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कोविड को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाने पर विचार करें केंद्र और राज्य : SC - न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को सामूहिक समारोहों और सुपर स्प्रेडर घटनाओं पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ लॉकडाउन लागू करने पर विचार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा अगर लॉकडाउन लागू किया जाता है, तो पिछड़े समुदायों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पहले से व्यवस्था की जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : May 3, 2021, 7:02 PM IST

नई दिल्ली : कोविड -19 की दूसरी लहर के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को सामूहिक समारोहों और सुपर स्प्रेडर घटनाओं पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ लॉकडाउन लागू करने पर विचार करने का निर्देश दिया है.

कोर्ट ने कहा कि हम गंभीर रूप से केंद्र और राज्य सरकारों से सामूहिक समारोहों और सुपर स्प्रेडर घटनाओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करने का आग्रह करते हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि वे लोक कल्याण के हित में दूसरी लहर में वायरस पर अंकुश लगाने के लिए लॉकडाउन लगाने पर भी विचार कर सकते हैं.

कोर्ट ने आगे कहा कि हम लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से परिचित हैं, विशेष रूप से, हाशिए समुदायों पर होने वाले प्रभाव के बारे में हम जानते हैं. अगर लॉकडाउन लागू किया जाता है, तो इन समुदायों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पहले से व्यवस्था की जानी चाहिए.

SC ने केंद्र और राज्य सरकारों को घातक वायरस के प्रसार को रोकने के लिए अब तक किए गए उनके प्रयासों को रिकॉर्ड करने के लिए कहा, जिसमें अब तक 1,99,25,604 संक्रमित हैं, जिसमें 34,13,642 सक्रिय मामले हैं और कुल 2,18,959 लोगों की मौत हो चुकी है.

शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों से कहा कि वे उन उपायों के बारे में सूचित करें, जिनसे उन्होंने निकट भविष्य में वैश्विक बीमारी से निपटने की योजना बनाई है.

कोविड -19 संकट को देखते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में स्थानीय आवासीय या पहचान प्रमाण न होने के कारण किसी भी रोगी को अस्पताल में भर्ती या आवश्यक दवाओं से वंचित नहीं किया जाएगा.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने निर्देश जारी किया कि केंद्र सरकार को दो सप्ताह के भीतर अस्पतालों में भर्ती को लेकर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करनी चाहिए.

न्यायाधीश ने कहा कि इस नीति का सभी राज्य सरकारों को भी पालन करना चाहिए और कोई भी मरीज स्थानीय आवासीय या पहचान प्रमाण के अभाव में प्रवेश या आवश्यक दवाओं से वंचित नहीं रहना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने नोट किया कि कोविड महामारी की दूसरी लहर की शुरुआत के बाद से देश भर में हजारों लोगों के सामने बिस्तर के साथ अस्पताल में दाखिल होना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. शीर्ष अदालत ने पाया कि नागरिक बहुत ज्यादा कष्ट झेल रहे हैं.

विभिन्न राज्यों और स्थानीय अधिकारियों ने अपने स्वयं के प्रोटोकॉल का पालन किया है. देश भर में विभिन्न अस्पतालों में भर्ती होने के लिए अलग-अलग मानकों से अराजकता और अनिश्चितता होती है. स्थिति को न तो रोका जा सकता है न इसमें देरी की जा सकती है.

पढ़ें - उच्च न्यायालयों का मनोबल नहीं गिरा सकते, वे लोकतंत्र के महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं : सुप्रीम कोर्ट

तदनुसार हम आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत अपनी वैधानिक शक्तियों के अभ्यास में केंद्र सरकार को इस संबंध में एक नीति तैयार करने का निर्देश देते हैं, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर पालन किया जाएगा. ऐसी नीति की उपस्थिति सुनिश्चित करेगी कि कोई भी जरूरतमंद अस्पताल से वापस न लौटे.

रविवार देर रात जारी अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऑक्सीजन का स्टॉक तैयार करने लिए आपूर्ति की लाइनें अप्रत्याशित परिस्थितियों में भी काम करती रहें.

नई दिल्ली : कोविड -19 की दूसरी लहर के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को सामूहिक समारोहों और सुपर स्प्रेडर घटनाओं पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ लॉकडाउन लागू करने पर विचार करने का निर्देश दिया है.

कोर्ट ने कहा कि हम गंभीर रूप से केंद्र और राज्य सरकारों से सामूहिक समारोहों और सुपर स्प्रेडर घटनाओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करने का आग्रह करते हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि वे लोक कल्याण के हित में दूसरी लहर में वायरस पर अंकुश लगाने के लिए लॉकडाउन लगाने पर भी विचार कर सकते हैं.

कोर्ट ने आगे कहा कि हम लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से परिचित हैं, विशेष रूप से, हाशिए समुदायों पर होने वाले प्रभाव के बारे में हम जानते हैं. अगर लॉकडाउन लागू किया जाता है, तो इन समुदायों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पहले से व्यवस्था की जानी चाहिए.

SC ने केंद्र और राज्य सरकारों को घातक वायरस के प्रसार को रोकने के लिए अब तक किए गए उनके प्रयासों को रिकॉर्ड करने के लिए कहा, जिसमें अब तक 1,99,25,604 संक्रमित हैं, जिसमें 34,13,642 सक्रिय मामले हैं और कुल 2,18,959 लोगों की मौत हो चुकी है.

शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों से कहा कि वे उन उपायों के बारे में सूचित करें, जिनसे उन्होंने निकट भविष्य में वैश्विक बीमारी से निपटने की योजना बनाई है.

कोविड -19 संकट को देखते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में स्थानीय आवासीय या पहचान प्रमाण न होने के कारण किसी भी रोगी को अस्पताल में भर्ती या आवश्यक दवाओं से वंचित नहीं किया जाएगा.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने निर्देश जारी किया कि केंद्र सरकार को दो सप्ताह के भीतर अस्पतालों में भर्ती को लेकर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करनी चाहिए.

न्यायाधीश ने कहा कि इस नीति का सभी राज्य सरकारों को भी पालन करना चाहिए और कोई भी मरीज स्थानीय आवासीय या पहचान प्रमाण के अभाव में प्रवेश या आवश्यक दवाओं से वंचित नहीं रहना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने नोट किया कि कोविड महामारी की दूसरी लहर की शुरुआत के बाद से देश भर में हजारों लोगों के सामने बिस्तर के साथ अस्पताल में दाखिल होना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. शीर्ष अदालत ने पाया कि नागरिक बहुत ज्यादा कष्ट झेल रहे हैं.

विभिन्न राज्यों और स्थानीय अधिकारियों ने अपने स्वयं के प्रोटोकॉल का पालन किया है. देश भर में विभिन्न अस्पतालों में भर्ती होने के लिए अलग-अलग मानकों से अराजकता और अनिश्चितता होती है. स्थिति को न तो रोका जा सकता है न इसमें देरी की जा सकती है.

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तदनुसार हम आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत अपनी वैधानिक शक्तियों के अभ्यास में केंद्र सरकार को इस संबंध में एक नीति तैयार करने का निर्देश देते हैं, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर पालन किया जाएगा. ऐसी नीति की उपस्थिति सुनिश्चित करेगी कि कोई भी जरूरतमंद अस्पताल से वापस न लौटे.

रविवार देर रात जारी अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऑक्सीजन का स्टॉक तैयार करने लिए आपूर्ति की लाइनें अप्रत्याशित परिस्थितियों में भी काम करती रहें.

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