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एआर रहमान की धुन पर विवाद, काजी नजरूल इस्लाम का परिवार हुआ आहत

controversy on film Pippa and its music : हिंदी फिल्म पिप्पा के एक गाने को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि निर्माता को माफी मांगनी पड़ी. इस गाने में बांग्लादेश के राष्ट्रकवि काजी नजरूल इस्लाम की रचनाओं का प्रयोग किया गया है. संगीत एआर रहमान ने दिया है. कवि के परिवार वालों का आरोप है कि रहमान ने जो धुन बनाई है, उससे गलत संदेश जा रहा है.

Film Pippa controversy
फिल्म पिप्पा पर विवाद
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 14, 2023, 7:34 PM IST

कोलकाता : बांग्लादेश के राष्ट्रकवि काजी नजरूल इस्लाम की एक कविता को लेकर विवाद हो गया है. उनके परिवार ने पूरे मुद्दे पर नाराजगी जताई है. यह विवाद एक हिंदी फिल्म से जुड़ा है.

दरअसल, काजी नजरूल इस्लाम की एक रचना की कुछ पंक्तियां हिंदी फिल्म में इस्तेमाल की गई हैं. इसका संगीत मशूहर संगीतकार एआर रहमान ने दिया है. उनकी रचना है - कारार ओई लौह कपाट .... इस पंक्ति को फिल्म 'पिप्पा' में इस्तेमाल किया गया है. इस फिल्म का कथानक बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से संबंधित है. फिल्मकार के मुताबिक यह सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है.

काजी नजरूल इस्लाम के परिवार ने कहा है कि आखिर वह समझौता क्या है, जिसके आधार पर उनकी रचना को हिंदी फिल्म में प्रयोग करने की अनुमति दी गई है, वह उसे देखना चाहते हैं. उनकी आपत्ति यह है कि संगीतकार ने इस पंक्ति के लिए जो धुन बनाई है, उससे गलत संदेश जा रहा है, इसलिए उसे फिल्म से हटाया जाए. उनके अनुसार कवि के कहने का जो तात्पर्य था, वह इस संगीत से उद्धृत नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी छवि को नुकसान पहुंचेगा.

मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि कवि की रचना में किस शब्द का प्रयोग हुआ है, इस पर भी विवाद है. जैसे - कपाट. कुछ लोग मानते हैं कि कवि ने 'कपाट' की जगह 'कबाट' लिखा था. हालांकि, इसे पुष्ट करने के लिए कोई भी हस्तलिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक क्योंकि यह पंक्ति लोगों की यादों का हिस्सा है, लिहाजा कुछ लोग कपाट, तो कुछ लोग कबाट शब्द का प्रयोग करते हैं. काजी नजरूल इस्लाम ने इस रचना को 1922 में लिखा था. यह ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखा गया था.

भाषा के जानकार मानते हैं कि दोनों शब्द सही हैं, सिर्फ प्रयोग की बात है कि कुछ लोग कपाट, तो कुछ लोग कबाट शब्द को प्रयोग करना पसंद करते हैं. मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में इस रचना को लेकर कवि की पुत्रवधू के साथ एक समझौता हुआ था. फिल्म के निर्माता ने इसके लिए उन्हें रॉयल्टी भी दी थी. पर, परिवार की आपत्ति धुन को लेकर है. साथ ही जिस व्यक्ति के साथ समझौता हुआ था, उनका निधन हो चुका है. वैसे, भारतीय कानून के मुताबिक 2036 तक कवि की रचना का कॉपीराइट उनके परिवार के पास है, लिहाजा उनकी राय अहम है.

क्या कहना है फिल्म प्रोडक्शन का - जहां तक फिल्म प्रोडक्शन का सवाल है, तो उनका कहना है कि उन्होंने इस रचना को लेकर कॉपीराइट हासिल किया हुआ है, और उन्होंने जो धुन बनाई है, वह रचनात्मक है. उनके अनुसार इस फिल्म के जरिए उन्होंने बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता के लिए जिन लोगों ने बलिदान दिया है, उनको समर्पित है. वैसे, फिल्म पिप्पा के निर्माता रॉय कपूर फिल्म ने पूरे विवाद पर माफी भी मांगी है. उन्होंने कहा कि यदि इस विवाद से किसी का दिल दुखा है, तो वह क्षमा मांगते हैं.

फिल्म के निर्देशक राजा कृष्ण मेनन हैं. इशान खट्टर और मृणाल ठाकुर इस फिल्म के कलाकार हैं. कैप्टन बलराम सिंह मेहता की जिंदगी पर आधारित यह फिल्म है.

ये भी पढ़ें : आलिया भट्ट की नई फिल्म 'जिगरा' के सेट से सामने आईं तस्वीरें, बॉस लेडी लुक में छाईं 'गंगूबाई'

कोलकाता : बांग्लादेश के राष्ट्रकवि काजी नजरूल इस्लाम की एक कविता को लेकर विवाद हो गया है. उनके परिवार ने पूरे मुद्दे पर नाराजगी जताई है. यह विवाद एक हिंदी फिल्म से जुड़ा है.

दरअसल, काजी नजरूल इस्लाम की एक रचना की कुछ पंक्तियां हिंदी फिल्म में इस्तेमाल की गई हैं. इसका संगीत मशूहर संगीतकार एआर रहमान ने दिया है. उनकी रचना है - कारार ओई लौह कपाट .... इस पंक्ति को फिल्म 'पिप्पा' में इस्तेमाल किया गया है. इस फिल्म का कथानक बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से संबंधित है. फिल्मकार के मुताबिक यह सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है.

काजी नजरूल इस्लाम के परिवार ने कहा है कि आखिर वह समझौता क्या है, जिसके आधार पर उनकी रचना को हिंदी फिल्म में प्रयोग करने की अनुमति दी गई है, वह उसे देखना चाहते हैं. उनकी आपत्ति यह है कि संगीतकार ने इस पंक्ति के लिए जो धुन बनाई है, उससे गलत संदेश जा रहा है, इसलिए उसे फिल्म से हटाया जाए. उनके अनुसार कवि के कहने का जो तात्पर्य था, वह इस संगीत से उद्धृत नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी छवि को नुकसान पहुंचेगा.

मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि कवि की रचना में किस शब्द का प्रयोग हुआ है, इस पर भी विवाद है. जैसे - कपाट. कुछ लोग मानते हैं कि कवि ने 'कपाट' की जगह 'कबाट' लिखा था. हालांकि, इसे पुष्ट करने के लिए कोई भी हस्तलिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक क्योंकि यह पंक्ति लोगों की यादों का हिस्सा है, लिहाजा कुछ लोग कपाट, तो कुछ लोग कबाट शब्द का प्रयोग करते हैं. काजी नजरूल इस्लाम ने इस रचना को 1922 में लिखा था. यह ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखा गया था.

भाषा के जानकार मानते हैं कि दोनों शब्द सही हैं, सिर्फ प्रयोग की बात है कि कुछ लोग कपाट, तो कुछ लोग कबाट शब्द को प्रयोग करना पसंद करते हैं. मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में इस रचना को लेकर कवि की पुत्रवधू के साथ एक समझौता हुआ था. फिल्म के निर्माता ने इसके लिए उन्हें रॉयल्टी भी दी थी. पर, परिवार की आपत्ति धुन को लेकर है. साथ ही जिस व्यक्ति के साथ समझौता हुआ था, उनका निधन हो चुका है. वैसे, भारतीय कानून के मुताबिक 2036 तक कवि की रचना का कॉपीराइट उनके परिवार के पास है, लिहाजा उनकी राय अहम है.

क्या कहना है फिल्म प्रोडक्शन का - जहां तक फिल्म प्रोडक्शन का सवाल है, तो उनका कहना है कि उन्होंने इस रचना को लेकर कॉपीराइट हासिल किया हुआ है, और उन्होंने जो धुन बनाई है, वह रचनात्मक है. उनके अनुसार इस फिल्म के जरिए उन्होंने बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता के लिए जिन लोगों ने बलिदान दिया है, उनको समर्पित है. वैसे, फिल्म पिप्पा के निर्माता रॉय कपूर फिल्म ने पूरे विवाद पर माफी भी मांगी है. उन्होंने कहा कि यदि इस विवाद से किसी का दिल दुखा है, तो वह क्षमा मांगते हैं.

फिल्म के निर्देशक राजा कृष्ण मेनन हैं. इशान खट्टर और मृणाल ठाकुर इस फिल्म के कलाकार हैं. कैप्टन बलराम सिंह मेहता की जिंदगी पर आधारित यह फिल्म है.

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