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घरेलू विमानों में कृपाण ले जाने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से सिख संगठन खुश

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Published : Dec 23, 2022, 9:34 PM IST

Updated : Dec 23, 2022, 10:11 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने सिखों को घरेलू उड़ानों में कृपाण रखने की मंजूरी देने के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है. हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि यह केंद्र सरकार का नीतिगत फैसला है.

Saber of the Sikhs
सिखों की कृपाण

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सिखों को घरेलू उड़ानों में यात्रा के दौरान कृपाण रखने की मंजूरी के खिलाफ दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह केंद्र सरकार का नीतिगत फैसला है, हम इसमें दखल नहीं दे सकते. अदालत ने मंजूरी संबंधी फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इससे पहले हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर को पटीशन पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रामणियम की डिवीजन बैंच ने कहा, 'हम ऐसे नितिगत फैसले में कैसे दखल दे सकते हैं? यह भारत सरकार का नितिगत फैसला है.'

क्या है मामला?

कोर्ट ने हर्ष विभोर सिंघल की पटीशन पर यह फैसला सुनाया, जिसने दावा किया था कि उड़ान में कृपाण लेकर जाने के मुद्दे पर सलाह के लिए कमेटी गठित की जानी चाहिए. हर्ष ने केंद्र सरकार की तरफ से 4 मार्च, 2022 को जारी नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि सिख यात्रियों को भारत में सभी घरेलू मार्गों पर संचालित होने वाली यात्री उड़ानों में अपने साथ कृपाण लेकर जाने की खास रेगुलेटरी मंजूरी होगी.

यात्रियों की तरफ से ले जाई जा रही कृपाण की लंबाई 6 इंच और कुल लंबाई 9 इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रामोणिय प्रसाद की बैंच ने पहले मौखिक तोर पर कहा कि यह भारत सरकार की नीति है और अदालत इसमें तब तक दखल नहीं दे सकती, जब तक यह मनमानी न हो. दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले पर सिख संगठनों ने सहमति जताई है. उनका कहना है कि सिख कौम का अलग अस्तित्व है. सिखों की तरफ से धारण की जाने वाली पांच निशानियों में से कृपाण एक है और उन्हें इसे कहीं भी धारण करने का हक मिलना चाहिए.

गुरसिख का जरूरी अंग है श्रीसाहिब (छोटी कृपाण)

Former SGPC Secretary Joginder Singh Adliwal
एसजीपीसी के पूर्व सचिव जोगिंदर सिंह अदलीवाल

एसजीपीसी के पूर्व सचिव जोगिंदर सिंह अदलीवाल ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में बताया कि हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करके बिल्कुल सही किया है. इस देश में प्रत्येक धर्म को अपनी निशानी धारण करने का हक है. कृपाण या श्री साहिब किसी भी गुरसिख का जरूरी अंग है. सिखों के धार्मिक चिन्हों का विरोध करना ठीक नहीं. हाईकोर्ट ने ऐसी फिजूल पटीशन खारिज करके बिलकुल ठीक किया है. दरअसल, अपनी अलग पहचान को लेकर सिखों ने लंबी लड़ाई लड़ी है. अभी हाल ही में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में जनगणना में अलग कॉलम शामिल करके सिख कौम को अलग कौम के तौर पर मान्यता दी है. उन्होंने कहा कि भारत सरकार को भी इस बारे में सोचना चाहिए.

Shiromani Panth Akali Budha Dal Secretary Daljit Singh Bedi
शिरोमणि पंथ अकाली बुड्ढा दल के सचिव दलजीत सिंह बेदी

शिरोमणि पंथ अकाली बुड्ढा दल के सचिव दलजीत सिंह बेदी ने बताया कि सिखों के हकों को मारने की साजिशें नई नहीं हैं. कुछ लोग जान-बूछकर माहौल को खराब करना चाहते हैं. कृपाण पहनना सिख धर्म की निशानी है. गुरू साहिब द्वारा दिया गया यह शस्त्र प्रत्येक गुरसिख हमेशा अपने पास रखता है. केंद्र सरकार ने पहले से ही इसे मंजूरी दी हुई है और अदालत ने भी इसे बरकरार रखा है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग धर्म की आड़ में माहौल खराब करना चाहते हैं. ऐसे लोगों को मानवता का सबूत देते हुए दूसरे धर्मों का सम्मान करना चाहिए. लोगों को धर्मों के प्रति खुले दिल से पेश आना चाहिए.

आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव

सिख कौम अपनी अलग पहचान के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रही है. इसी से संबंधित एक दस्तावेज है, जिसे आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है. दरअसल देश के बंटवारे के बाद सिखों ने अलग राज्य लेने के बजाए हिंदुओं के साथ रहने का फैसला कुछ शर्तों के साथ किया. सिख विद्वान कपूर सिंह की ओर से खालसा की भूमि आनंदपुर साहिब में इस संबंध में एक दस्तावेज लिखा गया, जिसे शिरोमणि अकाली दल ने 1972 में पास किया.

आनंदपुर में पास होने के कारण इसका नाम आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव पड़ा. इसके पांच साल बाद 28 अगस्त 1977 को शिरोमणि अकाली दल के जनरल इजलास में यह प्रस्ताव रखा गया, जिसमें सिखों की अलग पहचान समेत कौम से संबंधित कई बातें शामिल की गईं. 1982 तक जब सिखों की आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव वाली बातें नहीं मानी गईं, तो जरनैल सिंह भिंडरावाला ने धर्मयुद्ध मोर्चे की शुरुआत की.

पढ़ें: संसद का शीतकालीन सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित : लोकसभा में 97, राज्यसभा में 102 प्रतिशत कामकाज

जिसमें सरकार को सिखों के बारे में अपना स्टैंड स्पष्ट करने की मांग की गई. प्रस्ताव में कई पेचीदा बिंदु थे, जिनके बारे में आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है. जाने माने पत्रकार मार्क टली और सतीश जैकब ने अपनी किताब 'अमृतसरः मिसेज गांधीज़ लास्ट बैटल' (Amritsar: Mrs Gandhi's Last Battle) में इसका विस्तृत जिक्र किया है.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सिखों को घरेलू उड़ानों में यात्रा के दौरान कृपाण रखने की मंजूरी के खिलाफ दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह केंद्र सरकार का नीतिगत फैसला है, हम इसमें दखल नहीं दे सकते. अदालत ने मंजूरी संबंधी फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इससे पहले हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर को पटीशन पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रामणियम की डिवीजन बैंच ने कहा, 'हम ऐसे नितिगत फैसले में कैसे दखल दे सकते हैं? यह भारत सरकार का नितिगत फैसला है.'

क्या है मामला?

कोर्ट ने हर्ष विभोर सिंघल की पटीशन पर यह फैसला सुनाया, जिसने दावा किया था कि उड़ान में कृपाण लेकर जाने के मुद्दे पर सलाह के लिए कमेटी गठित की जानी चाहिए. हर्ष ने केंद्र सरकार की तरफ से 4 मार्च, 2022 को जारी नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि सिख यात्रियों को भारत में सभी घरेलू मार्गों पर संचालित होने वाली यात्री उड़ानों में अपने साथ कृपाण लेकर जाने की खास रेगुलेटरी मंजूरी होगी.

यात्रियों की तरफ से ले जाई जा रही कृपाण की लंबाई 6 इंच और कुल लंबाई 9 इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रामोणिय प्रसाद की बैंच ने पहले मौखिक तोर पर कहा कि यह भारत सरकार की नीति है और अदालत इसमें तब तक दखल नहीं दे सकती, जब तक यह मनमानी न हो. दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले पर सिख संगठनों ने सहमति जताई है. उनका कहना है कि सिख कौम का अलग अस्तित्व है. सिखों की तरफ से धारण की जाने वाली पांच निशानियों में से कृपाण एक है और उन्हें इसे कहीं भी धारण करने का हक मिलना चाहिए.

गुरसिख का जरूरी अंग है श्रीसाहिब (छोटी कृपाण)

Former SGPC Secretary Joginder Singh Adliwal
एसजीपीसी के पूर्व सचिव जोगिंदर सिंह अदलीवाल

एसजीपीसी के पूर्व सचिव जोगिंदर सिंह अदलीवाल ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में बताया कि हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करके बिल्कुल सही किया है. इस देश में प्रत्येक धर्म को अपनी निशानी धारण करने का हक है. कृपाण या श्री साहिब किसी भी गुरसिख का जरूरी अंग है. सिखों के धार्मिक चिन्हों का विरोध करना ठीक नहीं. हाईकोर्ट ने ऐसी फिजूल पटीशन खारिज करके बिलकुल ठीक किया है. दरअसल, अपनी अलग पहचान को लेकर सिखों ने लंबी लड़ाई लड़ी है. अभी हाल ही में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में जनगणना में अलग कॉलम शामिल करके सिख कौम को अलग कौम के तौर पर मान्यता दी है. उन्होंने कहा कि भारत सरकार को भी इस बारे में सोचना चाहिए.

Shiromani Panth Akali Budha Dal Secretary Daljit Singh Bedi
शिरोमणि पंथ अकाली बुड्ढा दल के सचिव दलजीत सिंह बेदी

शिरोमणि पंथ अकाली बुड्ढा दल के सचिव दलजीत सिंह बेदी ने बताया कि सिखों के हकों को मारने की साजिशें नई नहीं हैं. कुछ लोग जान-बूछकर माहौल को खराब करना चाहते हैं. कृपाण पहनना सिख धर्म की निशानी है. गुरू साहिब द्वारा दिया गया यह शस्त्र प्रत्येक गुरसिख हमेशा अपने पास रखता है. केंद्र सरकार ने पहले से ही इसे मंजूरी दी हुई है और अदालत ने भी इसे बरकरार रखा है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग धर्म की आड़ में माहौल खराब करना चाहते हैं. ऐसे लोगों को मानवता का सबूत देते हुए दूसरे धर्मों का सम्मान करना चाहिए. लोगों को धर्मों के प्रति खुले दिल से पेश आना चाहिए.

आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव

सिख कौम अपनी अलग पहचान के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रही है. इसी से संबंधित एक दस्तावेज है, जिसे आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है. दरअसल देश के बंटवारे के बाद सिखों ने अलग राज्य लेने के बजाए हिंदुओं के साथ रहने का फैसला कुछ शर्तों के साथ किया. सिख विद्वान कपूर सिंह की ओर से खालसा की भूमि आनंदपुर साहिब में इस संबंध में एक दस्तावेज लिखा गया, जिसे शिरोमणि अकाली दल ने 1972 में पास किया.

आनंदपुर में पास होने के कारण इसका नाम आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव पड़ा. इसके पांच साल बाद 28 अगस्त 1977 को शिरोमणि अकाली दल के जनरल इजलास में यह प्रस्ताव रखा गया, जिसमें सिखों की अलग पहचान समेत कौम से संबंधित कई बातें शामिल की गईं. 1982 तक जब सिखों की आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव वाली बातें नहीं मानी गईं, तो जरनैल सिंह भिंडरावाला ने धर्मयुद्ध मोर्चे की शुरुआत की.

पढ़ें: संसद का शीतकालीन सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित : लोकसभा में 97, राज्यसभा में 102 प्रतिशत कामकाज

जिसमें सरकार को सिखों के बारे में अपना स्टैंड स्पष्ट करने की मांग की गई. प्रस्ताव में कई पेचीदा बिंदु थे, जिनके बारे में आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है. जाने माने पत्रकार मार्क टली और सतीश जैकब ने अपनी किताब 'अमृतसरः मिसेज गांधीज़ लास्ट बैटल' (Amritsar: Mrs Gandhi's Last Battle) में इसका विस्तृत जिक्र किया है.

Last Updated : Dec 23, 2022, 10:11 PM IST
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