नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने सोमवार को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने सहित अलग-अलग याचिकाओं को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया, जिसमें विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों (foreign marriage laws) के तहत सम लैंगिक विवाह (same sex marriages ) को मान्यता देने की मांग की गई थी.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल (Chief Justice D N Patel) और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह (Justice Jyoti Singh ) की पीठ ने मामले में पक्षकारों को जवाब और रिजॉइन्डर दाखिल करने के लिए समय दिया और इसे 30 नवंबर को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
पहली याचिका में अभिजीत अय्यर मित्रा (Abhijit Iyer Mitra) और तीन अन्य ने तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के सहमति से समलैंगिक कृत्यों (homosexual acts) को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बावजूद समलैंगिक विवाह संभव नहीं है और हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act ) और विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत उन्हें मान्यता देने की घोषणा की मांग की.
दो अन्य याचिकाएं - एक विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने की मांग करने वाली दो महिलाओं द्वारा दायर की गई. इसमें कहा गया है कि कानून समान-विवाह की अनुमति नहीं देता है. और दूसरी याचिका दो पुरुषों द्वारा दायर की गई है, जिनकी शादी अमेरिका में विदेशी विवाह अधिनियम (FMA) के तहत हुई थी, लेकिन उनकी शादी का पंजीकरण नहीं किया जा रहा है.
एक अन्य याचिका में भारत के कार्डधारक के विदेशी मूल के पति या पत्नी को लिंग या सेक्सुअल ओरियंटेशन के बिना OCI पंजीकरण के लिए आवेदन करने की अनुमति देने की मांग की गई है.
सुनवाई के दौरान, दंपति की ओर से पेश अधिवक्ता करुणा नंदी ( advocate Karuna Nandy) ने कहा कि उन्होंने न्यूयॉर्क में शादी की और उनके मामले में लागू कानून नागरिकता अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम हैं. नंदी ने कहा कि सरकार ने अभी तक उनकी याचिका का जवाब दाखिल नहीं किया है.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने तर्क दिया कि एक पति या पत्नी का मतलब पति या पत्नी और विवाह है, जो हेटरोसेक्सुअल कपल्स (heterosexual couples) जोड़ों से जुड़ा एक शब्द है और नागरिकता अधिनियम के संबंध में एक विशिष्ट उत्तर दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
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उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में याचिकाकर्ताओं की कुछ गलत धारणा है कि सहमति से समलैंगिक अधिनियम को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है.
नवतेज सिंह जौहर मामले को लेकर कुछ भ्रांतियां हैं. यह केवल सहमति से समलैंगिक कृत्य को अपराध से मुक्त करता है. मेहता ने कहा कि यह शादी के बारे में बात नहीं करता है.
इस पर याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल (senior advocate Saurabh Kirpal) ने कहा कि शीर्ष अदालत का मामला स्पष्ट रूप से समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देता है, संवैधानिक मामले में अपरिहार्य निहितार्थ इसे मान्यता देने के पक्ष में है और यह संवैधानिक न्यायशास्त्र कैसे काम करता है.
समान अधिकार कार्यकर्ता मित्रा, गोपी शंकर एम, गीता थडानी और जी ऊरवासी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत द्वारा समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध से मुक्त कर दिया गया है लेकिन एचएमए के प्रावधानों के तहत समलैंगिक विवाह को अभी भी अनुमति नहीं दी गई है.