हैदराबाद : सरकारों और कंपनियों के पास सूचना, अंतर्दृष्टि और बुद्धिमत्ता के विभिन्न स्रोत हैं. जिन्हें सही समय पर इस्तेमाल किया जाए, तो साइबर हमलों की एक स्पष्ट और असल तस्वीर सामने आ सकती है.
यूके का नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर द्वारा उद्योंगों के साथ साइबर सिक्योरिटी इंफॉर्मेशन शेयरिंग पार्टनरशिप कार्य कर रहा है, जबकि सीआईएसए का यूएस संचालकों के साथ समान भागीदारी है.
वहीं, यूरोपियन यूनियन की कानून प्रवर्तन एजेंसी 'यूरोपोल' एक कदम आगे निकली. उसने सार्वजनिक और निजी संस्थाओं के लिए एक वेबसाइट बनाई, जहां साइबर अटैक के पीड़ित अपनी समस्या साझा कर समाधान का पता लगा सकते हैं.
बाजार की जरूरतों के साथ साइबर शिक्षा को संरेखित करें
विश्व की सरकारें, कंपनियां तथा अन्य संस्थानें साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों की कमी का सामना कर रही हैं. दुनियाभर में कुल 2.8 मिलियन वर्कफोर्स के मुकाबले तीन मिलियन से अधिक साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों की कमी है. यकीनन, श्रम क्षमता की यहां जरूरत है.
दुनिया भर की सरकारों, कंपनियों और अन्य संस्थानों को साइबर सुरक्षा पेशेवरों की कमी का सामना करना पड़ता है जिनकी अनुमानित संख्या 3 मिलियन से अधिक है.
चुनौती दोगुनी
साइबर सिक्योरिटी में प्रशिक्षण के प्रति ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करना और विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में इसे शामिल करना अब दोगुनी चुनौती है. यहां तक कि बेहतरीन साइबर सुरक्षा का पता लगाने की अब भी जरूरत है. इसलिए साइबर हमलावरों से निपटने के लिए प्रभावी संगठनों के पास अच्छी योजनाएं हैं.
यूएस में, सीआईएसए का नेशनल साइबर इंसिडेंट रेस्पांस प्लान के मुताबिक साइबर सुरक्षा व्यक्तिगत, निजी क्षेत्रों और सरकार के लिए 'साझा जिम्मेदारी' है. साइबर अटैक का मुकाबला करने में सरकारी विभागों की भूमिका होती है. वहीं, कंपनियों की गोपनीयता और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध रहता है.
फिशिंग अटैक और मैलवेयर डाउनलोड कराने जैसे साइबर अटैक लोगों को फंसाने में 95 प्रतिशत सफल माने गए हैं. हम इस अपराध को खत्म तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन प्राथमिक स्तर पर तकनीकी उपकरणों में बेहतर सुरक्षा का निर्माण कर इसे कम कर सकते हैं.
ऑस्ट्रेलिया की ई सेफ्टी कमिश्नर विश्व की पहली सरकारी एजेंसी है, जो साइबर-रिस्क के बारे में लोगों को जागरूक और शिक्षित करने के प्रति समर्पित है.