लखनऊ : देश के चार प्रमुख मठों के प्रमुख के तौर पर चार शंकराचार्य में सनातन परम्परा का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. अद्वैत परम्परा का प्रवर्तक आदिगुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा और प्रसार के लिए देश की चार दिशाओं में चार पीठ (Four Peeths of Adi Shankara) की स्थापना की थी. आदिशंकर ने ही ओडिशा (पूर्व) में गोवर्धन मठ, कर्नाटक (दक्षिण) में श्रृगेरी मठ, द्वारका (पश्चिम) में शारदा मठ और बद्रिकाश्रम (उत्तर) में ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी.
सनातन परंपरा में इन मठों के प्रमुखों को शंकराचार्य कहा जाता है. आदिगुरु शंकर की ओर से बनाई गई इस परंपरा में शंकराचार्य के पद को लेकर विवाद (Controversy over Shankaracharya) होते रहे हैं. शंकराचार्यों पर परंपरा का उल्लंघन करने के आरोप लगे. इसके अलावा इस शक्तिशाली पदों पर एक से अधिक संतों का दावा रहा. शनिवार को ब्रह्मलीन हुए जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती दो पीठ बदरिकाश्रम की ज्योतिर्मठ और द्वारका के श्रृंगेरी मठ के प्रमुख थे. जबकि परंपरा के अनुसार सभी पीठों की देखरेख अलग-अलग शंकराचार्य करते हैं. स्वामी स्वरूपानंद 1973 में ज्योतिष मठ (वदरिकाश्रम) के शंकराचार्य तो थे. वह साल 1982 में वो द्वारका पीठ के शंकराचार्य भी बन गए थे.
कांची पीठ को लेकर रहा विवाद : इसके अलावा कई और शक्तिपीठ के प्रमुख भी शंकराचार्य कहा जाता हैं. तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ के प्रमुख को भी शंकराचार्य का दर्जा मिला है. हालांकि आदि शंकर ने जिन चार मठों की स्थापना की थी, उसमें कांची कामकोटि पीठ (Kanchi Kamakoti Peeth) का नाम नहीं है. इस आधार पर कांची कामकोटि पीठ के शक्तिपीठ होने को लेकर काफी विवाद हुआ. चार प्रमुख मठ यानी द्वारका, ज्योतिष, गोवर्धन और श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ (Kanchi Kamakoti Peeth) को आदि पीठ नहीं मानते हैं. हालांकि बाद में इस पीठ के प्रमुख शंकराचार्य कहलाने लगे.
कांची कामकोटि पीठ की वेबसाइट के अनुसार आदिगुरु शंकराचार्य का जन्म 2500 साल पहले 509 ईसा पूर्व में हुआ था. उन्होंने अपने अंतिम दिन कांची में बिताए थे, इसलिए इसे हिंदू अद्वैत परंपरा के पांचवें पीठ का दर्जा मिला. 28 फरवरी 2018 को 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के निधन के बाद श्री शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामी ने श्री कांची कामकोटि पीठ के 70वें शंकराचार्य बने .
वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं चार मठ : आदि शंकर के हिंदू अद्वैत परंपरा वाले चार मठ चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे गुजरात में द्वारकाधाम में बने शारदा मठ में सामवेद को रखा गया है. इस मठ के सन्यासी अपने नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम नाम का विशेषण लगाते हैं. ओडिशा (पूर्व) के गोवर्धन मठ का मूल ऋग्वेद है और इस मठ के सन्यासी अपने साथ 'आरण्य' विशेषण लगाते हैं. दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित श्रृंगेरी मठ के साथ यजुर्वेद जुड़ा है और इस मठ के सन्यासी सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाते हैं. उत्तराखंड के बदरिकाश्रम का ज्योतिर्मठ के मूल में अथर्ववेद है. इस पीठ के सन्यासी अपने नाम में गिरी, पर्वत और सागर विशेषण का प्रयोग करते हैं.
आदि शंकर ने बनाए थे शंकराचार्य चुनने के नियम : आदि शंकर ने शंकराचार्य के चुनाव तय करने के लिए 73 श्लोकों वाले मठ मनाय ग्रंथ की रचना की. इन श्लोकों में शंकराचार्य बनने के नियम और सिद्धांतों के बारे में बताया है. मनाय ग्रंथ के मुताबिक, शंकराचार्य बनने से पहले चार वेद और 6 वेदांगों में दक्ष संन्यासी को वेदांत के विद्वानों से बहस करनी पड़ती है. इसके बाद सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के प्रमुख महामंडलेश्वर और काशी विद्वत परिषद की भी सहमति लेना भी जरूरी है . इसके बाद संन्यासी को शंकराचार्य की उपाधि दी जाती है. नियमों के मुताबिक, कांची कामकोटी में ही शंकराचार्य पहले से अपने उत्तराधिकारी (Successors of Shankaracharya)की घोषणा कर देते हैं. इसके अलावा चार अन्य पीठों के लिए आदि शंकर की ओर से निर्धारित नियमों का पालन करना होता है.
स्वामी स्वरूपानंद की इच्छा के अनुसार, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ के प्रमुख बनाने की घोषणा की गई है. इस पर अन्य पीठों और संत समाज की ओर से क्या प्रतिक्रिया आएगा, इससे नए शंकराचार्यों की स्थिति स्पष्ट होगी.
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