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Delhi High Court: पीएम मोदी की बीए डिग्री पर RTI मामले की सुनवाई जल्द आगे बढ़ाने से कोर्ट का इनकार - नरेंद्र मोदी की डिग्री से जुड़े मामले की सुनवाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री से जुड़े मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया है. आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने अदालत को बताया कि मामला लंबे समय से लंबित है. इसलिए जल्द सुनवाई जरूरी है. मामला 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है.

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Published : Jul 10, 2023, 1:37 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री से जुड़े मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि मामला 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद एक आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग की गई थी, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें विश्वविद्यालय को 1978 में जिन छात्रों ने बीए प्रोग्राम पास करने के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था.

बता दें कि 1978 में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीए की परीक्षा पास की थी. 24 जनवरी 2017 को सुनवाई की पहली तारीख पर आदेश पर रोक लगा दी गई थी. कोर्ट ने आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार द्वारा दायर शीघ्र सुनवाई आवेदन पर नोटिस जारी किया था. नीरज कुमार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने अदालत को बताया कि मामला लंबे समय से लंबित है. इसलिए जल्द सुनवाई जरूरी है. मामला अक्टूबर में सूचीबद्ध है.

न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि पहले से तय तारीख पर सूची बनाएं. बता दें कि आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर 1978 में बीए में शामिल हुए सभी छात्रों के रोल नंबर, नाम, अंक और उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण परिणाम की जानकारी मांगी थी. डीयू के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने इस आधार पर जानकारी देने से इनकार कर दिया कि यह तीसरे पक्ष की जानकारी के योग्य है. इसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने सीआईसी के समक्ष अपील दायर की. सीआईसी ने 2016 में पारित आदेश में कहा कि मामले पर्यायवाची कानूनों और पिछले निर्णयों की जांच करने के बाद आयोग का कहना है कि एक छात्र (वर्तमान/पूर्व) की शिक्षा से संबंधित मामले सार्वजनिक डोमेन के अंतर्गत आते हैं और इसलिए संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरण को आदेश देते हैं कि तदनुसार जानकारी का खुलासा करें.

सीआईसी ने पाया था कि प्रत्येक विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक निकाय है और डिग्री संबंधी सभी जानकारी विश्वविद्यालय के निजी रजिस्टर में उपलब्ध है, जो एक सार्वजनिक दस्तावेज है. दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 2017 में सुनवाई की पहली तारीख पर तर्क दिया कि कुल संख्या पर मांगी गई जानकारी कि कितने छात्र परीक्षा में उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण हुए प्रदान करने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई. हालांकि, रोल नंबर, पिता के नाम और अंकों के साथ सभी छात्रों के परिणामों का विवरण मांगने वाले आवेदन पर विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि ऐसी जानकारी को प्रकटीकरण से छूट दी गई थी. यह तर्क दिया गया कि इसमें 1978 में बीए में अध्ययन करने वाले सभी छात्रों की व्यक्तिगत जानकारी शामिल थी और यह जानकारी प्रत्ययी क्षमता में रखी गई थी.

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न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा द्वारा आदेश पर रोक लगाने के बाद रोस्टर में नियमित बदलाव के कारण मामला पिछले कुछ वर्षों में पांच न्यायाधीशों के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है. फरवरी 2019 में न्यायमूर्ति अनूप जे. भंभानी के समक्ष एक सुनवाई में, मामले को आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ई) और (जे) की व्याख्या के संबंध में सवाल उठाने वाली याचिकाओं के एक समूह के साथ जोड़ दिया गया था. अदालत ने कहा था कि प्रावधान किसी व्यक्ति को उसके भरोसेमंद रिश्ते और व्यक्तिगत जानकारी में उपलब्ध जानकारी के प्रकटीकरण से छूट देता है, जिसके प्रकटीकरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जो किसी व्यक्ति की गोपनीयता का अनावश्यक आक्रमण का कारण बनता है. सभी मामलों में मांगी गई जानकारी परीक्षाओं के परिणाम, परिणामों का विवरण, शैक्षिक योग्यता और छात्रों से संबंधित अन्य मामलों से संबंधित है. न्यायमूर्ति भंभानी ने आदेश में दर्ज किया था कि दो वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या पर विचार करते समय इसे जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, अदालत कानून के अन्य संबंधित प्रावधानों पर भी गौर करेगी, जो फैसले के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री से जुड़े मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि मामला 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद एक आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग की गई थी, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें विश्वविद्यालय को 1978 में जिन छात्रों ने बीए प्रोग्राम पास करने के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था.

बता दें कि 1978 में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीए की परीक्षा पास की थी. 24 जनवरी 2017 को सुनवाई की पहली तारीख पर आदेश पर रोक लगा दी गई थी. कोर्ट ने आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार द्वारा दायर शीघ्र सुनवाई आवेदन पर नोटिस जारी किया था. नीरज कुमार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने अदालत को बताया कि मामला लंबे समय से लंबित है. इसलिए जल्द सुनवाई जरूरी है. मामला अक्टूबर में सूचीबद्ध है.

न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि पहले से तय तारीख पर सूची बनाएं. बता दें कि आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर 1978 में बीए में शामिल हुए सभी छात्रों के रोल नंबर, नाम, अंक और उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण परिणाम की जानकारी मांगी थी. डीयू के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने इस आधार पर जानकारी देने से इनकार कर दिया कि यह तीसरे पक्ष की जानकारी के योग्य है. इसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने सीआईसी के समक्ष अपील दायर की. सीआईसी ने 2016 में पारित आदेश में कहा कि मामले पर्यायवाची कानूनों और पिछले निर्णयों की जांच करने के बाद आयोग का कहना है कि एक छात्र (वर्तमान/पूर्व) की शिक्षा से संबंधित मामले सार्वजनिक डोमेन के अंतर्गत आते हैं और इसलिए संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरण को आदेश देते हैं कि तदनुसार जानकारी का खुलासा करें.

सीआईसी ने पाया था कि प्रत्येक विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक निकाय है और डिग्री संबंधी सभी जानकारी विश्वविद्यालय के निजी रजिस्टर में उपलब्ध है, जो एक सार्वजनिक दस्तावेज है. दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 2017 में सुनवाई की पहली तारीख पर तर्क दिया कि कुल संख्या पर मांगी गई जानकारी कि कितने छात्र परीक्षा में उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण हुए प्रदान करने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई. हालांकि, रोल नंबर, पिता के नाम और अंकों के साथ सभी छात्रों के परिणामों का विवरण मांगने वाले आवेदन पर विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि ऐसी जानकारी को प्रकटीकरण से छूट दी गई थी. यह तर्क दिया गया कि इसमें 1978 में बीए में अध्ययन करने वाले सभी छात्रों की व्यक्तिगत जानकारी शामिल थी और यह जानकारी प्रत्ययी क्षमता में रखी गई थी.

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न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा द्वारा आदेश पर रोक लगाने के बाद रोस्टर में नियमित बदलाव के कारण मामला पिछले कुछ वर्षों में पांच न्यायाधीशों के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है. फरवरी 2019 में न्यायमूर्ति अनूप जे. भंभानी के समक्ष एक सुनवाई में, मामले को आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ई) और (जे) की व्याख्या के संबंध में सवाल उठाने वाली याचिकाओं के एक समूह के साथ जोड़ दिया गया था. अदालत ने कहा था कि प्रावधान किसी व्यक्ति को उसके भरोसेमंद रिश्ते और व्यक्तिगत जानकारी में उपलब्ध जानकारी के प्रकटीकरण से छूट देता है, जिसके प्रकटीकरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जो किसी व्यक्ति की गोपनीयता का अनावश्यक आक्रमण का कारण बनता है. सभी मामलों में मांगी गई जानकारी परीक्षाओं के परिणाम, परिणामों का विवरण, शैक्षिक योग्यता और छात्रों से संबंधित अन्य मामलों से संबंधित है. न्यायमूर्ति भंभानी ने आदेश में दर्ज किया था कि दो वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या पर विचार करते समय इसे जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, अदालत कानून के अन्य संबंधित प्रावधानों पर भी गौर करेगी, जो फैसले के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

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