नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को न्यूज पोर्टल न्यूजक्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और इसके एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती की याचिका पर सुनवाई की. पुरकायस्थ ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक मामले में उनकी गिरफ्तारी, रिमांड और उनके खिलाफ दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को चुनौती दी है.
सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने यूएपीए मामले के संबंध में हिरासत में लेने के लिए पुलिस द्वारा दायर रिमांड आवेदन में गिरफ्तारी के आधार को शामिल करने को लेकर सवाल उठाया. अदालत ने दिल्ली पुलिस की विफलता पर संक्षेप में सवाल उठाया. कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया है कि क्या मामले में आरोपितों के वकीलों की बातें सुनी गई.
अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि रिमांड आदेश में कुछ कमी है और वकील को नहीं सुना गया. जस्टिस तुषार राव गेडेला ने कहा कि ये रिमांड आवेदन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत लग रहा है. एम3एम निदेशकों के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र है. न्यायाधीश ने 9 अक्टूबर तक सुनवाई स्थगित कर दी. साथ ही दिल्ली पुलिस को याचिका पर जवाब देने और केस डायरी पेश करने के लिए भी नोटिस जारी किया. अदालत ने आगे निर्देश दिया कि हिरासत में रहने के दौरान अमित चक्रवर्ती के स्वास्थ्य से समझौता नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि अदालत को सूचित किया गया था कि वह शारीरिक रूप से अक्षम हैं.
क्या है मामला: न्यूज पोर्टल न्यूजक्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और इसके एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती को न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में लगाए गए आरोपों के मद्देनजर छापे की एक श्रृंखला के बाद गिरफ्तार किया गया. आरोप है कि न्यूजक्लिक को चीनी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए भुगतान किया जा रहा था. दोनों व्यक्तियों को बुधवार सुबह सात दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था. जब उन्हें एफआईआर की प्रति नहीं दी गई तो उन्होंने इस मामले में दिल्ली की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने गुरुवार को एफआईआर की प्रति प्राप्त करने की उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया.
गिरफ्तारी का नहीं है कोई आधार: इसके बाद दोनों ने एफआईआर रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शुक्रवार सुबह मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की गुहार लगाई. पुरकायस्थ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यूजक्लिक संपादक को अंतरिम जमानत पर रिहा करने की मांग की.
उन्होंने तर्क दिया कि प्रथम दृष्टया यदि (रिमांड) आदेश गलत है तो मेरे मुवक्किल को जेल में क्यों रहना चाहिए? हालांकि, न्यायाधीश ने इस पर आपत्ति व्यक्त की कि क्या आरोप ऐसे लगते हैं कि आरोपी को तुरंत रिहा किया जा सकता है. सिब्बल ने पुरकायस्थ को गिरफ्तार करने और नीतिगत हिरासत में भेजने के तरीके पर भी कड़ा विरोध दर्ज कराया. उन्होंने गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं दिए जाने पर सवाल खड़ा किया है.
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