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उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी भारत-चीन सेना के बीच 11वें दौर की वार्ता

पूर्वी लद्दाख में शुक्रवार को आयोजित वरिष्ठ कमांडर स्तर पर भारत-चीन वार्ता के ग्यारहवें दौर में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि उच्च स्तरीय चीन अध्ययन समूह में जमीनी स्तर के प्रतिनिधित्व की कमी अभी तक की सबसे कमजोर कड़ी है. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ रिपोर्ट.

भारत-चीन सेना
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Published : Apr 11, 2021, 12:44 AM IST

Updated : Apr 11, 2021, 1:55 AM IST

नई दिल्ली : भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के वरिष्ठ कमांडरों के बीच शुक्रवार को चुशुल में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर 13 घंचे लंबी बातचीत हुई. इसके परिणामस्वरूप दोनों पक्ष मौजूदा समझौतों एवं व्यवस्थाओं के अनुसार लंबित मुद्दों को शीघ्र निपटाने की आवश्यकता पर सहमत हुए हैं.

विदेश मामलों और रक्षा मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान से सामने आया है कि पूर्वी पैंगॉन्ग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट पर दो फेस-ऑफ बिंदुओं पर विघटन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद हालात बेहतर होने की उम्मीद के झूठा साबित कर दिया है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार शुक्रवार को दोनों देशों के बीच की वार्ता आगे नहीं बढ़ सकी और पैंगोंग त्सो विस्थापन पर कोई लाभ नहीं हो सका.

वार्ता के दौरान गोगरा और डेमचोक हॉट स्प्रिंग्स बिन्दु पर चर्च हुई, जिसमें कोई प्रगति नहीं हुई.

भारतीय परिप्रेक्ष्य से वार्ता को दौरान इस बात पर प्रकाश डाला गया कि चीन स्टडी ग्रुप (सीएसजी) में जमीनी स्तर की गतिशीलता के प्रतिनिधित्व की कमी के साथ एक विसंगति मौजूद है.

विश्लेषण विंग (RAW) के सदस्य के रूप में उच्च-स्तरीय CSG का नेतृत्व कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, सेना, नौसेना और IAF के उप-प्रमुख, और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और अनुसंधान और अनुसंधान प्रमुखों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने किया.

भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन, नवीन श्रीवास्तव, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, डीजीएमओ के एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) सहित स्थानीय सैन्य अधिकारियों ने किया, जो लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक भारत-चीन सीमा की रखवाली करती है. यहां सेना के साथ आईटीबीपी की टीमें संयुक्त रूप से काम करती हैं.

वहीं, चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दक्षिण शिनजियान सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लिन लियू ने किया.

बता दें कि 9 अप्रैल शुक्रवार की बैठक से पहले 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को भी दोनों देशों के बीच बैठकें हो चुकी हैं.

बातचीत से झड़प वाले बिंदुओं पर विघटन से भारतीय और चीनी सेना के लिए डी-एस्केलेशन बढ़ेगा, जिन्होंने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में अभूतपूर्व स्तर पर एलएसी के दोनों ओर लगभग 1,00,000 सैनिकों को तैनात किया है.

LAC के पास पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर 4-5 मई, 2020 को सीमा पर हुई झड़प के बाद चल रहे तनाव को दोनों देशों द्वारा कम दिया गया है.

पढ़ें - भारत-चीन पूर्वी लद्दाख में जमीनी स्तर पर स्थिरता बनाए रखने पर सहमत

हालांकि बातचीत की प्रगति ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है दोनों देशों को सीमा विवाद को निपाटने के लिए शीर्ष नेताओं की जरूरत पड़ेगी.

चीन1959 के दावे के आधार पर प्रदेशों को बहाल करने मांग करता रहा है, जिसे जिसे पहली बार पूर्व चीनी पीएम चाउ एल-लाई द्वारा प्रस्तावित किया गया था और उनके भारतीय समकक्ष जवाहरलाल नेहरू द्वारा ठुकरा दिया गया था.

नई दिल्ली : भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के वरिष्ठ कमांडरों के बीच शुक्रवार को चुशुल में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर 13 घंचे लंबी बातचीत हुई. इसके परिणामस्वरूप दोनों पक्ष मौजूदा समझौतों एवं व्यवस्थाओं के अनुसार लंबित मुद्दों को शीघ्र निपटाने की आवश्यकता पर सहमत हुए हैं.

विदेश मामलों और रक्षा मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान से सामने आया है कि पूर्वी पैंगॉन्ग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट पर दो फेस-ऑफ बिंदुओं पर विघटन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद हालात बेहतर होने की उम्मीद के झूठा साबित कर दिया है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार शुक्रवार को दोनों देशों के बीच की वार्ता आगे नहीं बढ़ सकी और पैंगोंग त्सो विस्थापन पर कोई लाभ नहीं हो सका.

वार्ता के दौरान गोगरा और डेमचोक हॉट स्प्रिंग्स बिन्दु पर चर्च हुई, जिसमें कोई प्रगति नहीं हुई.

भारतीय परिप्रेक्ष्य से वार्ता को दौरान इस बात पर प्रकाश डाला गया कि चीन स्टडी ग्रुप (सीएसजी) में जमीनी स्तर की गतिशीलता के प्रतिनिधित्व की कमी के साथ एक विसंगति मौजूद है.

विश्लेषण विंग (RAW) के सदस्य के रूप में उच्च-स्तरीय CSG का नेतृत्व कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, सेना, नौसेना और IAF के उप-प्रमुख, और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और अनुसंधान और अनुसंधान प्रमुखों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने किया.

भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन, नवीन श्रीवास्तव, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, डीजीएमओ के एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) सहित स्थानीय सैन्य अधिकारियों ने किया, जो लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक भारत-चीन सीमा की रखवाली करती है. यहां सेना के साथ आईटीबीपी की टीमें संयुक्त रूप से काम करती हैं.

वहीं, चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दक्षिण शिनजियान सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लिन लियू ने किया.

बता दें कि 9 अप्रैल शुक्रवार की बैठक से पहले 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को भी दोनों देशों के बीच बैठकें हो चुकी हैं.

बातचीत से झड़प वाले बिंदुओं पर विघटन से भारतीय और चीनी सेना के लिए डी-एस्केलेशन बढ़ेगा, जिन्होंने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में अभूतपूर्व स्तर पर एलएसी के दोनों ओर लगभग 1,00,000 सैनिकों को तैनात किया है.

LAC के पास पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर 4-5 मई, 2020 को सीमा पर हुई झड़प के बाद चल रहे तनाव को दोनों देशों द्वारा कम दिया गया है.

पढ़ें - भारत-चीन पूर्वी लद्दाख में जमीनी स्तर पर स्थिरता बनाए रखने पर सहमत

हालांकि बातचीत की प्रगति ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है दोनों देशों को सीमा विवाद को निपाटने के लिए शीर्ष नेताओं की जरूरत पड़ेगी.

चीन1959 के दावे के आधार पर प्रदेशों को बहाल करने मांग करता रहा है, जिसे जिसे पहली बार पूर्व चीनी पीएम चाउ एल-लाई द्वारा प्रस्तावित किया गया था और उनके भारतीय समकक्ष जवाहरलाल नेहरू द्वारा ठुकरा दिया गया था.

Last Updated : Apr 11, 2021, 1:55 AM IST
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