हैदराबाद : फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के 6 हफ्ते बाद शरीर से एंटीबॉडी का लेवल कम होने लगता है. 10 सप्ताह में 50 प्रतिशत से भी अधिक कम हो सकती हैं. द लैंसेट में प्रकाशित रिसर्च में यह दावा किया गया है कि फाइजर-एस्ट्राजेनेका के दो डोज के बाद एंटीबॉडी जिस रफ्तार से बढ़ती है, 2 से 3 हफ्ते बाद उतनी स्पीड से घटती भी है. स्टडी में यह सामने आया है कि ये वैक्सीन कोविड-19 वायरस के खिलाफ प्रभावी हैं.
ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के रिसर्चर्स की चिंता यह है कि अगर एंटीबॉडी का लेवल इस रेट से गिरता रहा, तो वैक्सीन के प्रभाव भी कम होने लगेंगे. जब कोरोना के नए वैरिएंट चुनौती बन रहे हैं, तब एंटीबॉडी का स्तर गिरना चिंताजनक है. यूसीएल की मैडी श्रोत्री के अनुसार, स्टडी में वैक्सीन की खुराक का असर लोगों के सभी समूहों में एक समान दिखा. रिसर्च में सभी उम्र, पुरानी बीमारियों और जेंडर वाले 600 लोगों का डेटा शामिल किया गया है. स्टडी में यह सामने आया कि फाइजर की वैक्सीन के दोनों डोज लेने वालों में एस्ट्राजेनेका लेने वालों की तुलना में ज्यादा एंटीबॉडी पाई गईं.
भारत में उपलब्ध हैं अभी तीन वैक्सीन
एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को भारत में कोविशील्ड नाम से बनाया गया है. इसे सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया बनाती है. भारत में अभी फाइजर उपलब्ध नहीं है. भारत राष्ट्रव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम में फाइजर को शामिल करने के लिए कंपनी से बात कर रहा है. इंडिया में 18 से अधिक उम्र वालों के लिए अभी तीन वैक्सीन उपलब्ध हैं. कोविशील्ड, कोवैक्सीन और रूस की वैक्सीन स्पूतनिक.
70 प्लस उम्र वालों को बूस्टर डोज की सिफारिश
इस रिसर्च के नतीजों के बाद वैक्सीन के दो डोज के बाद बूस्टर डोज लगाने की सिफारिश की गई है. यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रॉब एल्ड्रिज के अनुसार जिन लोगों ने शुरुआती दौर में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन ली है, उनमें अब एंटीबॉडी का लेवल काफी कम हो सकता है. ऐसे लोगों को बूस्टर डोज की जरूरत होगी. शोध के परिणामों के आधार पर 70 वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले लोगों के लिए बूस्टर डोज की सिफारिश की है.
लगातार कोविड पर रिसर्च कर रहा है लैंसेंट
बता दें कि लैसेंट ने ही कोविड के डेल्टा वैरिएंट की पहचान से पहले भी एक रिसर्च प्रकाशित किया था. तब दावा किया गया था कि फाइजर और एस्ट्राजेनेका के कोविड रोधी टीके की सिंगल डोज 65 साल और इससे अधिक उम्र के लोगों को सार्स-कोव-2 संक्रमण के खिलाफ लगभग 60 प्रतिशत सुरक्षा उपलब्ध कराती है. इसके अलावा भारत और इंग्लैंड के शोधकर्ताओं ने दो अलग-अलग अध्ययनों में पाया था कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड कोविड-19 टीका लेने वाले 11 लोगों में दुर्लभ प्रकार का न्यूरोलॉजिकल विकार पैदा हुआ, जिसे गुलेन-बैरे सिंड्रोम नाम दिया गया है. फिलहाल नए शोध के नतीजे भी आ गए हैं, सरकारों को तय करना है कि बूस्टर डोज की जरूरत है या नहीं.
वैक्सीन के लिए बूस्टर डोज क्या है?
हर आयु वर्ग के लिए वैक्सीन की डोज तय होती है. जब वैक्सीन की तय खुराक ली जाती है तो शरीर में एंटी बॉडी बनती है. एंटीबॉडी शरीर का वह तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है. बूस्टर वह खुराक है, जो किसी बीमारी के खिलाफ व्यक्ति की इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए दी जाती है. एंटीबॉडी शरीर में 'इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी' के आधार पर काम करती है. रिसर्च में बताया गया है कि भले ही एंटीबॉडी कम हो, लेकिन इससे प्रतिरोधक क्षमता इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी में बनी रहती है. जिससे यह हमें वायरस से लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान कर सकती है. हालांकि बूस्टर डोज शरीर के अंदर तुरंत इम्यून सिस्टम को एक्टिव कर देती है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजेनिका की दो डोज 65-90 प्रतिशत तक प्रभावी हैं. मॉडर्ना और फाइजर बायोनटेक की दो खुराक 95 फीसदी तक प्रभावी हैं. जबकि गामालेया का प्रभाव 92 फीसद है. डब्ल्यूएचओ ने यह जानकारी परीक्षण के शुरुआती रिजल्ट के आधार पर दी थी.
फाइजर का सबसे डिमांड वाला प्रॉडक्ट है कोरोना वैक्सीन
भले ही रिसर्च में यह सामने आया है कि फाइजर का टीका लगाने के 6 हफ्ते बाद से एंटीबॉडी कम होने लगती है, मगर कंपनी की कमाई में भारी उछाल आया है. फाइनैंशल एक्सप्रेस के मुताबिक, फाइजर के चीफ एग्जेक्यूटिव अलबर्ट बौर्ला का मानना है कि फ्लू के वैक्सीन की तरह कोरोना वैक्सीन की मांग लगातार लंबे समय तक बनी रहने वाली है. 2021 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में कंपनी का सबसे अधिक बिकने वाला प्रॉडक्ट कोरोना वैक्सीन था. पहली तिमाही में कोरोना वैक्सीन के जरिए कंपनी को 350 करोड़ डॉलर (25.9 हजार करोड़ रुपये) का रेवेन्यू मिला जबकि कुल रेवेन्यू 1460 करोड़ डॉलर (1.08 लाख करोड़ रुपये) का था.