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कोरोना इफेक्ट : प्ले स्कूल बंद होने से संचालकों का घर चलाना भी हुआ मुश्किल

कोरोना महामारी (corona pandemic) की वजह से प्री/प्ले स्कूल (pre/play school) के बंद होने के कारण आमदनी ठप होने से अब इन स्कूल के संचालकों के सामने घर चलाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में कई स्कूल संचालक स्कूल के लिए ग्राहक ढूंढ रहे हैं जिससे कुछ और काम को शुरू कर सकें.

कोरोना इफेक्ट
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Published : Jun 14, 2021, 9:14 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना महामारी (corona pandemic) के कारण पिछले 16 महीनों से प्री/प्ले स्कूल (pre/play school) के बंद होने से इससे जुड़े लोगों के सामने घर चलाने का संकट खड़ा हो गया है. हालत यह है कि इन स्कूलों के संचालक अब निराश होकर अपने स्कूल के लिए ग्राहक ढूंढ रहे हैं ताकि वह कुछ और काम शुरू कर सकें.

दिल्ली के नरेला क्षेत्र में बीते 15 वर्षों से प्री स्कूल चला रही रीता कलोनिया अपने सूनसान पड़े स्कूल परिसर के एक क्लास रूम में बैठकर बच्चों की बजाय किसी ऐसे ग्राहक की प्रतीक्षा कर रही हैं जो या तो उनके व्यवसाय में निवेश कर उनके फ्रैंचाइज़ी को बचा सके या फिर उनके प्री स्कूल के व्यवसाय को ही खरीद ले.

पढ़ें - 2-6 वर्ष के बच्चाें पर कोवैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल का पंजीकरण कल से

यही नहीं कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में काम ठप हो जाने से पड़ी आर्थिक मार ने इस तरह के लाखों व्यवसाय को प्रभावित किया जिसमें प्ले स्कूल भी महत्वपूर्ण भाग है. डेढ़ से चार साल के बच्चों के लिए आज के समय में ये प्ले स्कूल ही शिक्षा से उनका परिचय का माध्यम बनते हैं लेकिन वर्तमान ये स्कूल स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत हैं.

इस बारे में रीता कलोनिया (Reeta Kaloniya) का कहना है कि पिछले पंद्रह वर्ष में उन्होंने कभी ऐसे हालात नहीं देखे, जो उन्होंने पिछले पंद्रह महीने में देख लिए. उन्होंने बताया कि एक छोटे प्री स्कूल को चलाने के लिए भी कम से कम 15 से 20 लोगों के स्टाफ की जरूरत पड़ती है जिसमें ज्यादातर महिलाएं होती हैं. इसके अलावा स्कूल परिसर का किराया और अन्य स्थाई खर्चे वहन करने पड़ते हैं.

कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के 2 महीनों बाद ही रीता को अपने स्टाफ को बिना वेतन छुट्टी पर भेजना पड़ा. इसके बावजूद उन्हें एक लाख रुपये प्रति माह किराया और अन्य मेंटेनेंस खर्च वहन करना पड़ता है. उनका कहना था कि 'पिछले 16 महीनों से हमारी आमदनी शून्य रही लेकिन खर्चे होते रहे. अब हालात ये हैं कि घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. सरकार से यही अनुरोध है कि अपना ध्यान इस क्षेत्र की तरफ भी दे. इसमें 95 फीसद महिलाएं ही सक्रिय हैं जिनकी आर्थिक हालत आज ठीक नहीं है.'

पढ़ें - सावधान: कोरोना का 'डेल्टा प्लस' वेरिएंट है घातक, दवाओं के असर पर भी संशय

बता दें कि प्री स्कूलों को बैंक लोन में ब्याज पर छूट और मासिक किश्त की राशि को कम किए जाने की मांग के साथ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी लगाई जा चुकी है. दूसरी तरफ बहुत से प्री स्कूल संचालकों ने अब वैकल्पिक व्यवसाय के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. ऐसे में रीता जैसे लाखों प्री स्कूल संचालकों को अब सरकार से मदद की आस है.

रीता कहती हैं कि आगे कोरोना के तीसरे दौर की बात हो रही है जो बच्चों को प्रभावित करेगी. ऐसे में उन्हें नहीं लगता कि इस वर्ष भी उनके स्कूल खुल पाएंगे. जब तक छोटे बच्चों के लिए कोई टीका नहीं बन जाता तब तक अभिभावक भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहेंगे. इन सब में समय लगेगा और तब तक ज्यादातर छोटे प्ले स्कूल स्थाई रूप से बंद हो जाएंगे क्योंकि निकट भविष्य में कोई उम्मीद उन्हें नहीं दिखाई देती.

नई दिल्ली : कोरोना महामारी (corona pandemic) के कारण पिछले 16 महीनों से प्री/प्ले स्कूल (pre/play school) के बंद होने से इससे जुड़े लोगों के सामने घर चलाने का संकट खड़ा हो गया है. हालत यह है कि इन स्कूलों के संचालक अब निराश होकर अपने स्कूल के लिए ग्राहक ढूंढ रहे हैं ताकि वह कुछ और काम शुरू कर सकें.

दिल्ली के नरेला क्षेत्र में बीते 15 वर्षों से प्री स्कूल चला रही रीता कलोनिया अपने सूनसान पड़े स्कूल परिसर के एक क्लास रूम में बैठकर बच्चों की बजाय किसी ऐसे ग्राहक की प्रतीक्षा कर रही हैं जो या तो उनके व्यवसाय में निवेश कर उनके फ्रैंचाइज़ी को बचा सके या फिर उनके प्री स्कूल के व्यवसाय को ही खरीद ले.

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यही नहीं कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में काम ठप हो जाने से पड़ी आर्थिक मार ने इस तरह के लाखों व्यवसाय को प्रभावित किया जिसमें प्ले स्कूल भी महत्वपूर्ण भाग है. डेढ़ से चार साल के बच्चों के लिए आज के समय में ये प्ले स्कूल ही शिक्षा से उनका परिचय का माध्यम बनते हैं लेकिन वर्तमान ये स्कूल स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत हैं.

इस बारे में रीता कलोनिया (Reeta Kaloniya) का कहना है कि पिछले पंद्रह वर्ष में उन्होंने कभी ऐसे हालात नहीं देखे, जो उन्होंने पिछले पंद्रह महीने में देख लिए. उन्होंने बताया कि एक छोटे प्री स्कूल को चलाने के लिए भी कम से कम 15 से 20 लोगों के स्टाफ की जरूरत पड़ती है जिसमें ज्यादातर महिलाएं होती हैं. इसके अलावा स्कूल परिसर का किराया और अन्य स्थाई खर्चे वहन करने पड़ते हैं.

कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के 2 महीनों बाद ही रीता को अपने स्टाफ को बिना वेतन छुट्टी पर भेजना पड़ा. इसके बावजूद उन्हें एक लाख रुपये प्रति माह किराया और अन्य मेंटेनेंस खर्च वहन करना पड़ता है. उनका कहना था कि 'पिछले 16 महीनों से हमारी आमदनी शून्य रही लेकिन खर्चे होते रहे. अब हालात ये हैं कि घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. सरकार से यही अनुरोध है कि अपना ध्यान इस क्षेत्र की तरफ भी दे. इसमें 95 फीसद महिलाएं ही सक्रिय हैं जिनकी आर्थिक हालत आज ठीक नहीं है.'

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बता दें कि प्री स्कूलों को बैंक लोन में ब्याज पर छूट और मासिक किश्त की राशि को कम किए जाने की मांग के साथ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी लगाई जा चुकी है. दूसरी तरफ बहुत से प्री स्कूल संचालकों ने अब वैकल्पिक व्यवसाय के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. ऐसे में रीता जैसे लाखों प्री स्कूल संचालकों को अब सरकार से मदद की आस है.

रीता कहती हैं कि आगे कोरोना के तीसरे दौर की बात हो रही है जो बच्चों को प्रभावित करेगी. ऐसे में उन्हें नहीं लगता कि इस वर्ष भी उनके स्कूल खुल पाएंगे. जब तक छोटे बच्चों के लिए कोई टीका नहीं बन जाता तब तक अभिभावक भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहेंगे. इन सब में समय लगेगा और तब तक ज्यादातर छोटे प्ले स्कूल स्थाई रूप से बंद हो जाएंगे क्योंकि निकट भविष्य में कोई उम्मीद उन्हें नहीं दिखाई देती.

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