ETV Bharat / bharat

पाक-सऊदी के बीच बढ़ते सामंजस्य का भारत पर क्या पड़ेगा असर, पढ़ें रिपोर्ट

सऊदी अरब और पाकिस्तान अपने तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत पर असर पड़ सकता है. सऊदी अरब के रणनीतिक हित के साथ ही इसका प्रभाव भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में भी निहित हैं.

author img

By

Published : May 11, 2021, 10:47 PM IST

Could
Could

नई दिल्ली : ईटीवी भारत के साथ बातचीत में निदेशक, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन दिल्ली के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि यदि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच सामंजस्य स्थापित होता है तो भारत यह उम्मीद कर सकता है कि जब वे पाकिस्तान राज्य प्रायोजित आतंकवाद की नीति का इस्तेमाल साधन के रुप में कर सकता है.

भारत को उम्मीद होगी कि जैसे सऊदी अरब की विदेश नीति व्यावहारिक हो गई है. पाकिस्तान भी उसका पालन करेगा और भारत के साथ ऐसे पड़ोसी के रूप में सामने आएगा, जिसके साथ अब वह प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है. सुलह के प्रयास भारत को पाकिस्तान के साथ राजनयिक स्थिरता स्थापित करने में मदद कर सकते हैं.

भारत का सऊदी अरब के साथ बहुत महत्वपूर्ण संबंध है, जो पिछले कुछ वर्षों में नाटकीय बदलाव आया है. हमने हाल के वर्षों में सऊदी अरब को भारत के पक्ष में लगभग झुकते देखा है जो कि पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब के घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए काफी अभूतपूर्व है.

यह स्वाभाविक है कि पाकिस्तान गुस्से में है क्योंकि कश्मीर मुद्दे पर जब भारत ने अनुच्छेद 370 को रद्द किया तब सऊदी अरब ने इस मुद्दे पर पाक की मदद नहीं की. भारत सऊदी के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है और जहां तक ​​भारत का संबंधों की बात है तो सऊदी अरब के साथ इसके संबंध काफी आगे बढ़ रहे हैं.

पिछले हफ्ते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सऊदी अरब की तीन दिवसीय यात्रा पर थे. जिसका उद्देश्य पारंपरिक रूप से तनावपूर्ण संबंधों पर चर्चा और सुधार की थी. खान ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ सामान्य हित के क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की.

खान की यात्रा से पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने भी सऊदी अरब का दौरा किया. खान और बाजवा दोनों की यात्रा बताती है कि देश सऊदी अरब के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों को तेज कर रहा है. क्योंकि पाकिस्तान आर्थिक रूप से सऊदी अरब पर निर्भर है.

पाकिस्तान को अपनी नाजुक अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सऊदी तेल और धन की निरंतरता की आवश्यकता है. इस बीच सऊदी अरब भी कश्मीर सहित सभी मुद्दों को हल करने के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत पर जोर दे रहा है.

वास्तव में 2019 के पुलवामा हमले के बाद से दो दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच तनाव कम करने में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की मध्यस्थता के बारे में अटकलें चल रही हैं. जहां तक ​​सऊदी अरब का सवाल है, वे भारत के साथ सुलह के रास्ते पर बढ़ने के लिए पाकिस्तान को आगे करने की कोशिश करेंगे.

सऊदी अरब के साथ भारत के संबंध मजबूत हैं और भारत इसे मजबूत करने के लिए काम करना जारी रखेगा. भारत के पास सऊदी तेल, निवेश और संप्रभु धन के लिए एक अच्छा बाजार है. विशेष रूप से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत, खाड़ी देशों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है.

भारत अपने कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 18% और सऊदी अरब से अपनी एलपीजी आवश्यकता का 30% आयात करता है. यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सामंजस्य होने पर भारत को फायदा होगा.

सज्जनहार ने कहा कि निश्चित रूप से भारत को एक फायदा होगा. भारत, पाकिस्तान से अलग हो क्योंकि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एकमात्र इस्लामी संबंध ही कारक है. पाकिस्तान वर्तमान में आर्थिक रूप से टूट गया है और वह आईएमएफ को पैसा वापस नहीं कर सकता है.

आर्थिक रूप से पाकिस्तान बेहतर नहीं हो रहा है और अगर भारत के साथ तनाव जारी रहता है तो पाकिस्तान को रक्षा और शस्त्र खरीदने में अधिक खर्च करना होगा. सोचिए कि हर कोई स्थिर संबंध चाहता है विशेष रूप से तब जबकि अमेरिकी अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं. जिससे तनाव और अस्थिरता की बढ़ोतरी होगी.

यह भी पढ़ें-कोविड से 'ब्रांड मोदी' को लग रहा झटका, जानें क्या है पूरी सच्चाई

सऊदी अरब चाहता है कि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया क्षेत्र में अस्थिरता से बचने के लिए पाकिस्तान को चीजों को नियंत्रण में रखना होगा.

नई दिल्ली : ईटीवी भारत के साथ बातचीत में निदेशक, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन दिल्ली के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि यदि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच सामंजस्य स्थापित होता है तो भारत यह उम्मीद कर सकता है कि जब वे पाकिस्तान राज्य प्रायोजित आतंकवाद की नीति का इस्तेमाल साधन के रुप में कर सकता है.

भारत को उम्मीद होगी कि जैसे सऊदी अरब की विदेश नीति व्यावहारिक हो गई है. पाकिस्तान भी उसका पालन करेगा और भारत के साथ ऐसे पड़ोसी के रूप में सामने आएगा, जिसके साथ अब वह प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है. सुलह के प्रयास भारत को पाकिस्तान के साथ राजनयिक स्थिरता स्थापित करने में मदद कर सकते हैं.

भारत का सऊदी अरब के साथ बहुत महत्वपूर्ण संबंध है, जो पिछले कुछ वर्षों में नाटकीय बदलाव आया है. हमने हाल के वर्षों में सऊदी अरब को भारत के पक्ष में लगभग झुकते देखा है जो कि पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब के घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए काफी अभूतपूर्व है.

यह स्वाभाविक है कि पाकिस्तान गुस्से में है क्योंकि कश्मीर मुद्दे पर जब भारत ने अनुच्छेद 370 को रद्द किया तब सऊदी अरब ने इस मुद्दे पर पाक की मदद नहीं की. भारत सऊदी के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है और जहां तक ​​भारत का संबंधों की बात है तो सऊदी अरब के साथ इसके संबंध काफी आगे बढ़ रहे हैं.

पिछले हफ्ते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सऊदी अरब की तीन दिवसीय यात्रा पर थे. जिसका उद्देश्य पारंपरिक रूप से तनावपूर्ण संबंधों पर चर्चा और सुधार की थी. खान ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ सामान्य हित के क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की.

खान की यात्रा से पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने भी सऊदी अरब का दौरा किया. खान और बाजवा दोनों की यात्रा बताती है कि देश सऊदी अरब के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों को तेज कर रहा है. क्योंकि पाकिस्तान आर्थिक रूप से सऊदी अरब पर निर्भर है.

पाकिस्तान को अपनी नाजुक अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सऊदी तेल और धन की निरंतरता की आवश्यकता है. इस बीच सऊदी अरब भी कश्मीर सहित सभी मुद्दों को हल करने के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत पर जोर दे रहा है.

वास्तव में 2019 के पुलवामा हमले के बाद से दो दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच तनाव कम करने में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की मध्यस्थता के बारे में अटकलें चल रही हैं. जहां तक ​​सऊदी अरब का सवाल है, वे भारत के साथ सुलह के रास्ते पर बढ़ने के लिए पाकिस्तान को आगे करने की कोशिश करेंगे.

सऊदी अरब के साथ भारत के संबंध मजबूत हैं और भारत इसे मजबूत करने के लिए काम करना जारी रखेगा. भारत के पास सऊदी तेल, निवेश और संप्रभु धन के लिए एक अच्छा बाजार है. विशेष रूप से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत, खाड़ी देशों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है.

भारत अपने कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 18% और सऊदी अरब से अपनी एलपीजी आवश्यकता का 30% आयात करता है. यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सामंजस्य होने पर भारत को फायदा होगा.

सज्जनहार ने कहा कि निश्चित रूप से भारत को एक फायदा होगा. भारत, पाकिस्तान से अलग हो क्योंकि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एकमात्र इस्लामी संबंध ही कारक है. पाकिस्तान वर्तमान में आर्थिक रूप से टूट गया है और वह आईएमएफ को पैसा वापस नहीं कर सकता है.

आर्थिक रूप से पाकिस्तान बेहतर नहीं हो रहा है और अगर भारत के साथ तनाव जारी रहता है तो पाकिस्तान को रक्षा और शस्त्र खरीदने में अधिक खर्च करना होगा. सोचिए कि हर कोई स्थिर संबंध चाहता है विशेष रूप से तब जबकि अमेरिकी अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं. जिससे तनाव और अस्थिरता की बढ़ोतरी होगी.

यह भी पढ़ें-कोविड से 'ब्रांड मोदी' को लग रहा झटका, जानें क्या है पूरी सच्चाई

सऊदी अरब चाहता है कि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया क्षेत्र में अस्थिरता से बचने के लिए पाकिस्तान को चीजों को नियंत्रण में रखना होगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.