नई दिल्ली : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की दिल्ली इकाई और हॉकर्स यूनियन ने दक्षिणी दिल्ली नगर निगम द्वारा अतिक्रमण-विरोधी अभियान की आड़ में इमारतों को गिराये जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और इसे 'प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों, विधियों और संविधान का उल्लंघन' करार दिया है. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि वे अनधिकृत कब्जाधारी या अतिक्रमणकर्ता नहीं हैं, जैसा कि दक्षिण दिल्ली नगर निगम और अन्य ने आरोप लगाए हैं.
याचिका में कहा गया है, 'याचिकाकर्ता के संज्ञान में आया है कि प्रतिवादी नंबर एक (एसडीएमसी) के सहायक आयुक्त कार्यालय ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए एमसीडी कर्मचारियों को महिला पुलिस सहित आवश्यक पुलिस बल उपलब्ध कराने के लिए पत्र जारी किया है.' याचिका में दावा किया गया है कि दक्षिण दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में रहने और काम करने वाले लोगों को उचित 'कारण बताओ नोटिस' और संभलने का मौका दिए बिना, उत्तरदाताओं ने अतिक्रमण-विरोधी अभियान शुरू करने का प्रस्ताव रखा है.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि पूरी कार्रवाई 'बिल्कुल और स्पष्ट रूप से मनमानी' है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुभाष चंद्रन केआर द्वारा तैयार और वरिष्ठ अधिवक्ता पीवी सुरेंद्रनाथ द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया है, 'संबंधित क्षेत्र में रहने और काम करने वाले लोग आम तौर पर बहुत गरीब और हाशिये पर होते हैं जो प्रतिवादियों की अवैध अमानवीय कार्रवाई का विरोध करने में असमर्थ होते हैं.'
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याचिका में कहा गया है कि गत चार मई को अधिकारियों ने संगम विहार इलाके में मकानों को 'बुलडोजर' से ढहा दिया, जिससे लोगों में दहशत की स्थिति है, लेकिन अधिकारियों ने कालिंदीकुंज में अतिक्रमण-विरोधी अभियान नहीं चलाया, क्योंकि उनके पास पर्याप्त पुलिस बल नहीं था. याचिका में कहा गया है, 'अब यकीनन ऐसा समझा जा रहा है कि अधिकारी नौ और 13 मई को शाहीन बाग एवं अन्य इलाकों में मकानों को तोड़ेंगे.' दिल्ली प्रदेश रेहड़ी पटरी खोमचा हॉकर्स यूनियन के महासचिव के जरिये दायर याचिका में भी इसी तरह की बातें रखी गई हैं.