्रों में दुनिया की शेष 19% आबादी रहती है.

इस रिपोर्ट में भारत को लेकर भी कई नकारात्मक टिप्पणियां की गई हैं. दावा किया गया है कि मीडिया की स्वतंत्रता घटी है. सिविल सोसाइटी पर बंदिशें लगी हैं. धर्मनिरपेक्षता को लेकर सवाल खड़े हुए हैं.

रिपोर्ट में 1967 के गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) का हवाला दिया गया है. इसे लोकतंत्र के अनुरूप नहीं माना गया है.

रिपोर्ट ने सीएए के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन का भी जिक्र किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की ने 2014 में लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति खो दी और इसके बाद 2018 में हंगरी ने.

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