देहरादून (उत्तराखंड): देहरादून की लीची का ना सिर्फ उत्पादन घटा है, बल्कि इसके स्वाद और महक में भी वो पुरानी बात नहीं रही. नतीजतन एक शानदार फल के रूप में देहरादून की लीची का नाम लोगों की जुबां से बिसराया जाने लगा है. उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद लीची के बुरे दिन शुरू हुए. आइए आपको पूरी कहानी बताते हैं.
कभी लीची की खुशबू से महकती थी देहरादून की गलियां: वो दिन अब बीत गए जब, देहरादून के गली मोहल्ले गर्मियों के मौसम में लीचियों की खुशबू से महक उठते थे. गहरे लाल रंग की लीचियां इस कदर मीठी होती थी कि चीनी भी फीकी लगे. ना केवल इंसान बल्कि भौंरे और कई पक्षी भी इसे चखने के लिए लालायित दिखते थे. बाजारों में आने से पहले ही लीची के बगीचों में ही लोग इसकी खरीदारी शुरू कर देते थे.
एक्सपोर्ट होती थी देहरादून की लीची: वक्त बीतने के साथ देहरादून की लीची को लेकर लोगों में वैसी उत्सुकता अब नहीं दिखाई देती. इसकी बड़ी वजह देहरादून की लीची की गुणवत्ता में आई कमी को माना जा सकता है. यही नहीं इसके उत्पादन में भी भारी कमी ने लीची के बाजार को ठंडा कर दिया है. आपको बता दें कि गर्मियों के मौसम में लीची देहरादून का सबसे खास फल मानी जाती थी. यहां से लीची का निर्यात न केवल देश भर के राज्यों में होता था, बल्कि विदेशों में भी लीची एक्सपोर्ट की जाती थी. जानिए राजधानी देहरादून की पहचान रही लीची को लेकर क्या रही स्थिति.
अब 150 रुपए किलो बिकती है लीची: अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में 80 के दशक के दौरान देहरादून क्षेत्र में 6 हज़ार से ज्यादा लीची के बगीचे थे. इस क्षेत्र में हजारों मीट्रिक टन लीची का उत्पादन किया जाता था. उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद लीची के बगीचों में कॉलोनियां बस गईं. देहरादून शहरी क्षेत्र में अब लीची के बाग गिने चुने ही बचे हैं. शहरी क्षेत्र में करीब 80 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही लीची का उत्पादन होता है. देहरादून जिले में झाझरा, हरबर्टपुर, विकासनगर, सहसपुर और डोईवाला क्षेत्र में लीची के बागीचे बचे हैं. जिले में करीब 250 हेक्टेयर में ही अब लीची हो रही है, जहां करीब 550 मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है. कभी 30 से 40 रुपये किलो वाली दून की लीची आज 150 रुपये /किलो बिक रही है.
इस साल भी लीची को हुआ है भारी नुकसान: वैसे तो लीची की फसल साल दर साल बेहद कम हो रही है, लेकिन इस साल लीची पिछले साल के मुकाबले और भी खराब स्थिति में है. ऐसा मौसम की बेरुखी के कारण हुआ है. एक तरफ जहां गर्मी के फल को पर्याप्त गर्मी का मौसम नहीं मिल पाया है तो वहीं बेमौसम बारिश और तेज हवाओं के कारण यह फसल बर्बाद हो रही है. एक आकलन के अनुसार इस साल अब तक करीब 10 प्रतिशत लीची तो तेज हवाओं के कारण समय से पहले ही गिर गई है.
उद्यान विभाग के अफसर क्या कहते हैं: उद्यान विभाग के अधिकारी लीची की इस खराब स्थिति के पीछे पर्यावरणीय कारण मानते हैं. उद्यान विभाग में सहायक विकास अधिकारी दीपक पुरोहित कहते हैं कि मौसम ने जिस तरह रुख बदला है, उससे लीची की फसल को भारी नुकसान हुआ है और लगातार लीची की गुणवत्ता और उत्पादन में कमी आई है.
लीची की दुर्दशा की ये रही बड़ी वजह: देहरादून में लीची की दुर्दशा की सबसे बड़ी वजह राजधानी बनने के बाद यहां पर कंक्रीट का जंगल तैयार होना है. विकास के नाम पर जिस तरह अंधाधुंध निर्माण किए गए, उसने लीची के कारोबार को करीब करीब पूरी तरह खत्म कर दिया. एक तरफ बेतरतीब निर्माण हुआ तो दूसरी तरफ लीची के बगीचों पर खूब आरियां चलाई गई. बड़ी बात यह है कि वन विभाग से लेकर उद्यान विभाग ने भी न जाने कैसे सैकड़ों और हजारों पेड़ों की बलि चढ़ाने की अनुमति दे दी. इसके अलावा एक तरफ जहां लीची के यह बगीचे पुराने होते चले गए तो दूसरी तरफ लीची के नए प्लांटेशन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. जिसके कारण लीचियों की गुणवत्ता को नहीं बनाए रखा जा सका. जानिए क्या है देहरादून की लीची की खासियत.
ये है दून की लीची की खासियत: देहरादून की लीची की मिठास ही इसकी सबसे बड़ी खासियत है. यहां की लीची की गुठली छोटी और इसका गूदा वाला भाग ज्यादा मोटा होता है. दून की लीची बेदाग और गहरे लाल रंग की होने के कारण खूब पसंद की जाती है. इस लीची की महक भी सामान्य लीचियों के मुकाबले ज्यादा होती है. दून की लीची का आकार भी बड़ा होता है, साथ ही यह काफी दिनों तक खराब नहीं होती. देहरादून में लीची के ज्यादा बगीचे होने के कारण इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन भी यहां की खूबी थी.
देहरादून में अब यहां हैं लीची के बगीचे: देहरादून में अभी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर लीची के बड़े बाग मौजूद हैं. हालांकि देहरादून शहर में घंटाघर या इसके आसपास के क्षेत्रों में लीची के बगीचे करीब-करीब पूरी तरह से खत्म हो गए हैं. लेकिन शहर के छोटे-छोटे हिस्सों में बगीचे मौजूद हैं. देहरादून जिले में अधिकतर बड़े बगीचे शहर से दूर झाझरा, सहसपुर, विकासनगर, डोईवाला या हरबर्टपुर में मौजूद हैं. उत्पादन कम होने के चलते इसके दामों में भी बढ़ोत्तरी देखी गई है. पहले जो लीची 30 से ₹40 किलो मिलती थी, वह देहरादून के बाजार में 100 से ₹150 किलो तक बिकती है.
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अब देहरादून में बिक रही बाहर की लीची: देहरादून में जो बगीचे अब भी मौजूद हैं, उनमें भी अब वह गुणवत्ता और उत्पादन नहीं रह गया है. इसके पीछे बड़ी वजह पर्यावरण या मौसम में आए बदलाव को माना जा सकता है. देहरादून का मौसम पिछले 20 सालों में यह ज्यादा बदला है और इसका असर लीची पर भी पड़ा है. स्थिति यह है कि देहरादून की लीची जिसे दूसरे प्रदेशों और विदेशों तक में भेजा जाता था वो आज देहरादून के बाजारों में भी बड़ी मुश्किल से मिलती है. खास बात यह है कि अब रामनगर समेत दूसरे प्रदेशों और क्षेत्रों की लीची को देहरादून में बेचा जाता है.