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संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से समझें GNCTD बिल के कानूनी पहलू

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Published : Mar 17, 2021, 2:25 PM IST

केंद्र द्वारा संसद में लाए गए संशोधन बिल के कारण दिल्ली राज्य सरकार बनाम केंद्र सरकार की स्थिति बन गई है. इसी बिल को लेकर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से विस्तार से बात की. सुनिए उन्होंने क्या कहा...

GNCTD बिल
GNCTD बिल

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एक बार फिर अधिकारों की जंग छिड़ गई है. केंद्र द्वारा संसद में लाए गए संशोधन बिल के कारण राज्य बनाम केंद्र सरकार की स्थिति बन गई है. केंद्र सरकार ने सोमवार को संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन 2021 विधेयक को पेश किया. इसके अनुसार दिल्ली में उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ जाएंगे. अब दिल्ली की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी सरकार केंद्र द्वारा लाए गए इस बिल का विरोध कर रही है.

इसे राज्य सरकार के अधिकार दबाने वाला बता रही है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के तमाम नेता कह रहे हैं इस बिल के आने से चुनी हुई सरकार को संविधान से जो अधिकारें मिली हुई है, यह उसकी हत्या है. आम आदमी पार्टी इस संशोधन विधेयक के खिलाफ बुधवार को सड़क पर उतरने का भी फैसला लिया है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप

जंतर-मंतर पर इस बिल का विरोध करने के लिए सरकार व पार्टी के तमाम लोग मौजूद होंगे. ऐसे सरकार बड़ा सवाल यह है कि आखिर केंद्र सरकार ने जो लोकसभा में बिल आया है वह बिल क्या है? इसके क्या फायदे व नुकसान हैं और क्या यह सही मायने में एक चुनी हुई सरकार को जो संविधान प्रदत्त अधिकार मिला है उसे इस बिल के जरिए सीज करने की कोशिश है? इस बारे में ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से विस्तार से बात की.

यह भी पढ़ें- GNCTD Bill: आर-पार की लड़ाई को तैयार AAP, जंतर-मंतर पर बुधवार को करेगी प्रदर्शन

'नितांत संवैधानिक है यह बिल'

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन 2021विधेयक जो पेश किया गया है यह नितांत संवैधानिक है. दिल्ली सरकार तथा उपराज्यपाल के अधिकारों को लेकर जो सुप्रीम कोर्ट का आदेश था, यह बिल उस आदेश को स्पष्ट करने वाला है. यह किसी भी तरह के संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं है. दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है इसमें उपराज्यपाल और सरकार को क्या अधिकार है, यह पहले से तय हैं.

'केंद्र ला सकती है नया कानून'

सुभाष कश्यप कहते हैं कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है. जिसे राष्ट्रपति, उपराज्यपाल के द्वारा संचालित कर किया जाता है. ऐसे में राज्य सरकार के अधिकार सीमित होते हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के नाते संसद के पास अतिरिक्त अधिकार है कि वह चाहे तो कानून में किसी भी तरह का संशोधन कर सकती है या कोई नया कानून ला सकती है.

यह भी पढ़ें- 'केजरीवाल सरकार के काम से परेशान है भाजपा, दिल्ली के सपनों पर लगाना चाहती है ब्रेक'

'उपराज्यपाल की शक्तियां स्पष्ट करने वाला है बिल'
बिल पर टिप्पणी करते हुए सुभाष कश्यप ने कहा कि जनता द्वारा चुनी हुई राज्य सरकार और केंद्र की ओर से मनोनीत उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच वर्षों से टकराव चल रहा है. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंततः सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के क्षेत्राधिकार को सुनिश्चित कर दिया था. इसमें राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार तो स्पष्ट हो गए लेकिन उपराज्यपाल की कुछ शक्तियां को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही. इस संशोधन विधेयक का उद्देश्य उपराज्यपाल की शक्तियों को स्पष्ट करना है.

'राजनीतिक लाभ के लिए केजरीवाल सरकार कर रही विरोध'

सुभाष कश्यप कहते हैं केजरीवाल सरकार इस संशोधन विधेयक को दिल्ली की चुनी हुई सरकार के खिलाफ बताते हुए जो विरोध कर रही है यह सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है. इस बिल को लेकर जो टिप्पणियां आ रही हैं, इसको लेकर आंदोलन करने की बात की जा रही है यह सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशभर है.केजरीवाल सरकार द्वारा इस बिल के विरोध को उन्होंने राजनीतिक प्रोपेगेंडा करार दिया. कहा कि इस बिल से दिल्ली सरकार के अधिकारों का कोई खनन नहीं किया गया बल्कि केवल उपराज्यपाल के साथ सामंजस्य में काम करने का प्रावधान दिया गया है.

यह भी पढ़ें- संसद में संशोधन बिल का नारेबाजी के साथ विरोध, प्लेकार्ड लेकर पहुंचे AAP सांसद

'बिल में प्रशासनिक और विधायी अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख'

इस विधेयक में उपराज्यपाल के प्रशासनिक और विधायी अधिकारों को स्पष्ट तौर से परिभाषित कर उन सभी विषयों को उपराज्यपाल के अधीन करने का प्रस्ताव है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की परिधि से बाहर रह गए हैं. इसलिए माना जा रहा है कि यह विधयेक उपराज्यपाल के अधिकारों में वृद्धि करेगा.


क्या है केंद्र सरकार द्वारा लाया गया बिल

केंद्र सरकार ने संसद के जो बिल पेश किया है उसमें कहा गया है कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को बढ़ावा देता है. इसके तहत दिल्ली में राज्य सरकार और उपराज्यपाल की जिम्मेदारियां को बताया गया है. बिल में कहा गया है कि राज्य की विधान सभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.

इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली के अरविंद केजरीवाल सरकार आपत्ति दर्ज करा रही है. बिल में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार कैबिनेट या फिर किसी मंत्री द्वारा कोई भी शासनात्मक फैसला लिया जाता तो उसमें उपराज्यपाल की राय या मंजूरी जरूरी है. साथ ही विधानसभा के पास अपनी मर्जी से कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. जिसका असर दिल्ली सरकार में प्रशासनिक तौर पर पड़ता है.

उपराज्यपाल बनाम दिल्ली सरकार, पुरानी है लड़ाई

वर्ष 2014 में अरविंद केजरीवाल सरकार और तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच जनलोकपाल बिल को लेकर विवाद शुरू हुआ था. स्थिति ऐसी बनी कि विधानसभा में इस मुद्दे पर समर्थन नहीं मिलने का अंदेशा देख केजरीवाल ने 49 दिनों में ही अपनी सरकार गिरा ली.

वर्ष 2015 में फिर 70 में से 67 सीटें जीतकर आई तब भी मुख्य सचिव की नियुक्ति, एसीबी, वीके शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट , आप विधायकों के कैम्प ऑफिस, मोहल्ला क्लीनिक, सीसीटीवी, नई बसें आदि खरीदने को लेकर सरकार व उपराज्यपाल के बीच टकराव होता रहा.

अदालत पहुंची अधिकारों की लड़ाई

वर्ष 2016 में दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के चल रही लड़ाई का मामला अदालत पहुंचा. 4 अगस्त 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को सर्वेसर्वा बताते हुए फैसला दिया तो दिल्ली सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गयी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था और वर्ष 2018-19 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक दिल्ली में जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर से जुड़े फैसलों पर उपराज्यपाल से मंजूरी लेने को कहा था. इसके अलावा राज्य सरकार को उपराज्यपाल की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं बताया था.

हालांकि दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए फैसले की सूचना उपराज्यपाल को देने के निर्देश दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद राज्य सरकार ने किसी प्रशासनिक फैसले की फाइल को उपराज्यपाल के पास निर्णय से पहले भेजना बंद किया और सिर्फ सूचित करने का काम किया. इसी को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तकरार होती रही थी और अब केंद्र में संसद में यह बिल लेकर आई है.

बिल पर सरकार को इसलिए है आपत्ति

संसद में पेश बिल पर दिल्ली सरकार घोर आपत्ति जता रही है मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह कहना है कि अगर यह बिल पास होता है तो दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ उपराज्यपाल होगा और हर निर्णय के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी, यह गलत है.

संघ शासित प्रदेशों में चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल को कैसे काम करना है सब संविधान में वर्णित है. अन्य संघ शासित प्रदेशों में कामकाज ठीक चल रहा है. सुभाष कश्यप कहते हैं दिल्ली में भी जब शीला दीक्षित की सरकार थी तब कभी उपराज्यपाल से टकराव आदि की बातें नहीं हुई. दोनों ने बड़े सामंजस्य बैठकर काम किया. शीला सरकार के कार्यकाल में दिल्ली में बहुत विकास कार्य हुए हैं.

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एक बार फिर अधिकारों की जंग छिड़ गई है. केंद्र द्वारा संसद में लाए गए संशोधन बिल के कारण राज्य बनाम केंद्र सरकार की स्थिति बन गई है. केंद्र सरकार ने सोमवार को संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन 2021 विधेयक को पेश किया. इसके अनुसार दिल्ली में उपराज्यपाल के अधिकार बढ़ जाएंगे. अब दिल्ली की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी सरकार केंद्र द्वारा लाए गए इस बिल का विरोध कर रही है.

इसे राज्य सरकार के अधिकार दबाने वाला बता रही है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के तमाम नेता कह रहे हैं इस बिल के आने से चुनी हुई सरकार को संविधान से जो अधिकारें मिली हुई है, यह उसकी हत्या है. आम आदमी पार्टी इस संशोधन विधेयक के खिलाफ बुधवार को सड़क पर उतरने का भी फैसला लिया है.

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप

जंतर-मंतर पर इस बिल का विरोध करने के लिए सरकार व पार्टी के तमाम लोग मौजूद होंगे. ऐसे सरकार बड़ा सवाल यह है कि आखिर केंद्र सरकार ने जो लोकसभा में बिल आया है वह बिल क्या है? इसके क्या फायदे व नुकसान हैं और क्या यह सही मायने में एक चुनी हुई सरकार को जो संविधान प्रदत्त अधिकार मिला है उसे इस बिल के जरिए सीज करने की कोशिश है? इस बारे में ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से विस्तार से बात की.

यह भी पढ़ें- GNCTD Bill: आर-पार की लड़ाई को तैयार AAP, जंतर-मंतर पर बुधवार को करेगी प्रदर्शन

'नितांत संवैधानिक है यह बिल'

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन 2021विधेयक जो पेश किया गया है यह नितांत संवैधानिक है. दिल्ली सरकार तथा उपराज्यपाल के अधिकारों को लेकर जो सुप्रीम कोर्ट का आदेश था, यह बिल उस आदेश को स्पष्ट करने वाला है. यह किसी भी तरह के संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं है. दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है इसमें उपराज्यपाल और सरकार को क्या अधिकार है, यह पहले से तय हैं.

'केंद्र ला सकती है नया कानून'

सुभाष कश्यप कहते हैं कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है. जिसे राष्ट्रपति, उपराज्यपाल के द्वारा संचालित कर किया जाता है. ऐसे में राज्य सरकार के अधिकार सीमित होते हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के नाते संसद के पास अतिरिक्त अधिकार है कि वह चाहे तो कानून में किसी भी तरह का संशोधन कर सकती है या कोई नया कानून ला सकती है.

यह भी पढ़ें- 'केजरीवाल सरकार के काम से परेशान है भाजपा, दिल्ली के सपनों पर लगाना चाहती है ब्रेक'

'उपराज्यपाल की शक्तियां स्पष्ट करने वाला है बिल'
बिल पर टिप्पणी करते हुए सुभाष कश्यप ने कहा कि जनता द्वारा चुनी हुई राज्य सरकार और केंद्र की ओर से मनोनीत उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच वर्षों से टकराव चल रहा है. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंततः सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के क्षेत्राधिकार को सुनिश्चित कर दिया था. इसमें राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार तो स्पष्ट हो गए लेकिन उपराज्यपाल की कुछ शक्तियां को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही. इस संशोधन विधेयक का उद्देश्य उपराज्यपाल की शक्तियों को स्पष्ट करना है.

'राजनीतिक लाभ के लिए केजरीवाल सरकार कर रही विरोध'

सुभाष कश्यप कहते हैं केजरीवाल सरकार इस संशोधन विधेयक को दिल्ली की चुनी हुई सरकार के खिलाफ बताते हुए जो विरोध कर रही है यह सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है. इस बिल को लेकर जो टिप्पणियां आ रही हैं, इसको लेकर आंदोलन करने की बात की जा रही है यह सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशभर है.केजरीवाल सरकार द्वारा इस बिल के विरोध को उन्होंने राजनीतिक प्रोपेगेंडा करार दिया. कहा कि इस बिल से दिल्ली सरकार के अधिकारों का कोई खनन नहीं किया गया बल्कि केवल उपराज्यपाल के साथ सामंजस्य में काम करने का प्रावधान दिया गया है.

यह भी पढ़ें- संसद में संशोधन बिल का नारेबाजी के साथ विरोध, प्लेकार्ड लेकर पहुंचे AAP सांसद

'बिल में प्रशासनिक और विधायी अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख'

इस विधेयक में उपराज्यपाल के प्रशासनिक और विधायी अधिकारों को स्पष्ट तौर से परिभाषित कर उन सभी विषयों को उपराज्यपाल के अधीन करने का प्रस्ताव है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की परिधि से बाहर रह गए हैं. इसलिए माना जा रहा है कि यह विधयेक उपराज्यपाल के अधिकारों में वृद्धि करेगा.


क्या है केंद्र सरकार द्वारा लाया गया बिल

केंद्र सरकार ने संसद के जो बिल पेश किया है उसमें कहा गया है कि यह बिल सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को बढ़ावा देता है. इसके तहत दिल्ली में राज्य सरकार और उपराज्यपाल की जिम्मेदारियां को बताया गया है. बिल में कहा गया है कि राज्य की विधान सभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.

इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली के अरविंद केजरीवाल सरकार आपत्ति दर्ज करा रही है. बिल में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार कैबिनेट या फिर किसी मंत्री द्वारा कोई भी शासनात्मक फैसला लिया जाता तो उसमें उपराज्यपाल की राय या मंजूरी जरूरी है. साथ ही विधानसभा के पास अपनी मर्जी से कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. जिसका असर दिल्ली सरकार में प्रशासनिक तौर पर पड़ता है.

उपराज्यपाल बनाम दिल्ली सरकार, पुरानी है लड़ाई

वर्ष 2014 में अरविंद केजरीवाल सरकार और तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच जनलोकपाल बिल को लेकर विवाद शुरू हुआ था. स्थिति ऐसी बनी कि विधानसभा में इस मुद्दे पर समर्थन नहीं मिलने का अंदेशा देख केजरीवाल ने 49 दिनों में ही अपनी सरकार गिरा ली.

वर्ष 2015 में फिर 70 में से 67 सीटें जीतकर आई तब भी मुख्य सचिव की नियुक्ति, एसीबी, वीके शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट , आप विधायकों के कैम्प ऑफिस, मोहल्ला क्लीनिक, सीसीटीवी, नई बसें आदि खरीदने को लेकर सरकार व उपराज्यपाल के बीच टकराव होता रहा.

अदालत पहुंची अधिकारों की लड़ाई

वर्ष 2016 में दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के चल रही लड़ाई का मामला अदालत पहुंचा. 4 अगस्त 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को सर्वेसर्वा बताते हुए फैसला दिया तो दिल्ली सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गयी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था और वर्ष 2018-19 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक दिल्ली में जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर से जुड़े फैसलों पर उपराज्यपाल से मंजूरी लेने को कहा था. इसके अलावा राज्य सरकार को उपराज्यपाल की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं बताया था.

हालांकि दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए फैसले की सूचना उपराज्यपाल को देने के निर्देश दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद राज्य सरकार ने किसी प्रशासनिक फैसले की फाइल को उपराज्यपाल के पास निर्णय से पहले भेजना बंद किया और सिर्फ सूचित करने का काम किया. इसी को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच तकरार होती रही थी और अब केंद्र में संसद में यह बिल लेकर आई है.

बिल पर सरकार को इसलिए है आपत्ति

संसद में पेश बिल पर दिल्ली सरकार घोर आपत्ति जता रही है मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह कहना है कि अगर यह बिल पास होता है तो दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ उपराज्यपाल होगा और हर निर्णय के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी, यह गलत है.

संघ शासित प्रदेशों में चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल को कैसे काम करना है सब संविधान में वर्णित है. अन्य संघ शासित प्रदेशों में कामकाज ठीक चल रहा है. सुभाष कश्यप कहते हैं दिल्ली में भी जब शीला दीक्षित की सरकार थी तब कभी उपराज्यपाल से टकराव आदि की बातें नहीं हुई. दोनों ने बड़े सामंजस्य बैठकर काम किया. शीला सरकार के कार्यकाल में दिल्ली में बहुत विकास कार्य हुए हैं.

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