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Centre ordinance row: अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची दिल्ली सरकार, अध्यादेश को चुनौती - मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

दिल्ली की सेवाओं को लेकर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. उसने अपील दायर कर कोर्ट से अध्यादेश को रद्द करने की मांग की है.

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Published : Jun 30, 2023, 5:27 PM IST

Updated : Jun 30, 2023, 10:21 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है. सरकार ने दायर अपनी अपील में कहा है कि केंद्र का अध्यादेश असंवैधानिक है और इसे तुरंत रद्द किया जाना चाहिए. अधिकारियों ने कहा कि दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

इससे पहले पार्टी ने 11 जून को अध्यादेश के खिलाफ महारैली की थी. केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में IAS और दानिक्स अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया था.

दिल्ली सरकार ने अध्यादेश की इन धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती दी है...

  1. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 3ए यह निर्धारित करती है कि राज्य सूची की प्रविष्टि 41 अब दिल्ली की विधानसभा के लिए उपलब्ध नहीं होगी.
  2. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45ई से 45एच के अनुसार दिल्ली सरकार में काम करने वाले अधिकारियों पर एलजी का कंट्रोल है और अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और अनुशासन सहित मामलों पर एलजी को सिफारिशें करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन करती है.
  3. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 41 में जीएनसीटीडी अधिनियम के भाग 4ए से संबंधित मामलों में एलजी के स्वविवेक का प्रावधान है.
  4. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45डी निर्धारित करती है कि किसी अन्य कानून के बावजूद, दिल्ली सरकार में कोई भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या कोई वैधानिक निकाय का गठन और उसके सभी सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
  5. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45 के(3) और 45के(5) के तहत ब्यूरोक्रेट्स और एलजी को मंत्रिपरिषद और प्रभारी मंत्रियों द्वारा लिए गए निर्णयों को रद्द करने की अनुमति है.
  6. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45के (1) के तहत ब्यूरोक्रेट्स को कैबिनेट नोट्स को अंतिम रूप देने का अधिकार है और उन्हें मंत्रिपरिषद द्वारा विचार किए जाने से पहले किसी भी प्रस्ताव रोकने की अनुमति है.

CM केजरीवाल ने बताया था गैरकानूनीः केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के अगले ही दिन गत 20 मई को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ग्रीष्म अवकाश के चलते सुप्रीम कोर्ट बंद हुआ है और कुछ घंटों बाद ही अध्यादेश लाकर कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया. यह गैरकानूनी है और जनतंत्र के खिलाफ है. हम कोर्ट जाएंगे.

यह भी पढ़ेंः Centre ordinance row: 3 जुलाई को CM केजरीवाल अपने सभी मंत्री और विधायक संग जलाएंगे अध्यादेश की प्रतियां

सुप्रीम कोर्ट ने चुनी हुई सरकार को बताया था दिल्ली का बॉसः केजरीवाल सरकार की केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को चुनी हुई सरकार को दिल्ली का बॉस बताया था. दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंप दिया था. इसके एक सप्ताह बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाया था.

क्या है केंद्र सरकार का अध्यादेशः राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधित ऑर्डिनेंस) 2023 के जरिए केंद्र सरकार ने एक नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया है. यह कमेटी अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और सेवा से जुड़े फैसले करेगी. इसमें मुख्यमंत्री को प्रमुख बनाने की बात कही गई है, लेकिन फैसला बहुमत से होगा.

नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह विभाग के सदस्य होंगे. किसी भी विवाद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा. केंद्र के अधीन आने वाले विषयों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में यह अथॉरिटी ग्रुप ए और दिल्ली में सेवा दे रहे दानिक्स अधिकारियों के तबादले नियुक्ति की सिफारिश करेंगी. जिस पर अंतिम मुहर उपराज्यपाल की लगाएंगे. इस अध्यादेश को 6 महीने में संसद से पास करना होगा इसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा.

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है. सरकार ने दायर अपनी अपील में कहा है कि केंद्र का अध्यादेश असंवैधानिक है और इसे तुरंत रद्द किया जाना चाहिए. अधिकारियों ने कहा कि दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

इससे पहले पार्टी ने 11 जून को अध्यादेश के खिलाफ महारैली की थी. केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में IAS और दानिक्स अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया था.

दिल्ली सरकार ने अध्यादेश की इन धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती दी है...

  1. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 3ए यह निर्धारित करती है कि राज्य सूची की प्रविष्टि 41 अब दिल्ली की विधानसभा के लिए उपलब्ध नहीं होगी.
  2. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45ई से 45एच के अनुसार दिल्ली सरकार में काम करने वाले अधिकारियों पर एलजी का कंट्रोल है और अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और अनुशासन सहित मामलों पर एलजी को सिफारिशें करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन करती है.
  3. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 41 में जीएनसीटीडी अधिनियम के भाग 4ए से संबंधित मामलों में एलजी के स्वविवेक का प्रावधान है.
  4. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45डी निर्धारित करती है कि किसी अन्य कानून के बावजूद, दिल्ली सरकार में कोई भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या कोई वैधानिक निकाय का गठन और उसके सभी सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
  5. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45 के(3) और 45के(5) के तहत ब्यूरोक्रेट्स और एलजी को मंत्रिपरिषद और प्रभारी मंत्रियों द्वारा लिए गए निर्णयों को रद्द करने की अनुमति है.
  6. जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45के (1) के तहत ब्यूरोक्रेट्स को कैबिनेट नोट्स को अंतिम रूप देने का अधिकार है और उन्हें मंत्रिपरिषद द्वारा विचार किए जाने से पहले किसी भी प्रस्ताव रोकने की अनुमति है.

CM केजरीवाल ने बताया था गैरकानूनीः केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के अगले ही दिन गत 20 मई को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ग्रीष्म अवकाश के चलते सुप्रीम कोर्ट बंद हुआ है और कुछ घंटों बाद ही अध्यादेश लाकर कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया. यह गैरकानूनी है और जनतंत्र के खिलाफ है. हम कोर्ट जाएंगे.

यह भी पढ़ेंः Centre ordinance row: 3 जुलाई को CM केजरीवाल अपने सभी मंत्री और विधायक संग जलाएंगे अध्यादेश की प्रतियां

सुप्रीम कोर्ट ने चुनी हुई सरकार को बताया था दिल्ली का बॉसः केजरीवाल सरकार की केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को चुनी हुई सरकार को दिल्ली का बॉस बताया था. दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंप दिया था. इसके एक सप्ताह बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाया था.

क्या है केंद्र सरकार का अध्यादेशः राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधित ऑर्डिनेंस) 2023 के जरिए केंद्र सरकार ने एक नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी का गठन किया है. यह कमेटी अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग और सेवा से जुड़े फैसले करेगी. इसमें मुख्यमंत्री को प्रमुख बनाने की बात कही गई है, लेकिन फैसला बहुमत से होगा.

नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह विभाग के सदस्य होंगे. किसी भी विवाद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम होगा. केंद्र के अधीन आने वाले विषयों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में यह अथॉरिटी ग्रुप ए और दिल्ली में सेवा दे रहे दानिक्स अधिकारियों के तबादले नियुक्ति की सिफारिश करेंगी. जिस पर अंतिम मुहर उपराज्यपाल की लगाएंगे. इस अध्यादेश को 6 महीने में संसद से पास करना होगा इसके बाद यह कानून का रूप ले लेगा.

Last Updated : Jun 30, 2023, 10:21 PM IST
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