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दिल्ली दंगे के बाद मजबूती से खड़ा हुआ भारतीय समाज

दिल्ली सरकार ने दिल्ली दंगे पर जानकारी देते हुए बताया कि 2,221 दंगा पीड़ितों को राहत के रूप में अब तक 26 करोड़ वितरित किए जा चुके हैं, लेकिन दंगा पीड़ितों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार को अभी भी बहुत कुछ करना है.

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Published : Feb 26, 2021, 12:56 PM IST

delhi riots
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हिंसा

नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पिछले साल राजधानी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. इस हिंसा को लेकर हर कोई हैरान था. 1984 के सिख दंगों के बाद दिल्ली में यह सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा था. बता दें, सीएए के विरोध में पहले झड़प शुरू हुई थी बाद में दंगों का रूप ले लिया था.

छह दिन के अंदर इन दंगों में कुल 53 लोगों की मौत हुई और 581 लोग घायल हुए थे. सीएए कानून के विरोध में हिंसा से दिल्ली के खजुरी खास, भजनपुरा नगर, गोकलपुरी, जाफराबाद और दयालपुर जैसे इलाके सबसे अधिक प्रभावित हुए. दिल्ली के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर दंगाइयों ने दिनदहाड़े हमला किया था. इस हिंसा में प्रशासन चाहे वह केंद्र का हो या राज्य सरकार का कहीं नहीं दिख रहा था.

दिल्ली पुलिस के अनुसार 400 मामलों में अब तक 1825 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, 755 कुल प्राथमिकी दिल्ली पुलिस ने दर्ज की है, 349 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं.

इसे प्रशासन की लापरवाही कहेंगे क्योंकि ऐसे माहौल को और ज्यादा भड़कने से रोकने में वह नाकाम रहा. देखते-देखते इस हिंसा ने साप्रंदायिक दंगे का रूप ले लिया था. वैसे तो दिल्ली पुलिस देश में सबसे अच्छी है, लेकिन बात जब स्टाफिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बजट के उपयोग की आती है तो वह निर्दोष लोगों की सुरक्षा में विफल साबित होती है. कमोबेश यही हाल गृह मंत्रालय का भी रहा, जिसके अंतर्गत 1 मिलियन अर्धसैनिक बल आते हैं, लेकिन इस स्थिति में वह भी सफल साबित नहीं हुए.

देश की खुफिया एजेंसी भी इस स्थिति का पता नहीं लगा सकीं. गुस्साई भीड़ ने पहले से ही पत्थर, पेट्रोल बम समेत तमाम हथियार जमा कर लिए थे. इस बात की भनक प्रशासन को नहीं लगी. 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों में से कई अभी भी न्याय की आस लगाए बैठे हैं. इस हिंसा को लेकर सोशल मीडिया की भूमिका भी जांच के दायरे में आ गई है, सोशल मीडिया से अफवाहें सेकंडों में वायरल हो जाती हैं. जहां एक स्थानीय झगड़े को दूर किया जा सकता है और वहीं, इसे सांप्रदायिक रंग भी दिया जा सकता है.

दिल्ली सरकार के अनुसार 2,221 दंगा पीड़ितों को राहत के रूप में अब तक 26 करोड़ वितरित किए जा चुके हैं, लेकिन दंगा पीड़ितों को एक चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार को अभी भी बहुत कुछ करना है. सरकारों को चाहिए कि इस हिंसा के अपराधियों और भड़काने वालों को जल्द से जल्द सजा दिलाई जाए. 1969 से अहमदाबाद दंगों से लेकर 2020 के दिल्ली दंगों तक भारत ने आजादी के बाद बड़े सांप्रदायिक दंगों को देखा है.

पढ़ें: दिलदार दिल्ली कब-कब हुई दागदार, जानिए 1984 से लेकर अब का इतिहास

इन सब चुनौतियों के बाद भी भारतीय समाज पहले की तुलना में आज मजबूती से खड़ा हुआ है. यही हमारे धर्मनिरपेक्ष भारत की सुंदरता है. भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को मजबूत करने के लिए सरकार, सिविल सोसाइटी, पुलिस और न्यायपालिका सभी को मजबूत रखना और मीडिया को सांप्रदायिकता की इस बुराई का सामना करने के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा.

नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पिछले साल राजधानी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. इस हिंसा को लेकर हर कोई हैरान था. 1984 के सिख दंगों के बाद दिल्ली में यह सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा था. बता दें, सीएए के विरोध में पहले झड़प शुरू हुई थी बाद में दंगों का रूप ले लिया था.

छह दिन के अंदर इन दंगों में कुल 53 लोगों की मौत हुई और 581 लोग घायल हुए थे. सीएए कानून के विरोध में हिंसा से दिल्ली के खजुरी खास, भजनपुरा नगर, गोकलपुरी, जाफराबाद और दयालपुर जैसे इलाके सबसे अधिक प्रभावित हुए. दिल्ली के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर दंगाइयों ने दिनदहाड़े हमला किया था. इस हिंसा में प्रशासन चाहे वह केंद्र का हो या राज्य सरकार का कहीं नहीं दिख रहा था.

दिल्ली पुलिस के अनुसार 400 मामलों में अब तक 1825 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, 755 कुल प्राथमिकी दिल्ली पुलिस ने दर्ज की है, 349 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं.

इसे प्रशासन की लापरवाही कहेंगे क्योंकि ऐसे माहौल को और ज्यादा भड़कने से रोकने में वह नाकाम रहा. देखते-देखते इस हिंसा ने साप्रंदायिक दंगे का रूप ले लिया था. वैसे तो दिल्ली पुलिस देश में सबसे अच्छी है, लेकिन बात जब स्टाफिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बजट के उपयोग की आती है तो वह निर्दोष लोगों की सुरक्षा में विफल साबित होती है. कमोबेश यही हाल गृह मंत्रालय का भी रहा, जिसके अंतर्गत 1 मिलियन अर्धसैनिक बल आते हैं, लेकिन इस स्थिति में वह भी सफल साबित नहीं हुए.

देश की खुफिया एजेंसी भी इस स्थिति का पता नहीं लगा सकीं. गुस्साई भीड़ ने पहले से ही पत्थर, पेट्रोल बम समेत तमाम हथियार जमा कर लिए थे. इस बात की भनक प्रशासन को नहीं लगी. 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों में से कई अभी भी न्याय की आस लगाए बैठे हैं. इस हिंसा को लेकर सोशल मीडिया की भूमिका भी जांच के दायरे में आ गई है, सोशल मीडिया से अफवाहें सेकंडों में वायरल हो जाती हैं. जहां एक स्थानीय झगड़े को दूर किया जा सकता है और वहीं, इसे सांप्रदायिक रंग भी दिया जा सकता है.

दिल्ली सरकार के अनुसार 2,221 दंगा पीड़ितों को राहत के रूप में अब तक 26 करोड़ वितरित किए जा चुके हैं, लेकिन दंगा पीड़ितों को एक चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार को अभी भी बहुत कुछ करना है. सरकारों को चाहिए कि इस हिंसा के अपराधियों और भड़काने वालों को जल्द से जल्द सजा दिलाई जाए. 1969 से अहमदाबाद दंगों से लेकर 2020 के दिल्ली दंगों तक भारत ने आजादी के बाद बड़े सांप्रदायिक दंगों को देखा है.

पढ़ें: दिलदार दिल्ली कब-कब हुई दागदार, जानिए 1984 से लेकर अब का इतिहास

इन सब चुनौतियों के बाद भी भारतीय समाज पहले की तुलना में आज मजबूती से खड़ा हुआ है. यही हमारे धर्मनिरपेक्ष भारत की सुंदरता है. भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को मजबूत करने के लिए सरकार, सिविल सोसाइटी, पुलिस और न्यायपालिका सभी को मजबूत रखना और मीडिया को सांप्रदायिकता की इस बुराई का सामना करने के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा.

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