लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने बाराबंकी में 17 मई को एक मस्जिद ढहाने के मामले (mosque demolition case) में प्रतिवादियों को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के मंगलवार को निर्देश दिए.
अदालत ने बाराबंकी के राम सनेही घाट (Ram Sanehi Ghat) के तत्कालीन उप जिलाधिकारी (SDM) को भी नोटिस जारी कर जबाव देने को कहा है.
न्यायमूर्ति राजन राय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की पीठ ने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व हशमत अली तथा अन्य की ओर से दाखिल दो रिट याचिकाओं पर यह आदेश जारी किए. अदालत ने मामले में सुनवाई 15 जून को की थी और अंतरिम राहत के मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
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बता दें कि न्यायालय ने याचिकाओं पर 15 जून को सुनवाई के पश्चात अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था, जिसे मंगलवार को जारी किया गया. उल्लेखनीय है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका में अंतरिम राहत के तौर पर मस्जिद वाले स्थान पर अजान और पांच वक्त नमाज पढ़ने में दखल न दिए जाने की मांग की गई है. दूसरी याचिका में मस्जिद वाले स्थान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की गई है.
याचिकाओं में राम सनेही घाट के तत्कालीन एसडीएम पर मनमाने तरीके से कार्रवाई करते हुए मस्जिद को 17 मई को ध्वस्त करने का आरोप लगाया गया है. याचिका में एसडीएम को दंडित करने का आदेश राज्य सरकार को देने की भी मांग की गई है.
न्यायालय ने मंगलवार को जारी अपने आदेश में उल्लेखित किया है कि वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर से कोर्ट द्वारा पूछा गया कि जहां मस्जिद कथित तौर पर स्थित थी. उस जमीन की प्रकृति क्या थी और उसका स्वामी कौन था. इस पर अधिवक्ता ने वर्ष 1960 के चकबंदी दस्तावेज दिखाए, जिनमें जमीन की प्रकृति आबादी और मस्जिद दोनों ही दर्ज हैं.
इस पर न्यायालय ने अधिवक्ता से पूछा कि आबादी की जमीन पर मस्जिद का निर्माण कैसे हो गया. अधिवक्ता ने जवाब दिया कि यह सौ वर्षों पूर्व हुआ था. हालांकि, न्यायालय के पूछने पर वह अपने इस दावे के समर्थन में कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दे सके.
(भाषा)