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Delhi Service Bill: दिल्ली सेवा विधेयक बना कानून, राष्ट्रपति ने दी मंजूरी

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Published : Aug 12, 2023, 12:30 PM IST

Updated : Aug 12, 2023, 9:04 PM IST

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम 2023 को अपनी स्वीकृति दे दी है. इसके साथ ही यह विधेयक अब कानून बन गया है.

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नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में ग्रुप-ए अधिकारियों की तैनाती एवं तबादले के लिए एक प्राधिकरण के गठन और ऐसी नियुक्तियों पर केंद्र सरकार को प्रधानता देने संबंधी प्रावधानों वाले दिल्ली सेवा विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी है. विधि एवं न्याय मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम 2023 को अपनी स्वीकृति दे दी है.

एक अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही यह विधेयक कानून में तब्दील हो गया, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 का स्थान लेगा. संबंधित विधेयक तीन अगस्त को लोकसभा से और सात अगस्त को राज्यसभा से पारित हुआ था. यह अधिनियम दिल्ली के उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी के अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती को लेकर अंतिम अधिकार देता है और सेवाओं पर केंद्र सरकार के नियंत्रण को मजबूत करता है.

गौरतलब है कि इस विधेयक को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में किया था. विधेयक को लेकर बहस के बाद लोकसभा और राज्यसभा में इसे पारित कर दिया गया था. कांग्रेस, डीएमके और टीएमसी सहित कई विपक्षी दलों ने इस बिल को संघवाद की भावना और संविधान के खिलाफ बताते हुए इसे सदन में पेश करने का विरोध किया था. वहीं, बिल पेश करने के दौरान चर्चा में शामिल होते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विरोधी दलों के तर्कों को खारिज करते हुए कहा था कि संविधान ने सदन को दिल्ली राज्य के संबंध में कोई भी कानून पारित करने की शक्ति दी है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भी इसे स्पष्ट कर दिया है.

लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन, टीएमसी सांसद सौगत रॉय, कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई एवं शशि थरूर, डीएमके सांसद टीआर बालू और एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को सदन में पेश करने का विरोध किया था.

बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने 11 मई को फैसला सुनाया था कि राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार का, जबकि सेवाओं पर दिल्ली की निर्वाचित सरकार का नियंत्रण होगा. इसके बाद केंद्र सरकार 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए के अधिकारियों की तैनाती और तबादले को लेकर एक प्राधिकरण बनाने के वास्ते अध्यादेश लेकर आई थी. यह अधिनियम अखिल भारतीय सेवाओं और दानिक्स से संबंधित अधिकारियों की नियुक्ति के मामले में केंद्र सरकार को तरजीह देता है.

ये भी पढ़ें - Sedition law : क्या है अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून जिसे सरकार खत्म कर रही

(इनपुट-एजेंसी)

नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में ग्रुप-ए अधिकारियों की तैनाती एवं तबादले के लिए एक प्राधिकरण के गठन और ऐसी नियुक्तियों पर केंद्र सरकार को प्रधानता देने संबंधी प्रावधानों वाले दिल्ली सेवा विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी है. विधि एवं न्याय मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम 2023 को अपनी स्वीकृति दे दी है.

एक अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही यह विधेयक कानून में तब्दील हो गया, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 का स्थान लेगा. संबंधित विधेयक तीन अगस्त को लोकसभा से और सात अगस्त को राज्यसभा से पारित हुआ था. यह अधिनियम दिल्ली के उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी के अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती को लेकर अंतिम अधिकार देता है और सेवाओं पर केंद्र सरकार के नियंत्रण को मजबूत करता है.

गौरतलब है कि इस विधेयक को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में किया था. विधेयक को लेकर बहस के बाद लोकसभा और राज्यसभा में इसे पारित कर दिया गया था. कांग्रेस, डीएमके और टीएमसी सहित कई विपक्षी दलों ने इस बिल को संघवाद की भावना और संविधान के खिलाफ बताते हुए इसे सदन में पेश करने का विरोध किया था. वहीं, बिल पेश करने के दौरान चर्चा में शामिल होते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विरोधी दलों के तर्कों को खारिज करते हुए कहा था कि संविधान ने सदन को दिल्ली राज्य के संबंध में कोई भी कानून पारित करने की शक्ति दी है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भी इसे स्पष्ट कर दिया है.

लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन, टीएमसी सांसद सौगत रॉय, कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई एवं शशि थरूर, डीएमके सांसद टीआर बालू और एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को सदन में पेश करने का विरोध किया था.

बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने 11 मई को फैसला सुनाया था कि राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार का, जबकि सेवाओं पर दिल्ली की निर्वाचित सरकार का नियंत्रण होगा. इसके बाद केंद्र सरकार 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए के अधिकारियों की तैनाती और तबादले को लेकर एक प्राधिकरण बनाने के वास्ते अध्यादेश लेकर आई थी. यह अधिनियम अखिल भारतीय सेवाओं और दानिक्स से संबंधित अधिकारियों की नियुक्ति के मामले में केंद्र सरकार को तरजीह देता है.

ये भी पढ़ें - Sedition law : क्या है अंग्रेजों के जमाने का राजद्रोह कानून जिसे सरकार खत्म कर रही

(इनपुट-एजेंसी)

Last Updated : Aug 12, 2023, 9:04 PM IST
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