ETV Bharat / bharat

भ्रष्टाचार है देश की व्यवस्था का सबसे बड़ा दुश्मन

देश की स्वतंत्रता के लिए लंबे संघर्ष के बाद हमने दमनकारी विदेशी शासन को उखाड़ फेंका और एक संप्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देश स्थापित हुआ. नागरिक के तौर पर सभी स्वतंत्रता का आनंद भी ले रहे हैं. हालांकि जैसा कि भारत रत्न अम्बेडकर ने ठीक ही कहा था कि हमने भारतीय संविधान नामक एक असाधारण मंदिर का निर्माण बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ किया है. लेकिन इसमें पवित्र देवताओं को स्थापित करने से पहले ही शैतानों ने कब्जा कर लिया है. तब उनका इशारा भ्रष्ट सिस्टम की ओर था, जो आज हकीकत बन गया है.

Corruption
Corruption
author img

By

Published : Apr 22, 2021, 4:18 PM IST

हैदराबाद : देश के संसाधनों में भ्रष्टाचार और उत्पीड़न, वर्तमान में जारी बेरोकटोक शोषण बाबा साहब अंबेडकर की भविष्यवाणी के साक्षी हैं. संवैधानिक आदर्श पर भरोसा करते हुए कि कानून के सामने सभी समान हैं, हमारा देश कुछ भ्रष्ट व्यक्तियों का अड्डा मात्र बनकर रह गया है.

भ्रष्टाचारियों ने सार्वजनिक धन को सफलतापूर्वक खाया और विदेशों में जाकर बस गए. विडंबना यह है कि उन्होंने उसी ब्रिटिश राष्ट्र में शरण ली जिसने सदियों तक हमारा शोषण किया था. उन्होंने मानवाधिकारों का सहारा लेकर अदालतों में इस बात का रोना रोया कि उन्हें भारत नहीं भेजा जाना चाहिए.

नीरव मोदी का प्रकरण

यह कहा जाता है कि नीरव मोदी को भगाने में लोगों की मिलीभगत रही है जिसने 2018 में देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक, पंजाब नेशनल बैंक को अरबों रुपये की चपत लगाई और देश से भाग गया. नीरव मोदी के मामले में जहां अपील के लिए रास्ते अभी तक बंद नहीं हुए हैं, तब यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि क्या हमारे बैंकिंग क्षेत्र को नीरव मोदी की तरह अन्य लोगों के आपराधिक प्रयासों के लिए छोड़ दिया जाएगा.

बैंक का मतलब भरोसा है

भारत में बैंक का मतलब भरोसा है. आम जनता का मानना ​​है कि कठिन परिश्रम से अर्जित राशि सुरक्षित होगी यदि यह बैंक में जमा किया जाता है. भले ही ब्याज कम हों लेकिन बैंकों में जमा राशि के 150 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का यही मुख्य कारण है. वहीं जब आम आदमी ऋण के लिए संपर्क करता है तो वे कई प्रश्न उठाते हैं. जितना संभव हो उतना चकमा देते हैं और उच्च स्तर पर छानबीन के बाद इसे अंतिम रूप देते हैं.

उद्यमियों के सामने गुलाम

हालांकि बैंक कुछ उद्यमियों के सामने ऐसे झुकते हैं मानों राजा के सामने गुलाम. वे उनकी तुलना में अधिक वफादार होते हैं. तब भ्रष्ट लोग को सभी नियमों और विनियमों की धज्जियां उड़ाते हुए भारी ऋण देते हैं. अस्सी के दशक में राजेंद्र सेठिया नामक एक व्यापारी ने बड़ी पार्टियों का इस्तेमाल किया और महंगे उपहारों के साथ बैंकिंग कर्मचारियों को आकर्षित किया. कई बैंक कर्मचारी उसे पैसे उधार देने के लिए उत्सुक रहते थे.

पीएनबी ने क्या सीखा?

पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने उचित गारंटी के बिना सेठिया की ESAL कंपनी को करोड़ों रुपये का ऋण दिया. ऋण को पुनर्प्राप्त करने में असमर्थ यह खुद का बचाव करता रहा और उसने झूठी प्रतिभूतियों को दिखाया. साथ ही अपने व्यवसाय का शुद्ध मूल्य बढ़ाया था. सवाल यह है कि पीएनबी ने साढ़े तीन दशकों में क्या सबक सीखा? आमतौर पर बुद्धिमान लोग एक बार ठगे जाते हैं लेकिन पीएनबी ने अपने तरीके से कोई बदलाव नहीं किया और इस बार फिर 11,400 करोड़ रुपये गंवा बैठा.

अपने ही नियमों की अनदेखी

आमतौर पर बैंक विदेशों में अपनी खरीद पर आसान भुगतान करने के लिए व्यापारियों को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी करते हैं. यद्यपि बैंक से संबंधित प्रत्येक लेनदेन को कोर बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से किया जाता है. लेकिन इस महत्वपूर्ण जनादेश के कारण PNB कर्मचारियों ने केवल कोड के माध्यम से लेन-देन किया. विपक्षी दलों ने अरबों के घोटाले को रोकने में विफल रहने के लिए मोदी सरकार की आलोचना की लेकिन केंद्र ने आरबीआई पर अपनी निगरानी चूक के रूप में अपनी जिम्मेदारी को बड़ी चतुराई से स्थानांतरित कर दिया है. ब्रिटिश धरती के ठिकाने से नीरव मोदी के पाखंडी खेल ने भारत की प्रतिष्ठा को और खराब कर दिया है.

पहले किया गया था चौकन्ना

पीएनबी घोटाले के सामने आने से करीब छह महीने पहले आयकर विभाग ने नीरव मोदी के कार्यालयों और उसके चाचा मेहुल चोकसी के कार्यालयों में व्यापक खोज की और कई अनियमितताएं पाईं थीं. जून 2017 के पहले सप्ताह में रिपोर्ट में फर्जी खरीद, रिश्तेदारों को हस्तांतरित धन की बड़ी रकम और स्टॉक के मूल्य से अधिक की अनियमितताओं पर प्रकाश डाला गया. लेकिन आयकर विभाग ने इसे सीबीआई, ईडी, राजस्व खुफिया निदेशालय और गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालयों (एसएफआईओ) को नहीं भेजा. आईटी विभाग का बहाना था कि इन विभागों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान की कोई प्रथा नहीं है.

कानूनी पहलुओं का फायदा

यह कोई आश्चर्य नहीं है कि विभागों में काम करने वाले कंपार्टमेंटलाइज्ड वातावरण में यह आसानी से संभव है कि हजारों करोड़ रुपये घोटाले में उड़ जाते हैं. विजय माल्या और नीरव मोदी ने कानूनी बिंदुओं का आधार बनाय कि भारत की जेलें खराब हैं. इसलिए ब्रिटेन जो कि मानव अधिकारों को उच्च प्राथमिकता देता है, इसलिए उन्हें भारत में आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए.

जून 2019 में निरंतर पानी की आपूर्ति और बिस्तर के साथ ही शॉवर की अनुमति और फ्रांसीसी खिड़कियों से सुसज्जित आर्थर रोड जेल के 300 वर्ग फुट कमरे को बदलने के बाद हम इन वीआईपी अपराधियों के निर्वासन की प्रतीक्षा कर रहे हैं. यह संविधान के साथ मजाक की तरह ही लग रहा है.

इन्होंने भी किए हैं भ्रष्टाचार

अगर हम यह बनाए रखें कि कानून के सामने हर कोई समान है तो इंटरपोल द्वारा भारत में विभिन्न अपराधों और अत्याचारों के लिए 313 भगोड़े (उनमें से 224) को गिरफ्तार करने के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किए गए हैं. इनमें नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, ललित मोदी, दीपक तलवार, संजय भंडारी और जतिन मेहता शामिल हैं.

इस तरह के बड़े घोटालों का कोई अंत तब तक नहीं होगा जब तक कि भ्रष्ट अधिकारी प्रमुख पदों पर मौजूद हैं. जो भ्रष्ट व्यवसायियों द्वारा किए गए अवैध भ्रष्टाचार के लिए सिस्टम के हितों का त्याग करते हैं. आरबीआई ने कहा है कि नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे 50 व्यापारियों के बुरे ऋणों को निपटाने के लिए तकनीकी रूप से 68,600 करोड़ रुपये माफ कर दिए गए.

यह भी पढ़ें-कोरोना पर छह उच्च न्यायालयों की सुनवाई से हो रहा भ्रम : सुप्रीम कोर्ट

इसका संदेश यही है कि ऐसी प्रणाली देश के अपराधियों के लिए अवैध रूप से हजारों-करोड़ों रुपये विदेशों में स्थानांतरित करने और खुशी से वहां भागने के लिए दरवाजे खोलकर रखती है. इसके बाद अपनी मांगों के लिए नमन की मुद्रा में आ जाती है और उनके लिए लाल कालीन बिछाती है. अगर यही उदासीनता जारी रही तो देश का भविष्य क्या होगा, यह सवाल बना हुआ है?

हैदराबाद : देश के संसाधनों में भ्रष्टाचार और उत्पीड़न, वर्तमान में जारी बेरोकटोक शोषण बाबा साहब अंबेडकर की भविष्यवाणी के साक्षी हैं. संवैधानिक आदर्श पर भरोसा करते हुए कि कानून के सामने सभी समान हैं, हमारा देश कुछ भ्रष्ट व्यक्तियों का अड्डा मात्र बनकर रह गया है.

भ्रष्टाचारियों ने सार्वजनिक धन को सफलतापूर्वक खाया और विदेशों में जाकर बस गए. विडंबना यह है कि उन्होंने उसी ब्रिटिश राष्ट्र में शरण ली जिसने सदियों तक हमारा शोषण किया था. उन्होंने मानवाधिकारों का सहारा लेकर अदालतों में इस बात का रोना रोया कि उन्हें भारत नहीं भेजा जाना चाहिए.

नीरव मोदी का प्रकरण

यह कहा जाता है कि नीरव मोदी को भगाने में लोगों की मिलीभगत रही है जिसने 2018 में देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक, पंजाब नेशनल बैंक को अरबों रुपये की चपत लगाई और देश से भाग गया. नीरव मोदी के मामले में जहां अपील के लिए रास्ते अभी तक बंद नहीं हुए हैं, तब यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि क्या हमारे बैंकिंग क्षेत्र को नीरव मोदी की तरह अन्य लोगों के आपराधिक प्रयासों के लिए छोड़ दिया जाएगा.

बैंक का मतलब भरोसा है

भारत में बैंक का मतलब भरोसा है. आम जनता का मानना ​​है कि कठिन परिश्रम से अर्जित राशि सुरक्षित होगी यदि यह बैंक में जमा किया जाता है. भले ही ब्याज कम हों लेकिन बैंकों में जमा राशि के 150 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का यही मुख्य कारण है. वहीं जब आम आदमी ऋण के लिए संपर्क करता है तो वे कई प्रश्न उठाते हैं. जितना संभव हो उतना चकमा देते हैं और उच्च स्तर पर छानबीन के बाद इसे अंतिम रूप देते हैं.

उद्यमियों के सामने गुलाम

हालांकि बैंक कुछ उद्यमियों के सामने ऐसे झुकते हैं मानों राजा के सामने गुलाम. वे उनकी तुलना में अधिक वफादार होते हैं. तब भ्रष्ट लोग को सभी नियमों और विनियमों की धज्जियां उड़ाते हुए भारी ऋण देते हैं. अस्सी के दशक में राजेंद्र सेठिया नामक एक व्यापारी ने बड़ी पार्टियों का इस्तेमाल किया और महंगे उपहारों के साथ बैंकिंग कर्मचारियों को आकर्षित किया. कई बैंक कर्मचारी उसे पैसे उधार देने के लिए उत्सुक रहते थे.

पीएनबी ने क्या सीखा?

पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने उचित गारंटी के बिना सेठिया की ESAL कंपनी को करोड़ों रुपये का ऋण दिया. ऋण को पुनर्प्राप्त करने में असमर्थ यह खुद का बचाव करता रहा और उसने झूठी प्रतिभूतियों को दिखाया. साथ ही अपने व्यवसाय का शुद्ध मूल्य बढ़ाया था. सवाल यह है कि पीएनबी ने साढ़े तीन दशकों में क्या सबक सीखा? आमतौर पर बुद्धिमान लोग एक बार ठगे जाते हैं लेकिन पीएनबी ने अपने तरीके से कोई बदलाव नहीं किया और इस बार फिर 11,400 करोड़ रुपये गंवा बैठा.

अपने ही नियमों की अनदेखी

आमतौर पर बैंक विदेशों में अपनी खरीद पर आसान भुगतान करने के लिए व्यापारियों को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी करते हैं. यद्यपि बैंक से संबंधित प्रत्येक लेनदेन को कोर बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से किया जाता है. लेकिन इस महत्वपूर्ण जनादेश के कारण PNB कर्मचारियों ने केवल कोड के माध्यम से लेन-देन किया. विपक्षी दलों ने अरबों के घोटाले को रोकने में विफल रहने के लिए मोदी सरकार की आलोचना की लेकिन केंद्र ने आरबीआई पर अपनी निगरानी चूक के रूप में अपनी जिम्मेदारी को बड़ी चतुराई से स्थानांतरित कर दिया है. ब्रिटिश धरती के ठिकाने से नीरव मोदी के पाखंडी खेल ने भारत की प्रतिष्ठा को और खराब कर दिया है.

पहले किया गया था चौकन्ना

पीएनबी घोटाले के सामने आने से करीब छह महीने पहले आयकर विभाग ने नीरव मोदी के कार्यालयों और उसके चाचा मेहुल चोकसी के कार्यालयों में व्यापक खोज की और कई अनियमितताएं पाईं थीं. जून 2017 के पहले सप्ताह में रिपोर्ट में फर्जी खरीद, रिश्तेदारों को हस्तांतरित धन की बड़ी रकम और स्टॉक के मूल्य से अधिक की अनियमितताओं पर प्रकाश डाला गया. लेकिन आयकर विभाग ने इसे सीबीआई, ईडी, राजस्व खुफिया निदेशालय और गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालयों (एसएफआईओ) को नहीं भेजा. आईटी विभाग का बहाना था कि इन विभागों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान की कोई प्रथा नहीं है.

कानूनी पहलुओं का फायदा

यह कोई आश्चर्य नहीं है कि विभागों में काम करने वाले कंपार्टमेंटलाइज्ड वातावरण में यह आसानी से संभव है कि हजारों करोड़ रुपये घोटाले में उड़ जाते हैं. विजय माल्या और नीरव मोदी ने कानूनी बिंदुओं का आधार बनाय कि भारत की जेलें खराब हैं. इसलिए ब्रिटेन जो कि मानव अधिकारों को उच्च प्राथमिकता देता है, इसलिए उन्हें भारत में आत्मसमर्पण नहीं करना चाहिए.

जून 2019 में निरंतर पानी की आपूर्ति और बिस्तर के साथ ही शॉवर की अनुमति और फ्रांसीसी खिड़कियों से सुसज्जित आर्थर रोड जेल के 300 वर्ग फुट कमरे को बदलने के बाद हम इन वीआईपी अपराधियों के निर्वासन की प्रतीक्षा कर रहे हैं. यह संविधान के साथ मजाक की तरह ही लग रहा है.

इन्होंने भी किए हैं भ्रष्टाचार

अगर हम यह बनाए रखें कि कानून के सामने हर कोई समान है तो इंटरपोल द्वारा भारत में विभिन्न अपराधों और अत्याचारों के लिए 313 भगोड़े (उनमें से 224) को गिरफ्तार करने के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किए गए हैं. इनमें नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, ललित मोदी, दीपक तलवार, संजय भंडारी और जतिन मेहता शामिल हैं.

इस तरह के बड़े घोटालों का कोई अंत तब तक नहीं होगा जब तक कि भ्रष्ट अधिकारी प्रमुख पदों पर मौजूद हैं. जो भ्रष्ट व्यवसायियों द्वारा किए गए अवैध भ्रष्टाचार के लिए सिस्टम के हितों का त्याग करते हैं. आरबीआई ने कहा है कि नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे 50 व्यापारियों के बुरे ऋणों को निपटाने के लिए तकनीकी रूप से 68,600 करोड़ रुपये माफ कर दिए गए.

यह भी पढ़ें-कोरोना पर छह उच्च न्यायालयों की सुनवाई से हो रहा भ्रम : सुप्रीम कोर्ट

इसका संदेश यही है कि ऐसी प्रणाली देश के अपराधियों के लिए अवैध रूप से हजारों-करोड़ों रुपये विदेशों में स्थानांतरित करने और खुशी से वहां भागने के लिए दरवाजे खोलकर रखती है. इसके बाद अपनी मांगों के लिए नमन की मुद्रा में आ जाती है और उनके लिए लाल कालीन बिछाती है. अगर यही उदासीनता जारी रही तो देश का भविष्य क्या होगा, यह सवाल बना हुआ है?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.