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Raini Disaster: 3 घंटे पहले ही मिल गए थे 'तबाही' के संकेत, सेंसर लगा होता तो बच सकती थी 204 जिंदगियां - Chamoli Flash Floods

Chamoli Raini Village Disaster देहरादून वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने रैणी आपदा पर नया खुलासा किया है. उनका कहना है कि जिस ग्लेशियर के टूटने से आपदा आई, उस ग्लेशियर में 3 घंटे से हलचल हो रही थी. इसकी जानकारी वाडिया द्वारा लगाए गए इक्विपमेंट में रिकॉर्ड हुआ है. Chamoli Flash Floods

Raini Disaster
रैणी आपदा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 28, 2023, 7:36 PM IST

Updated : Aug 28, 2023, 10:56 PM IST

3 घंटे पहले ही मिल गए थे रैणी आपदा के संकेत.

देहरादून (उत्तराखंड): चमोली जिले के तपोवन में 7 फरवरी 2021 को आई भीषण आपदा का दंश आज भी लोगों के जहन में जिंदा है. आपदा में रैणी गांव के पास ऋषि गंगा नदी में आए जल सैलाब ने भारी तबाही मचाई थी. इस आपदा में ना सिर्फ 204 लोगों की मौत हुई थी, बल्कि कई विद्युत परियोजनाओं को भी भारी नुकसान हुआ था. हालांकि, इस तबाही की हर छोटी-बड़ी वजह को जानने के लिए वैज्ञानिकों का रिसर्च लगातार जारी है. इस बीच वैज्ञानिकों को आपदा से जुड़ी कुछ खास जानकारियां हाथ लगी हैं. इसके तहत अब ऋषिगंगा-धौलीगंगा बेसिन और गंगोत्री बेसिन में स्टेशन लगाकर मॉनिटरिंग की जा रही है.

Raini Disaster
रैणी त्रासदी की पूरी कहानी.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, ग्लेशियर के जिस टुकड़े के गिरने से भीषण आपदा आई थी, उस ग्लेशियर में करीब तीन घंटे तक हलचल हो रही थी. ऐसे में अगर उस क्षेत्र में सेंसर लगाया गया होता तो उस तबाही से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था. दरअसल, इस आपदा में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की तरफ से तपोवन में लगाया गया सिस्मोलॉजिकल स्टेशन भी मलबे की चपेट में आ गया था. इसके बाद जब स्टेशन में लगे सेस्मोमीटर इक्विपमेंट से डाटा लिया गया तो ग्लेशियर में हलचल की जानकारी मिली.

Raini Disaster
रौंथी पर्वत से ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा में जल प्रलय आया था.

रैणी आपदा पर अध्ययन रिपोर्टः रैणी आपदा के अध्ययन को लेकर सरकार को सौंपी रिपोर्ट में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कहा कि रौंथी पर्वत से जो चट्टान और ग्लेशियर टूटा, वो सीधे रौंथी गदेरे में जा गिरा था. रौंथी गदेरा समुद्र तल से 5600 मीटर की ऊंचाई पर है. ग्लेशियर और चट्टान के गिरने से इतना तेज कंपन्न हुआ कि रौंथी पर्वत के छोर के दोनों तरफ पर जमी ताजी बर्फ भी खिसकने लगी. इसके बाद रौंथी पर्वत से टूटा ग्लेशियर और चट्टान बर्फ के साथ तेजी से नीचे की तरफ बहने लगे. वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में बताया कि यह पूरा घटनाक्रम कुछ ही मिनटों का था. लेकिन रौंथी पर्वत से टूटे ग्लेशियर और चट्टान में टूटने से पहले ही हलचल शुरू हो गई थी.
ये भी पढ़ेंः सिर्फ बारिश ही नहीं... उत्तराखंड-हिमाचल में भूस्खलन के लिए ये पांच वजह भी हैं जिम्मेदार

रैणी आपदा में गई 204 जानें: 7 फरवरी 2021 को तपोवन क्षेत्र में आई भीषण आपदा के चलते ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना में कार्य करने वाले 204 कर्मचारियों की मौत हो गई थी. इस आपदा में ना सिर्फ लोगों की जान गई बल्कि हजारों करोड़ रुपए का भी नुकसान हुआ. इस जल प्रलय में हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था. साथ ही तपोवन परियोजना को भी बड़ा नुकसान पहुंचा था.

Raini Disaster
रैणी आपदा में हजारों करोड़ों की ऋषिगंगा और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना भी तबाह हो गई थी.

सेस्मोमीटर में रिकॉर्ड डाटा से हुआ खुलासा: बता दें कि ग्लेशियर रिसर्च के लिए अभी तक मुख्य रूप से हाइड्रोलॉजिकल और मेट्रोलॉजिकल डेटा का एनालिसिस कर अध्ययन किया जाता था. लेकिन साल 2021 में जब 27 मिलियन क्यूबिक मीटर बर्फ और रॉक मास, करीब 5600 मीटर की ऊंचाई से गिरा तो उसने बड़ी तबाही मचाई. हालांकि, उक्त जगह पर भूकंप को देखते हुए तपोवन में सिस्मोलॉजिकल स्टेशन लगाया गया था. आपदा के बाद जब सेस्मोमीटर में रिकॉर्ड डाटा पर रिसर्च किया गया तो पता चला कि ग्लेशियर का टुकड़ा तुरंत नीचे नहीं गिरा था. बल्कि कुछ घंटे तक ग्लेशियर में कंपन्न हो रहा था.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में ग्लेशियर झीलों से खतरा नहीं! ये लेक मचाते हैं तबाही

अर्ली वार्निंग सिस्टम: वाडिया के डायरेक्टर डॉ. काला चंद साईं ने बताया कि सेस्मोमीटर में रिकॉर्ड डाटा के अध्ययन से पता चला कि करीब तीन घंटे तक ग्लेशियर में हलचल होता रहा. ये हलचल होनी वाली घटना का सिग्नल दे रहा था. लेकिन अगर सेस्मोमीटर अर्ली वार्निंग सिस्टम जुड़ा होता तो इसकी जानकारी पहले ही मिल जाती. ऐसे में भविष्य में में होने वाली ऐसी घटनाओं की पहले ही जानकारी मिल सके, इसके लिए वाडिया अध्ययन में जुटा हुआ है. इसके लिए ऋषिगांगा- धौलीगंगा में हाइड्रोलॉजिकल स्टेशन, मेट्रोलॉजिकल स्टेशन के साथ ही सिस्मोलॉजिकल स्टेशन को जोड़ रहे हैं. ताकि वहां अर्ली वार्निंग सिस्टम को डेवलप किया जा सके.

Raini Disaster
इस आपदा में 204 लोगों की मौत हो गई थी.

ऐसे मिल सकती है घटना की जानकारी: वाडिया डायरेक्टर का कहना है कि अगर तीनों स्टेशन के डाटा को लगातार मॉनिटर करते रहेंगे तो इस तरह की घटना होने से पहले ही जानकारी मिल सकेगी. उन्होंने कहा कि वाडिया के पास जितना रिसोर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर है, उसका इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि, कई बेसिन ऐसे हैं, जिनका शोध करना है. उत्तराखंड में करीब एक हजार ग्लेशियर हैं, लेकिन सभी का शोध नहीं किया जा सकता. ऐसे में लिमिटेड रिसोर्स होने के कारण ऋषिगंगा-धोली गंगा बेसिन में रिसर्च चल रहा है. साथ ही गंगोत्री कैचमेंट में भी रिसर्च शुरू कर दी गई है.
ये भी पढ़ेंः Raini Disaster: HC में लापता लोगों की तलाश को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई, कोर्ट ने केंद्र और राज्य से मांगा जवाब

3 घंटे पहले ही मिल गए थे रैणी आपदा के संकेत.

देहरादून (उत्तराखंड): चमोली जिले के तपोवन में 7 फरवरी 2021 को आई भीषण आपदा का दंश आज भी लोगों के जहन में जिंदा है. आपदा में रैणी गांव के पास ऋषि गंगा नदी में आए जल सैलाब ने भारी तबाही मचाई थी. इस आपदा में ना सिर्फ 204 लोगों की मौत हुई थी, बल्कि कई विद्युत परियोजनाओं को भी भारी नुकसान हुआ था. हालांकि, इस तबाही की हर छोटी-बड़ी वजह को जानने के लिए वैज्ञानिकों का रिसर्च लगातार जारी है. इस बीच वैज्ञानिकों को आपदा से जुड़ी कुछ खास जानकारियां हाथ लगी हैं. इसके तहत अब ऋषिगंगा-धौलीगंगा बेसिन और गंगोत्री बेसिन में स्टेशन लगाकर मॉनिटरिंग की जा रही है.

Raini Disaster
रैणी त्रासदी की पूरी कहानी.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, ग्लेशियर के जिस टुकड़े के गिरने से भीषण आपदा आई थी, उस ग्लेशियर में करीब तीन घंटे तक हलचल हो रही थी. ऐसे में अगर उस क्षेत्र में सेंसर लगाया गया होता तो उस तबाही से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता था. दरअसल, इस आपदा में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की तरफ से तपोवन में लगाया गया सिस्मोलॉजिकल स्टेशन भी मलबे की चपेट में आ गया था. इसके बाद जब स्टेशन में लगे सेस्मोमीटर इक्विपमेंट से डाटा लिया गया तो ग्लेशियर में हलचल की जानकारी मिली.

Raini Disaster
रौंथी पर्वत से ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा में जल प्रलय आया था.

रैणी आपदा पर अध्ययन रिपोर्टः रैणी आपदा के अध्ययन को लेकर सरकार को सौंपी रिपोर्ट में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कहा कि रौंथी पर्वत से जो चट्टान और ग्लेशियर टूटा, वो सीधे रौंथी गदेरे में जा गिरा था. रौंथी गदेरा समुद्र तल से 5600 मीटर की ऊंचाई पर है. ग्लेशियर और चट्टान के गिरने से इतना तेज कंपन्न हुआ कि रौंथी पर्वत के छोर के दोनों तरफ पर जमी ताजी बर्फ भी खिसकने लगी. इसके बाद रौंथी पर्वत से टूटा ग्लेशियर और चट्टान बर्फ के साथ तेजी से नीचे की तरफ बहने लगे. वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में बताया कि यह पूरा घटनाक्रम कुछ ही मिनटों का था. लेकिन रौंथी पर्वत से टूटे ग्लेशियर और चट्टान में टूटने से पहले ही हलचल शुरू हो गई थी.
ये भी पढ़ेंः सिर्फ बारिश ही नहीं... उत्तराखंड-हिमाचल में भूस्खलन के लिए ये पांच वजह भी हैं जिम्मेदार

रैणी आपदा में गई 204 जानें: 7 फरवरी 2021 को तपोवन क्षेत्र में आई भीषण आपदा के चलते ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना में कार्य करने वाले 204 कर्मचारियों की मौत हो गई थी. इस आपदा में ना सिर्फ लोगों की जान गई बल्कि हजारों करोड़ रुपए का भी नुकसान हुआ. इस जल प्रलय में हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था. साथ ही तपोवन परियोजना को भी बड़ा नुकसान पहुंचा था.

Raini Disaster
रैणी आपदा में हजारों करोड़ों की ऋषिगंगा और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना भी तबाह हो गई थी.

सेस्मोमीटर में रिकॉर्ड डाटा से हुआ खुलासा: बता दें कि ग्लेशियर रिसर्च के लिए अभी तक मुख्य रूप से हाइड्रोलॉजिकल और मेट्रोलॉजिकल डेटा का एनालिसिस कर अध्ययन किया जाता था. लेकिन साल 2021 में जब 27 मिलियन क्यूबिक मीटर बर्फ और रॉक मास, करीब 5600 मीटर की ऊंचाई से गिरा तो उसने बड़ी तबाही मचाई. हालांकि, उक्त जगह पर भूकंप को देखते हुए तपोवन में सिस्मोलॉजिकल स्टेशन लगाया गया था. आपदा के बाद जब सेस्मोमीटर में रिकॉर्ड डाटा पर रिसर्च किया गया तो पता चला कि ग्लेशियर का टुकड़ा तुरंत नीचे नहीं गिरा था. बल्कि कुछ घंटे तक ग्लेशियर में कंपन्न हो रहा था.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में ग्लेशियर झीलों से खतरा नहीं! ये लेक मचाते हैं तबाही

अर्ली वार्निंग सिस्टम: वाडिया के डायरेक्टर डॉ. काला चंद साईं ने बताया कि सेस्मोमीटर में रिकॉर्ड डाटा के अध्ययन से पता चला कि करीब तीन घंटे तक ग्लेशियर में हलचल होता रहा. ये हलचल होनी वाली घटना का सिग्नल दे रहा था. लेकिन अगर सेस्मोमीटर अर्ली वार्निंग सिस्टम जुड़ा होता तो इसकी जानकारी पहले ही मिल जाती. ऐसे में भविष्य में में होने वाली ऐसी घटनाओं की पहले ही जानकारी मिल सके, इसके लिए वाडिया अध्ययन में जुटा हुआ है. इसके लिए ऋषिगांगा- धौलीगंगा में हाइड्रोलॉजिकल स्टेशन, मेट्रोलॉजिकल स्टेशन के साथ ही सिस्मोलॉजिकल स्टेशन को जोड़ रहे हैं. ताकि वहां अर्ली वार्निंग सिस्टम को डेवलप किया जा सके.

Raini Disaster
इस आपदा में 204 लोगों की मौत हो गई थी.

ऐसे मिल सकती है घटना की जानकारी: वाडिया डायरेक्टर का कहना है कि अगर तीनों स्टेशन के डाटा को लगातार मॉनिटर करते रहेंगे तो इस तरह की घटना होने से पहले ही जानकारी मिल सकेगी. उन्होंने कहा कि वाडिया के पास जितना रिसोर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर है, उसका इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि, कई बेसिन ऐसे हैं, जिनका शोध करना है. उत्तराखंड में करीब एक हजार ग्लेशियर हैं, लेकिन सभी का शोध नहीं किया जा सकता. ऐसे में लिमिटेड रिसोर्स होने के कारण ऋषिगंगा-धोली गंगा बेसिन में रिसर्च चल रहा है. साथ ही गंगोत्री कैचमेंट में भी रिसर्च शुरू कर दी गई है.
ये भी पढ़ेंः Raini Disaster: HC में लापता लोगों की तलाश को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई, कोर्ट ने केंद्र और राज्य से मांगा जवाब

Last Updated : Aug 28, 2023, 10:56 PM IST
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