नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि 17 वर्षीय लड़का अगर अपने यकृत का एक हिस्सा दान करने के लिए फिट पाया जाता है, तो यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) से प्राप्त उसकी चिकित्सीय रिपोर्ट के अनुसार, उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा गठित समिति उसे आवश्यक अनुमति प्रदान करने के लिए अपनी पूर्व की रिपोर्ट पर पुनर्विचार करेगी जिससे उसके पिता की जान बचाई जा सके.
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि मामले में तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता को आवश्यकता पड़ने पर 16 से 20 अक्टूबर के बीच किसी भी तारीख पर मामले को सुनवाई के वास्ते सूचीबद्ध कराने के लिए उच्च न्यायालय के पंजीयक से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी जाती है और याचिका सुनवाई के लिये अगली तारीख 21 अक्टूबर तय की जाती है.
अदालत ने कहा कि समिति द्वारा याचिकाकर्ता के अनुरोध को पहले खारिज करने का एकमात्र कारण इस तथ्य पर आधारित था कि लड़के की फिटनेस के कुछ पैमाने निर्धारित श्रेणी के भीतर नहीं थे. अदालत को बताया गया था कि लड़के की नवीनतम चिकित्सीय रिपोर्ट का इंतजार है.
न्यायमूर्ति पल्ली ने कहा कि इस स्तर पर, यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि इस अदालत ने 27 सितंबर को पहले ही देखा था कि याचिकाकर्ता ने असाधारण चिकित्सा परिस्थितियों का हवाला दिया था और इस स्थिति के आलोक में मेरा विचार है कि उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति, जिसने छह और नौ अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी को प्रतिवादी संख्या-2 (आईएलबीएस) से उसकी ताजा चिकित्सा रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से दो दिनों की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए.
अदालत को बताया गया कि पहले की चिकित्सीय रिपोर्ट में लड़के के पैमाने निर्धारित सीमा के भीतर नहीं थे और वह यकृत दान करने के लिए फिट नहीं था. अदालत ने अस्पताल को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि सभी नवीनतम चिकित्सा रिपोर्ट की प्रतियां, इलाज करने वाले डॉक्टरों की राय के साथ समिति के समक्ष पेश की जाएं.
अदालत ने पहले दिल्ली सरकार और आईएलबीएस को लड़के की याचिका पर नोटिस जारी किया था. लड़ने ने याचिका में बीमार पिता को अपने यकृत का हिस्सा दान करने की अनुमति मांगी थी. लड़के ने अपनी मां के जरिये अस्पताल के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें बीमार पिता को अपने यकृत का हिस्सा दान करने के लिए उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया था.
याचिकाकर्ता ने कहा कि अस्पताल के प्राधिकारियों ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है क्योंकि नियम असाधारण परिस्थितियों में एक नाबालिग को यकृत का हिस्सा दान करने की अनुमति देता है, लेकिन इस पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है. याचिका में कहा गया है कि लड़के की मां और बड़े भाई को चिकित्सकीय आधार पर अंगदान करने से मना कर दिया गया और अब उसे भी इसके लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया गया है.
याचिका में कहा गया है कि इस लड़के का मामला एक अपवाद है क्योंकि चिकित्सकों की राय के अनुसार तत्काल प्रत्यारोपण जरूरी है और इसलिए आवश्यक अनुमति दी जानी चाहिए. मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम के अनुसार, एक अवयस्क के मानव अंग या ऊतक दान करने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है और एक नाबालिग को भी सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से अंग और ऊतक दान करने की अनुमति है.
याचिका में कहा गया है कि मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम, 2014 के नियम 5 (3)(जी) के अनुसार सक्षम प्राधिकारियों की पूर्व मंजूरी और विस्तृत तरीके से इसे न्यायोचित ठहराने की चिकित्सीय आधार के तहत सिफारिश के अलावा नाबालिग को जीवित अंग या उत्तक दान करने की अनुमति नहीं है.
(पीटीआई-भाषा)