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केरल : शीशम का पेड़ काटे जाने के मामले में सीबीआई जांच की मांग - वायनाड के मुत्तिल

केरल के पर्यावरण संगठनों ने राज्य के वायनाड के मुत्तिल और अन्य स्थानों पर शीशम के पेड़ों की कटाई के मामले की सीबीआई जांच कराने की रविवार को मांग की है.

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Published : Jun 27, 2021, 8:51 PM IST

तिरुवनंतपुरम : पर्यावरण संगठनों ने संयुक्त बयान में आरोप लगाया कि राजस्व विभाग का 11 मार्च का परिपत्र और 24 अक्टूबर 2020 का आदेश अवैध है. राज्य सरकार ने लकड़ी माफियाओं द्वारा वायनाड में शीशम और अन्य स्थानों पर सागौन की लड़की की बड़े पैमाने पर कटाई और तस्करी किए जाने को लेकर पैदा हुए विवाद के मद्देनजर 12 जून को इस मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया था.

संयुक्त बयान में कहा गया है कि सरकार का यह रुख न्याय प्रणाली के समक्ष एक चुनौती है कि जिन परिस्थितियों में ये आदेश जारी किए गए उनकी जांच करने की कोई जरूरत नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन संरक्षित पेड़ों की कटाई की अनुमति देने के अवैध आदेश के पीछे राजस्व और वन मंत्री तथा अधिकारियों का हाथ है. इसके साथ ही, संगठनों ने मांग की है कि कानून में ईमानदार, प्रभावी और पारदर्शी तरीके से आवश्यक संशोधन किए जाएं ताकि किसानों को पेड़ों को काटने का अधिकार दिया जा सके कि वे कानूनी रूप से अपनी निर्धारित भूमि पर ऐसा कर सकें.

यह भी पढ़ें-'दूर हुआ भ्रम', पीएम मोदी से बातचीत के बाद गांव वालों ने लगवाए कोविड के टीके

इस बीच, वन विभाग की सतर्कता इकाई ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि वायनाड, इडुक्की और त्रिशूर सहित विभिन्न जिलों से कथित तौर पर सरकारी आदेश की गलत व्याख्या कर 15 करोड़ रुपये की कीमत के पेड़ काट दिए गए. सतर्कता इकाई ने राजस्व अधिकारियों की ओर से कथित तौर पर लापरवाही बरते जाने की बात कही है. हालांकि राजस्व मंत्री के. राजन ने कहा कि सरकार को अभी कोई रिपोर्ट नहीं मिली है.

(पीटीआई-भाषा)

तिरुवनंतपुरम : पर्यावरण संगठनों ने संयुक्त बयान में आरोप लगाया कि राजस्व विभाग का 11 मार्च का परिपत्र और 24 अक्टूबर 2020 का आदेश अवैध है. राज्य सरकार ने लकड़ी माफियाओं द्वारा वायनाड में शीशम और अन्य स्थानों पर सागौन की लड़की की बड़े पैमाने पर कटाई और तस्करी किए जाने को लेकर पैदा हुए विवाद के मद्देनजर 12 जून को इस मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया था.

संयुक्त बयान में कहा गया है कि सरकार का यह रुख न्याय प्रणाली के समक्ष एक चुनौती है कि जिन परिस्थितियों में ये आदेश जारी किए गए उनकी जांच करने की कोई जरूरत नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन संरक्षित पेड़ों की कटाई की अनुमति देने के अवैध आदेश के पीछे राजस्व और वन मंत्री तथा अधिकारियों का हाथ है. इसके साथ ही, संगठनों ने मांग की है कि कानून में ईमानदार, प्रभावी और पारदर्शी तरीके से आवश्यक संशोधन किए जाएं ताकि किसानों को पेड़ों को काटने का अधिकार दिया जा सके कि वे कानूनी रूप से अपनी निर्धारित भूमि पर ऐसा कर सकें.

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इस बीच, वन विभाग की सतर्कता इकाई ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि वायनाड, इडुक्की और त्रिशूर सहित विभिन्न जिलों से कथित तौर पर सरकारी आदेश की गलत व्याख्या कर 15 करोड़ रुपये की कीमत के पेड़ काट दिए गए. सतर्कता इकाई ने राजस्व अधिकारियों की ओर से कथित तौर पर लापरवाही बरते जाने की बात कही है. हालांकि राजस्व मंत्री के. राजन ने कहा कि सरकार को अभी कोई रिपोर्ट नहीं मिली है.

(पीटीआई-भाषा)

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