अहमदाबाद: बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कांग्रेस ने सोमवार को आरोप लगाया कि गुजरात की भाजपा सरकार का रुख पीड़िता के लिए न्याय सुनिश्चित करने के बजाय अपराधियों को बचाना था. मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता आनंद याग्निक ने कहा कि गुजरात सरकार का निर्णय (दोषियों को छूट देने का) कानून के अनुरूप नहीं था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यह कुछ 'सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक दबाव' के तहत लिया गया था.
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले से कानून का शासन कायम हुआ है. गोधरा में 2002 में हुई ट्रेन अग्निकांड के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनकी तीन साल की बेटी सहित परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी. गुजरात सरकार ने इस मामले के सभी 11 दोषियों को सजा में छूट देकर 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया था.
उच्चतम न्यायालय ने सजा में दी गई छूट को सोमवार को रद्द कर दिया और दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. न्यायालय ने कहा कि गुजरात सरकार को छूट का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था. शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में वह राज्य सक्षम होता है जहां दोषियों पर मुकदमा चलाया जाता है. दोषियों पर मुकदमा गुजरात की जगह महाराष्ट्र में चलाया गया था.
न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस की गुजरात इकाई के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा कि राज्य की भाजपा सरकार कानून और संविधान का पालन करती नहीं दिख रही है. उन्होंने दावा किया, 'ऐसा प्रतीत होता है कि यह (गुजरात सरकार) पीड़ितों को न्याय दिलाने के बजाय दोषियों को बचाने के लिए काम कर रही है और यह उच्चतम न्यायालय के फैसले से पूरी तरह साबित हुआ है.' कांग्रेस नेता ने दावा किया कि यह एकमात्र उदाहरण नहीं है और ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां सरकार ने पीड़ितों की रक्षा करने के बजाय अपराधियों को बचाया है.
दोशी ने कहा, 'यह समाज के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार कानून के अनुसार चले. सरकार ऐसे जघन्य अपराध की पीड़िता के लिए न्याय सुनिश्चित करने में विफल रही है.' गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता याग्निक ने कहा, 'सबसे पहले, सजा में छूट के लिए जो नियम लागू होते हैं, वे सरकार को उन दोषियों की सजा माफ करने की अनुमति नहीं देते हैं जो बलात्कार, हत्या और ऐसे जघन्य अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं.'
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय अंततः इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि राज्य या केंद्र सरकार को जघन्य अपराधों में शामिल लोगों की सजा माफ करने का अधिकार नहीं है. याग्निक ने कहा, 'भले ही यह महाराष्ट्र सरकार पर निर्भर हो, वह छूट नहीं दे सकती...फैसले से पता चलता है कि कानून का शासन कायम हुआ है.' उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार का निर्णय कानून के अनुरूप नहीं था और यह 'सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दबाव' था जिसने अंततः गुजरात सरकार को ऐसा निर्णय लेने के लिए मजबूर किया.
अंतत: न्याय की जीत, भाजपा की महिला विरोधी नीतियों से पर्दा हटा: प्रियंका
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अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप की शिकार #BilkisBano के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों पर पड़ा हुआ पर्दा हट गया है। इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत…
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वहीं, इस मामले पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बिलकिस बानो मामले के दोषियों की सजा में छूट देने के फैसले को उच्चतम न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने के बाद सोमवार को कहा कि न्याय की जीत हुई है तथा इस निर्णय से जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत होगा. उन्होंने यह दावा भी किया कि सर्वोच्च अदालत के आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों से पर्दा हट गया है.
प्रियंका गांधी ने 'एक्स’ पर पोस्ट किया, 'अंततः न्याय की जीत हुई. उच्चतम न्यायालय ने गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म की शिकार बिलकिस बानो के मामले के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है.' उन्होंने दावा किया, 'इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियां सामने आ गई हैं.'
कांग्रेस महासचिव ने यह भी कहा, 'इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत होगा. बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए बिलकिस बानो को बधाई.' उच्चतम न्यायालय ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आदेश 'घिसा पिटा' था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था.
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया.
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