हैदराबाद : किसे है पता धूल के इस नगर में, कहां मृत्यु वरमाला लेकर खड़ी है. किसे ज्ञात है प्राण की लौ छिपाए चिता में छुपी कौन सी फुलझड़ी है. हिंदी के प्रसिद्ध कवि गोपाल दास नीरज की लिखी इन पंक्तियों में भले ही 'चिता में छुपी फुलझड़ी' की बात हो लेकिन आज के इस दौर में चिता के लिए लकड़ी भी सबको मयस्सर नहीं है.
कहते हैं कि जिंदगी से विदाई के बाद विधि-विधान पूर्वक अंतिम संस्कार सभी धर्मों में हर व्यक्ति का अधिकार माना गया है. यही वजह है कि हर कोई मरने वाले की अंतिम क्रिया के लिए अपनी सामर्थ्य अनुसार हरसंभव प्रयास करता है लेकिन कोरोनाकाल में 'मुक्तिधाम' (श्मशान घाट) में चिता के लिए लकड़ी भी बमुश्किल मिल पा रही है. या फिर लोगों को लकड़ी के लिए ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं.
कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आए हैं जहां चिता के लिए लकड़ी की कमी है या मांग बढ़ने के कारण उसके दाम 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं. राजधानी दिल्ली समेत पंजाब, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत कई जगहों पर यही हाल है. कई स्थानों पर तो दानदाताओं से अपील की गई है. यही नहीं लोगों से गोबर के उपले भी देने के लिए कहा गया है. जल्द ही बरसात का सीजन आने वाला है ऐसे में सूखी लकड़ियां मिलना भी आसान नहीं होगा. यानी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.
पंजाब : सिर्फ लकड़ी के ही 6500 रुपये लिए जा रहे हैं
कोरोना से मरने वाले का अंतिम संस्कार करने में 10 से 12 हजार का खर्चा आ रहा है. सिर्फ लकड़ी के लिए ही 6500 रुपये लिए जा रहे हैं. चाहे संस्कार लकड़ियों से करना हो या फिर गैस चैंबर में सबके रेट फिक्स हैं.
पंजाब के लुधियाना में अंतिम संस्कार करने पहुंचे एक व्यक्ति ने बताया कि है पहले अस्पताल में इलाज के नाम पर लूटा गया अब यहां भी खर्चा 10 से 12 हज़ार रुपए हो गया है. 6500 रुपए सिर्फ़ लकड़ियों के वसूले जा रहे हैं. चंडीगढ़ में रोज 40 अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं. इनमें 50 प्रतिशत कोरोना महामारी से मरने वाले हैं. संस्कार लकड़ियों और विद्युत शव दाह गृह दोनों माध्यमों से किए जा रहे हैं. हालांकि यहां लकड़ियों की कमी नहीं है.
बठिंडा के श्मशान घाटों पर लकड़ी की मांग बढ़ गई है. रामबाग प्रबंधक समिति के प्रधान राजन गर्ग ने बताया कि हफ्ते में छह दिन लकड़ी चीरने का काम चल रहा है. अमृतसर में दुरग्याना समिति के अधिकारियों ने बताया कि एक मृतक देह के संस्कार में तीन क्विंटल लकड़ी लगती है. उस पर 1300 रुपए के करीब ख़र्च आता है. जालंधर के श्मशान घाट पर रोज चार से पांच संस्कार होते थे, लेकिन कोरोना काल में संख्या बढ़कर 11 से 12 हो गई है. किशनपुरा श्मशान घाट के मैनेजर अनिल कुमार के मुताबिक लकड़ी की खपत दुगनी हो गई है. आने वाले समय में इसकी किल्लत आ सकती है.
महाराष्ट्र में 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं लकड़ी के दाम
महाराष्ट्र में कोरोना के हर दिन लगभग 50,000 नए सक्रिय रोगी सामने आ रहे हैं. औसतन 800 से 900 मरीज रोज दम तोड़ रहे हैं. कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार आसान नहीं है. श्मशान घाटों के बाहर लंबी कतारें हैं. यही वजह है कि लकड़ी की खपत ज्यादा है. अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी के दाम 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं.
कोल्हापुर में एक अप्रैल से करीब 700 मरीजों की मौत हुई है. अभी तो यहां लकड़ी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन यही हाल रहा तो लकड़ी मिलना आसान नहीं होगा. आने वाले बरसात के मौसम को देखते हुए, अभी से स्टॉक बनाना आवश्यक है.
नगरपालिका ने नागरिकों से अपील की है कि वे गोबर दान करें ताकि लकड़ी की जगह इनसे बनने वालो उपलों का इस्तेमाल किया जा सके. यहां के पंचगंगा कब्रिस्तान को हर साल लगभग 600 टन जलाऊ लकड़ी और 25 लाख से अधिक उपलों की जरूरत होती है.
औरंगाबाद में अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी लगभग 20 प्रतिशत महंगी हो गई है. कुछ महीने पहले फायरवुड की कीमत 400 रुपये प्रति क्विंटल थी और अब इसे 600-700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जा रहा है. आमतौर पर अंतिम संस्कार के लिए चार क्विंटल लकड़ी ली जाती है. लकड़ी के अलावा बाकी खर्चे भी होते हैं.
पुणे की बात की जाए तो यहां हर दिन 80 से 90 मौतें हो रही हैं. कैलाश कब्रिस्तान, यरवदा कब्रिस्तान, वैकुंठ कब्रिस्तान में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. मौतों की संख्या में वृद्धि के कारण, विद्युत शवदाह प्रक्रिया के साथ-साथ लकड़ी से भी पुणे में अंतिम संस्कार किया जा रहा है, नतीजतन, जलाऊ लकड़ी की कीमत में भी काफी वृद्धि हुई है.
नासिक में आठ दिन पहले चिता के लिए लकड़ी की कमी थी हालांकि, अब यशवंतराव चव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय ने अपने क्षेत्र में जलाऊ लकड़ी के भंडार निगम को दान कर दिए हैं जिसके बाद प्रशासन ने राहत की सांस ली है. नासिक में कुल 17 कब्रिस्तान हैं, जिनमें कुल 80 शेल्टर, दो इलेक्ट्रिक और एक गैस श्मशान हैं.
शहर की आबादी के हिसाब से श्मशान की संख्या सही है लेकिन पिछले कुछ दिनों में कोरोना मौतों में वृद्धि के कारण प्रणाली ध्वस्त हो गई है. जलाऊ लकड़ी के कम स्टॉक के कारण, अन्य विकल्पों का उपयोग करने का निर्णय लिया गया.
दिल्ली में महामारी से इतनी मौतें कि श्मशान में कम पड़ रही लकड़ियां
पूर्वी दिल्ली के झिलमिल वार्ड स्थित ज्वालानगर श्मशान घाट में बीते दिनों उस वक्त अफरा-तफरी मच गई, जब लोगों को पता चला कि श्मशान घाट में शवों के दाह संस्कार के लिए लकड़ियां खत्म हो रही हैं.
लकड़ियां खत्म होने की खबर इलाके में फैलते ही, इलाके के लोग निकल कर सामने आए और जिससे जितना बन पड़ा उन्होंने लकड़ियां दीं. श्मशान में कम पड़ रही लकड़ियां लोगों ने घरों में रखे खिड़की, दरवाजे, टेबल और कुर्सी तक श्मशान में इस्तेमाल करने के लिए दे दिया.
छत्तीसगढ़ : 501 से लेकर 3000 तक की रसीद
छत्तीसगढ़ में भी अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की खपत बढ़ गई है. सरकारी आंकड़ों में भले ही अप्रैल महीने में दुर्ग जिले में 632 कोरोना संक्रमितों की मौत हुई हो, लेकिन मुक्तिधामों के मुताबिक ये संख्या महज एक तिहाई है. यही वजह है कि कुछ श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों को ऊंचे दाम पर बेचने का मामला सामने आया है.
'ईटीवी भारत' की टीम ने जब मुक्तिधाम में लकड़ियों की खरीदी के लिए काटी गई रसीद को देखा, तो चौंकाने वाली बात सामने आई, क्योंकि किसी में 501 तो किसी रसीद में 3 हजार की राशि मिली.
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इस पर निगम के जनसंपर्क अधिकारी पीपी सार्वा ने बताया कि BPL कार्डधारियों के लिए 101 रुपये तय किया गया है. इसके अलावा दूसरे लोगों के लिए कोई दर निर्धारित नहीं की गई है. वे कहते हैं कि जो लोग BPL की श्रेणी में नहीं आते हैं, वे अपनी स्वेच्छा के अनुसार लकड़ियों के पैसे दे सकते हैं. यहां किसी से लकड़ियों के पैसों के लिए डिमांड नहीं की जाती है.
हाल ही में रामनगर मुक्तिधाम में लकड़ियों की कालाबाजारी का मामला सामने आया था, जिसमें मुक्तिधाम पर आरोप लगा था कि लकड़ियों और अंतिम संस्कार के लिए पैसे की डिमांड की जाती थी.
मध्य प्रदेश : दानदाताओं की मदद से किए जा रहे अंतिम संस्कार
राज्य में ज्यादातर श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए पहले एक क्विंटल लकड़ी 800 रुपए में मिलती थी लेकिन अब इसकी कीमत में 200 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा हो गया है. श्मशान घाट में अब एक क्विंटल लकड़ी 1000 रुपए में मिल रही है. भोपाल के विश्रामघाट के लिए रायसेन, होशंगाबाद, खंडवा और बालाघाट से लकड़ियों की सप्लाई की जा रही है.
कोरोना संक्रमण के बीच मौत का आंकड़ा बढ़ने से श्मशान घाटों में लकड़ी की कमी सामने आ रही है. भोपाल सहित प्रदेश के श्मशान घाटों में दानदाताओं की मदद से दाह संस्कार के लिए लकड़ी का इंतजाम किया जा रहा है. भोपाल के भदभदा विश्रामघाट में केवल तीन दिन का स्टाक बचा है.
भदभदा विश्रामघाट समिति के सचिव ममतेश शर्मा ने बताया कि इस श्मशान घाट में हर रोज 2 से 3 गाड़ी लकड़ियां आ रही हैं. आज की स्थिति में तीन दिन के लिए लकड़ियों का स्टॉक है. उन्होंने बताया कि सामान्य मौत के बाद मृतक का अंतिम संस्कार करने में करीब 3 क्विंटल लकड़ी लगती है, वहीं कोविड से मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए 5 क्विंटल लकड़ी की खपत होती है.
भदभदा विश्राम घाट समिति कोविड से होने वाली मौत के अंतिम संस्कार के लिए 3500 रुपए ले रही है. समिति का कहना है कि अंतिम संस्कार में 4500 रुपए का खर्च आता है लेकिन लोगों की परेशानी को देखते हुए उनसे सिर्फ 3500 रुपए लिए जा रहे हैं.
शवों के अंतिम संस्कार के लिए काम करने वाली जनसंवेदना नाम की सामाजिक संस्था के अध्यक्ष राधेश्याम अग्रवाल कहते हैं कि वन विभाग को बकाया भुगतान नहीं होने से समिति को लकड़ियां नहीं मिल पा रही है. यही वजह है कि यहां अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों की कमी हो रही है.
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भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट में 5 मई को 58 शव लाए गए थे, जिनमें से 43 का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया गया. वहीं भदभदा विश्रामघाट में 69 शव लाए गए थे, जिनमें 55 का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया गया. शहर के झदा कब्रिस्तान में 5 मई को लाए गए 8 में से 4 शवो को कोविड प्रोटोकॉल के तहत सुपुर्द-ए-खाक किया गया. इस तरह बुधवार को कुल 135 मौत में से 102 का अंतिम संस्कार कोवि़ड प्रोटोकाल के तहत किया गया.