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याचिकाएं दाखिल कर समानांतर प्रशासन चलाने का लगातार चलन बन गया है: केन्द्र

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में (Supreme court) कहा कि नियुक्तियों के मामले में याचिका दायर कर समानांतर प्रशासन चलाने की प्रवृत्ति बन गई है. यह बातें केंद्र ने ईडी के निदेशक की नियुक्ति आदेश में पहले की तिथि में किए गए बदलाव में कहीं.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 18, 2021, 7:03 AM IST

नई दिल्ली : केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय (Supreme court) में मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा की 2018 की नियुक्ति आदेश में पूर्व तिथि से किए गए बदलाव का बचाव किया और कहा कि नियुक्तियों के मामले में याचिका दाखिल करके समानांतर प्रशासन चलाने की लगातार प्रवृत्ति बन गई है.

केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ( Justices L Nageswara Rao) और न्यायमूर्ति बी आर गवई (Justices B R Gavai) की पीठ से कहा कि सीवीसी की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी बैठक में मिश्र के कार्यकाल पर विचार किया था.

उन्होंने इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता एनजीओ 'कॉमन कॉज' के अदालत का रुख करने के अधिकार पर सवाल उठाया। सॉलिसीटर जनरल ने तर्क दिया, 'हम इस तरह के निहित स्वार्थ द्वारा इस तरह की जनहित याचिका दाखिल किए जाने की संभावना से इंकार नहीं कर सकते. अदालत के इस महान मंच का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है. ये संगठन पेशेवर जनहित याचिका दाखिल करने वाले संगठनों के रूप में मौजूद हैं. इसी संगठन द्वारा दाखिल की गई यह तीसरी याचिका है. समानांतर प्रशासन चलाने के लिए यह एक सुसंगत प्रवृत्ति है.'

पीठ ने कहा, 'क्या आपको नहीं लगता कि जनहित याचिका लोकतंत्र में लोगों की आवाज उठाने के लिए महत्वपूर्ण हैं?' मेहता ने जवाब दिया कि कुछ संगठन ऐसे हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य जनहित याचिका दाखिल करना है.

ये भी पढ़ें - तुम पत्नी को तलाक दे सकते हो, लेकिन बच्चों को नहीं : न्यायालय ने व्यक्ति से कहा

गैर सरकारी संगठन (NGO) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने शीर्ष अदालत को बताया कि यह मामला सार्वजनिक कानून का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और मिश्रा के कार्यकाल को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक के रूप में बढ़ाने का आदेश कार्यकारी शक्ति का इससे बड़ा दुरुपयोग नहीं हो सकता है.

दवे ने कहा कि मिश्रा को 60 वर्ष की आयु के बाद फिर से नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया था. उन्होंने कहा, 'विस्तारित कार्यकाल सहित कुल अवधि दो साल से अधिक नहीं है. अगर सरकार इस तरह से काम करेगी, तो सेवाओं में अव्यवस्था होगी. अधिकारियों की वैध उम्मीदें हैं.'

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने ईडी के निदेशक के रूप में संजय कुमार मिश्रा की 2018 के नियुक्ति आदेश में पूर्व तिथि से बदलाव को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर केंद्र, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) से जवाब मांगा था.

मिश्रा का ईडी निदेशक के रूप में कार्यकाल दो से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया था.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय (Supreme court) में मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा की 2018 की नियुक्ति आदेश में पूर्व तिथि से किए गए बदलाव का बचाव किया और कहा कि नियुक्तियों के मामले में याचिका दाखिल करके समानांतर प्रशासन चलाने की लगातार प्रवृत्ति बन गई है.

केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ( Justices L Nageswara Rao) और न्यायमूर्ति बी आर गवई (Justices B R Gavai) की पीठ से कहा कि सीवीसी की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी बैठक में मिश्र के कार्यकाल पर विचार किया था.

उन्होंने इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता एनजीओ 'कॉमन कॉज' के अदालत का रुख करने के अधिकार पर सवाल उठाया। सॉलिसीटर जनरल ने तर्क दिया, 'हम इस तरह के निहित स्वार्थ द्वारा इस तरह की जनहित याचिका दाखिल किए जाने की संभावना से इंकार नहीं कर सकते. अदालत के इस महान मंच का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है. ये संगठन पेशेवर जनहित याचिका दाखिल करने वाले संगठनों के रूप में मौजूद हैं. इसी संगठन द्वारा दाखिल की गई यह तीसरी याचिका है. समानांतर प्रशासन चलाने के लिए यह एक सुसंगत प्रवृत्ति है.'

पीठ ने कहा, 'क्या आपको नहीं लगता कि जनहित याचिका लोकतंत्र में लोगों की आवाज उठाने के लिए महत्वपूर्ण हैं?' मेहता ने जवाब दिया कि कुछ संगठन ऐसे हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य जनहित याचिका दाखिल करना है.

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गैर सरकारी संगठन (NGO) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने शीर्ष अदालत को बताया कि यह मामला सार्वजनिक कानून का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और मिश्रा के कार्यकाल को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक के रूप में बढ़ाने का आदेश कार्यकारी शक्ति का इससे बड़ा दुरुपयोग नहीं हो सकता है.

दवे ने कहा कि मिश्रा को 60 वर्ष की आयु के बाद फिर से नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया था. उन्होंने कहा, 'विस्तारित कार्यकाल सहित कुल अवधि दो साल से अधिक नहीं है. अगर सरकार इस तरह से काम करेगी, तो सेवाओं में अव्यवस्था होगी. अधिकारियों की वैध उम्मीदें हैं.'

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने ईडी के निदेशक के रूप में संजय कुमार मिश्रा की 2018 के नियुक्ति आदेश में पूर्व तिथि से बदलाव को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर केंद्र, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) से जवाब मांगा था.

मिश्रा का ईडी निदेशक के रूप में कार्यकाल दो से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया था.

(पीटीआई-भाषा)

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