हैदराबाद: चीन की विकास की रफ्तार मंद पड़ रही है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जो विकास दर 20 फीसदी के करीब थी, वो तीसरी तिमाही तक आते-आते हांफने लगी है. सवाल है कि क्या चीन की अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं ? क्या इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है ? भारत पर इसका क्या असर पड़ सकता है? चीन की मंदी भारत के लिए कैसे एक मौका भी है? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)
चीन को डरा रहे विकास के आंकड़े
सोमवार को चीन के National Bureau of Statistics ने जुलाई से सितंबर की तिमाही के आंकड़े जारी किए हैं. यह चीन की चिंता का सबसे बड़ा सबब है. सितंबर 2021 को खत्म तिमाही में चीन की विकास दर यानि जीडीपी ग्रोथ 4.9% रही है. चीन में वित्त वर्ष की शुरुआत एक जनवरी से होती है जबकि भारत में एक अप्रैल से. इस लिहाज से जुलाई से सितंबर तक चीन के वित्तीय वर्ष की तीसरी और भारत की दूसरी तिमाही है. 4.9 की विकास दर विशेषज्ञों के अनुमान के इर्द गिर्द भी नही हैं.
वैसे बीते साल की तीसरी तिमाही में भी चीन की विकास दर 4.9 के आस-पास ही थी लेकिन उस समय चीन समेत पूरी दुनिया पर कोरोना संकट हावी था. ये आंकड़े इसलिये भी डरा रहे हैं क्योंकि बीती तिमाही यानि अप्रैल से जून के बीच विकास दर 7.9 फीसदी थी. वहीं नए वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 18.3 फीसदी की शानदार बढ़त दर्ज की गई थी.
धीमी विकास दर की वजह क्या है ?
कोरोना संकट के दौर से गुजरती दुनिया की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौटने के संकेत दे रही है लेकिन चीन के साथ मौजूदा वित्त वर्ष में उल्टा हो रहा है. पहली तिमाही में 18.3 की विकास दर तीसरी तिमाही में 4.9 पर पहुंच गई है. जबकि कोरोना को मात देने का दावा हो या फिर तालाबंदी खोलने और कोरोना से जुड़ी दूसरी पाबंदियों को व्यावसायिक क्षेत्रों में कम करना, चीन ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हर कदम दुनिया के बाकी देशों से पहले उठाया. जिसका फायदा उसे वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मिला भी. लेकिन पहली तिमाही के बाद चीन के सामने कई चुनौतियों आई जिसके बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चीन के लिए चुनौती बन गया है.
1) कोयला संकट- कोरोना से लगे लॉकडाउन के बाद जब व्यवसाय खुलने लगे तो बिजली की मांग बढ़ने लगी. जिससे कोयले की मांग बढ़ी और कीमत में भी इजाफा हुआ. चीन के कुल कोयला उत्पादन में 30 फीसदी योगदान शानशी प्रांत देता है, लेकिन इस बार भारी बारिश के बाद शानशी में आई बाढ़ से कोयला उत्पादन में कमी आ गई. जिससे कीमतें और बढ़ गईं.
2) बिजली संकट- चीन अपने उद्योगों की बदौलत दुनिया की सबसे तेज विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है. किसी भी चीज का बहुतायत में उत्पादन करके ही चीन इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था बना है. कोयले की कमी ने बिजली संकट पैदा किया और घर से लेकर उद्योगों तक को मिलने वाली बिजली में कटौती करनी पड़ी. जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ा.
3) प्रदूषण कम करना- चीन दुनिया का सबसे बड़ा प्रदूषक देश भी है. जिस देश में दुनिया की सबसे ज्यादा फैक्ट्रियां चल रही हों वहां प्रदूषण होना लाजमी है. ऐसे में सरकार ने 2060 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के स्तर पर पहुंचने का लक्ष्य रखा है और इसके लिए उसने बीते कुछ समय से कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए थे. जिसके तहत बिजली की राशनिंग समेत तमाम वो कदम उठाना शामिल है जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो. यानि कोयले का इस्तेमाल कम से कम करने के लिए उठाए गए कदमों से बिजली कटौती जरूरी बन गई.
4) प्रॉपर्टी सेक्टर- चीन के विकास की मौजूदा सुस्त रफ्तार के लिए चीन का प्रॉपर्टी सेक्टर भी धीमी रफ्तार जिम्मेदार है. जो अपने कर्जों को और ना बढ़ने देने के लिए दबाव बना रहा है. ताजा उदाहरण चाइना एवरग्रांडे (china evergrande) ग्रुप का है जिसने 300 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज ले रखा है और वो दिवालिया होने की कगार पर है. एक अन्य रियल एस्टेट कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है और इसी राह पर कुछ और कंपनियां भी हैं.
जानकार मानते हैं कि प्रॉपर्टी सेक्टर की मंदी का असर निर्माण कार्य से पैदा होने वाले रोजगार, बिल्डिंग मैटिरियल, घर की सजावट में इस्तेमाल होने वाली चीजों के उत्पादन और उससे संबंधित रोजगार पर पड़ेगा. जो चीन के लिए और भी मुश्किलें ला सकता है.
5) टेक और गेमिंग इंडस्ट्री- टेक और गेमिंग इंडस्ट्री भी सरकार के कुछ फैसलों के बाद मुश्किल में है. सरकार ने गेम खेलने वाले बच्चों की उम्र तय कर दी है ऐसे में इस इंडस्ट्री में रोजगार और उत्पादन पर असर पड़ने की नौबत आ गई है.
चीन की सरकार कितनी जिम्मेदार ?
चीन की जीडीपी का लगभग एक चौथाई हिस्सा रियल एस्टेट सेक्टर से आता है. चीन की सरकार ने कर्ज पर कंपनियों की निर्भरता कम करने के लिए पिछले साल एक कानून लागू किया. दरअसल सरकार चाहती थी कि कर्ज पर रियल एस्टेट सेक्टर की निर्भरता कम हो. इस कानून के तहत तीन नियम बनाए गए. कंपनियों की देनदारी उनकी कुल संपत्ति के 70 फीसदी से अधिक ना हो, कंपनी का कर्ज उसकी कुल पूंजी से अधिक ना हो और कंपनी छोटी अवधि के कर्ज को लिक्विट एसेट से चुका सके. इस नए कानून को थ्री रेड लाइन्स कहा गया.
इस कानून के हिसाब से चाइना एवरग्रांडे कंपनी और कर्ज नहीं ले सकती थी. सप्लायर्स को कंपनी पैसा नहीं दे पाई और बैंकों को ब्याज भी नहीं दे पाई. जो कि वो कर्ज लेकर करती थी, कंपनी पर पहले से ही अरबों डॉलर का कर्ज था. कंपनी को 15 लाख से अधिक लोगों ने पैसे दिए ताकि सपनों का घर अपना हो सके लेकिन अब उनका पैसा फंस गया है. देश की दूसरी कंपनियां भी इसी तरह की दिक्कतें झेल रही हैं, जानकार मानते हैं कि जल्द कुछ नहीं किया गया तो देर सवेर दिवालियां कंपनियों की फेहरिस्त बढ़ जाएगी.
जानकार मानते हैं कि रियल एस्टेट कंपनियां सरकार के भरोसे थीं उन्हें भरोसा था कि कर्ज पर कर्ज लेने के बाद मुसीबत आई तो सरकार मदद का हाथ बढ़ाएगी लेकिन उल्टा सरकार ने नए नियम कायदे बनाकर रियल एस्टेट की मुसीबतें बढ़ा दी. इसी तरह चीन के उद्योग बिजली और कोयले पर निर्भर थे तो वहां चीनी सरकार ने कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर बिजली कटौती और कोयले के इस्तेमाल में कमी का फैसला ले लिया.
इसके अलावा चीन में बढ़ती बुजुर्गों की आबादी और भविष्य में देश की आबादी में कमी होने की संभावनाओं को देखते हुए चीन सरकार ने तीन बच्चे पैदा करने को प्रोत्साहन दिया. चीन ने पहले एक और फिर दो बच्चों की नीति बनाई थी. लेकिन अतिरिक्त बच्चे पर होने वाले खर्च को लेकर चीनी फिक्रमंद हैं. जिसे देखते हुए सरकार ने कुछ और बेतुकी नीतियां बना दीं. बच्चे पालने का खर्च कम कम हो और लोग अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित हों इसके लिए सरकार ने ट्यूशन सेंटर बंद करने जैसे कदम उठाए, जिससे कई लोग बेरोजगार हुए.
एक और नियम के तहत वीडियो गेम नियामक ने 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर पाबंदी लगाई है और उनके वीडियो गेम खेलने का वक्त सीमित कर दिया है. जिससे इस सेक्टर में उत्पादन और फिर रोजगार पर असर पड़ना लाजमी है.
जानकार मानते हैं कि चीन की सरकार नई नीतियों को भविष्य में फायदेमंद मानकर लागू कर रही है भले इसके लिए विकास की रफ्तार कम करनी पड़े. हालांकि सरकार ये भी जानती है कि कोरोना महामारी से जूझती दुनिया के लगभग हर देश की विकास की रफ्तार कम ही रहेगी जिससे चीन और अन्य देशों की विकास की रफ्तार में अंतर कम ही होगा.
जीडीपी पर पड़ेगा असर
उत्पादन और रियल एस्टेट पर चीन की पूरी अर्थव्यवस्था टिकी हुई है. कोयला और बिजली संकट का सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा और चीन सरकार की कर्ज लेने को लेकर बनाई नीतियों का असर रियल एस्टेट पर. ऐसे में दोनों ही सेक्टर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं जिनका असर जीडीपी के आंकडों पर भी पड़ेगा. किसी एक क्षेत्र के कंधों पर विकास का इतना दबाव भी चीन के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है.
कुछ जानकार मानते हैं कि रियल एस्टेट पर पड़ी इस मार का व्यापक असर जीडीपी पर पड़ना लाजमी है जबकि कुछ जानकार मानते हैं कि व्यापक असर भले ना पड़े लेकिन चीन के लिए जोर का झटरा धीरे से हो सकता है.
इस तरह के केस में अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर पर असर पड़ता है क्योंकि अर्थव्यवस्था का हर सेक्टर डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है. कंपनी को कर्ज नहीं मिलता तो कच्चे माल की सप्लाई नहीं होती, साथ ही नए ग्राहक भी कंपनी में पैसा लगाने से हिचकिचाने लगते हैं जिसका सीधा असर उत्पादन से लेकर बाजार में कैश आने और रोजगार तक पर पड़ता है, जो जीडीपी के गिरते आंकड़ों के रूप में सामने आता है.
भारत समेत पूरी दुनिया पर क्या असर पड़ेगा ?
चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. खिलौनों से लेकर कपड़ों और दवाओं से लेकर सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स तक, वो दुनिया के कई देशों को निर्यात करता है. भारत समेत दुनिया के कई विकासशील देश इन सस्ते उत्पादों के लिए चीन पर निर्भर रहते हैं ऐसे में चीन की अर्थव्यस्था लड़खड़ाई तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा.
कोयले से लेकर बिजली की कमी को कई लोग भविष्य के चीन में ब्लैकआउट के रूप में देख रहे हैं. ऐसा हुआ तो चीन के कारखानों में उत्पादन ठप होगा और जिसका असर भारत समेत उन तमाम देशों और अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा जो चीन पर निर्भर हैं. सप्लाई चेन पर असर पड़ा तो असर व्यापक होगा और तमाम देशों की अर्थव्यवस्था के आंकडों पर इसका असर नजर आएगा.
भारत के लिए मौका भी है
इसी तरह चीन को सप्लाई करने वाले देशों की अर्थव्यवस्था पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि अगर चीन में उत्पादन ठप हुआ तो सप्लायर को उसका पैसा मिलना मुश्किल होगा. हालांकि भारत जैसे देशों के लिए ये एक मौका भी है. जानकार मानते हैं कि चीन में उत्पादन कम हुआ तो दुनियाभर के देश दूसरा विकल्प जरूर तलाशेंगे ताकि अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता रहे. ऐसे में भारत एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है जहां उत्पादन क्षमता भी है और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में वो चीन से भले पीछे हो लेकिन दुनिया भर की नजर इन दिनों भारत पर है.
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