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जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वालों को सुरक्षित रास्ता देने को लेकर कांग्रेस ने केंद्र पर साधा निशाना

कांग्रेस ने आरबीआई की नई नीति की आलोचना करते हुए कर्ज चुकाने वालों को सुरक्षित रास्ता देने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है. एआईसीसी प्रवक्ता अमिताभ दुबे (AICC spokesperson Amitabh Dubey) ने सवाल उठाया है कि केंद्र सरकार कर्जदों के साथ क्यों नरमी बरत रही है. पढ़िए पूरी खबर...

AICC spokesperson Amitabh Dubey
एआईसीसी प्रवक्ता अमिताभ दुबे
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Published : Jun 14, 2023, 4:02 PM IST

नई दिल्ली : जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को आरबीआई की नई नीति से सुरक्षित रास्ता देने पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार की आलोचना की है. पार्टी ने मोदी सरकार पर भगोड़ों के प्रति नरमी बरतने का आरोप लगाया और जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को निपटाने की आरबीआई की नई नीति का हवाला दिया. इस बारे में एआईसीसी प्रवक्ता अमिताभ दुबे (AICC spokesperson Amitabh Dubey) ने कहा कि केंद्र सरकार कर्जदारों के साथ नरमी क्यों बरत रही है? इस बारे में आरबीआई ने 8 जून, 2023 को आरबीआई ने समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ़ के लिए रूपरेखा को अधिसूचित की है. इसके तहत आरबीआई ने निर्देश जारी किया है कि बैंक और अन्य विनियमित संस्थाएं बिना किसी पूर्वाग्रह या आपराधिक कार्यवाही के इरादतन चूककार्यताओं या धोखेबाजों के रूप में वर्गीकृत खातों के संबंध में समझौत निपटान और तकनीकी बट्टे खाते में डाल सकती हैं. उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि बैंकों को अब विलफुल डिफॉल्टर्स (Wilful Defaulters) के साथ समझौता करने की अनुमति दी गई है.

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि मोदी सरकार बड़े डिफॉल्टर्स और धोखेबाजों खासकर अडाणी समूह का पक्ष लेती रही है. नए नियम के माध्यम से सरकार विलफुल डिफॉल्टर्स को सुरक्षित मार्ग प्रदान करती है, लेकिन ईएमआई के बोझ से जूझ रहे मध्यम वर्ग को ऐसी कोई राहत नहीं देती है. दुबे के अनुसार, आरबीआई का नया नियम केंद्रीय बैंक की पहले की नीति के खिलाफ था और इसने बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन और अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ, जिसके 6 लाख सदस्य हैं, को नई नीति का विरोध करने के लिए मजबूर किया था.

उन्होंने कहा कि बैंक स्टाफ एसोसिएशन ने नए नियम का विरोध करते हुए कहा है कि इससे न केवल बैंकिंग में जनता का भरोसा कम होगा बल्कि जमाकर्ताओं का विश्वास भी कम होगा. बैंक अधिकारियों ने यह भी कहा है कि इस कदम में एक नैतिक खतरा शामिल है क्योंकि यह विलफुल डिफॉल्टर्स को प्रोत्साहित करेगा. आरबीआई की पहले की नीति के बारे में बात करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने स्टॉक एक्सचेंज में विलफुल डिफॉल्टर्स के प्रवेश और बैंकों से नए ऋण लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था. उन्होंने सवाल उठाया कि यह नियम अब माफ कर दिया गया है. इरादतन चूककर्ताओं को 12 महीने की कूलिंग अवधि की अनुमति दी गई है. आखिर किस वजह से आरबीआई को अपनी पिछली नीति में 180 डिग्री का बदलाव करना पड़ा?

कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि पिछले साल सरकार ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में शीर्ष 15 बकाएदारों की सूची का उल्लेख किया था और गीतांजलि रत्न के मालिक मेहुल चौकसी और नीरव मोदी का नाम अन्य लोगों के बीच प्रमुखता से आया था. उन्होंने कहा कि इन शीर्ष 15 डिफॉल्टरों पर बैंकों का बकाया 95,000 करोड़ रुपये था, यह जनता का पैसा है. कांग्रेस नेता के मुताबिक, बैंकों ने 10 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ कर दिया है लेकिन रिकवरी महज 13 फीसदी रही है.

हालांकि यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार के दौरान बैंकों के एनपीए में काफी वृद्धि हुई है. यूपीए के तहत एनपीए 23,000 करोड़ रुपये था जो अब 40,000 करोड़ रुपये है. दुबे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के दौरान बैंक धोखाधड़ी की संख्या भी 17 गुना बढ़ गई है. 2005 से 2014 तक बैंक धोखाधड़ी 35,000 करोड़ रुपये की थी, लेकिन 2015 से 2023 तक वो 6 लाख करोड़ रुपये की है. इसका असर आम आदमी पर भी पड़ता है क्योंकि बैंकों का पैसा छोटे निवेशकों का पैसा होता है. कांग्रेस नेता ने कहा कि यह मोदी सरकार की मंशा को दर्शाता है. जहां आम आदमी को कोई राहत नहीं है, वहीं विलफुल डिफॉल्टर्स को सुरक्षित रास्ता दिया जा रहा है. उन्होंने आरबीआई और केंद्र नई नीति पर सफाई देने की मांग की है.

ये भी पढ़ें - RBI Monetary Policy: कर्ज नीति का एलान, रेपो रेट में नहीं किया कोई बदलाव

नई दिल्ली : जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को आरबीआई की नई नीति से सुरक्षित रास्ता देने पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार की आलोचना की है. पार्टी ने मोदी सरकार पर भगोड़ों के प्रति नरमी बरतने का आरोप लगाया और जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को निपटाने की आरबीआई की नई नीति का हवाला दिया. इस बारे में एआईसीसी प्रवक्ता अमिताभ दुबे (AICC spokesperson Amitabh Dubey) ने कहा कि केंद्र सरकार कर्जदारों के साथ नरमी क्यों बरत रही है? इस बारे में आरबीआई ने 8 जून, 2023 को आरबीआई ने समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ़ के लिए रूपरेखा को अधिसूचित की है. इसके तहत आरबीआई ने निर्देश जारी किया है कि बैंक और अन्य विनियमित संस्थाएं बिना किसी पूर्वाग्रह या आपराधिक कार्यवाही के इरादतन चूककार्यताओं या धोखेबाजों के रूप में वर्गीकृत खातों के संबंध में समझौत निपटान और तकनीकी बट्टे खाते में डाल सकती हैं. उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि बैंकों को अब विलफुल डिफॉल्टर्स (Wilful Defaulters) के साथ समझौता करने की अनुमति दी गई है.

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि मोदी सरकार बड़े डिफॉल्टर्स और धोखेबाजों खासकर अडाणी समूह का पक्ष लेती रही है. नए नियम के माध्यम से सरकार विलफुल डिफॉल्टर्स को सुरक्षित मार्ग प्रदान करती है, लेकिन ईएमआई के बोझ से जूझ रहे मध्यम वर्ग को ऐसी कोई राहत नहीं देती है. दुबे के अनुसार, आरबीआई का नया नियम केंद्रीय बैंक की पहले की नीति के खिलाफ था और इसने बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन और अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ, जिसके 6 लाख सदस्य हैं, को नई नीति का विरोध करने के लिए मजबूर किया था.

उन्होंने कहा कि बैंक स्टाफ एसोसिएशन ने नए नियम का विरोध करते हुए कहा है कि इससे न केवल बैंकिंग में जनता का भरोसा कम होगा बल्कि जमाकर्ताओं का विश्वास भी कम होगा. बैंक अधिकारियों ने यह भी कहा है कि इस कदम में एक नैतिक खतरा शामिल है क्योंकि यह विलफुल डिफॉल्टर्स को प्रोत्साहित करेगा. आरबीआई की पहले की नीति के बारे में बात करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने स्टॉक एक्सचेंज में विलफुल डिफॉल्टर्स के प्रवेश और बैंकों से नए ऋण लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था. उन्होंने सवाल उठाया कि यह नियम अब माफ कर दिया गया है. इरादतन चूककर्ताओं को 12 महीने की कूलिंग अवधि की अनुमति दी गई है. आखिर किस वजह से आरबीआई को अपनी पिछली नीति में 180 डिग्री का बदलाव करना पड़ा?

कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि पिछले साल सरकार ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में शीर्ष 15 बकाएदारों की सूची का उल्लेख किया था और गीतांजलि रत्न के मालिक मेहुल चौकसी और नीरव मोदी का नाम अन्य लोगों के बीच प्रमुखता से आया था. उन्होंने कहा कि इन शीर्ष 15 डिफॉल्टरों पर बैंकों का बकाया 95,000 करोड़ रुपये था, यह जनता का पैसा है. कांग्रेस नेता के मुताबिक, बैंकों ने 10 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ कर दिया है लेकिन रिकवरी महज 13 फीसदी रही है.

हालांकि यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार के दौरान बैंकों के एनपीए में काफी वृद्धि हुई है. यूपीए के तहत एनपीए 23,000 करोड़ रुपये था जो अब 40,000 करोड़ रुपये है. दुबे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के दौरान बैंक धोखाधड़ी की संख्या भी 17 गुना बढ़ गई है. 2005 से 2014 तक बैंक धोखाधड़ी 35,000 करोड़ रुपये की थी, लेकिन 2015 से 2023 तक वो 6 लाख करोड़ रुपये की है. इसका असर आम आदमी पर भी पड़ता है क्योंकि बैंकों का पैसा छोटे निवेशकों का पैसा होता है. कांग्रेस नेता ने कहा कि यह मोदी सरकार की मंशा को दर्शाता है. जहां आम आदमी को कोई राहत नहीं है, वहीं विलफुल डिफॉल्टर्स को सुरक्षित रास्ता दिया जा रहा है. उन्होंने आरबीआई और केंद्र नई नीति पर सफाई देने की मांग की है.

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