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छत्तीसगढ़ : कांग्रेस की 'पोस्टर लेडी' बल्दी बाई की बदरंग जिंदगी

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Published : Feb 12, 2021, 11:59 AM IST

कांग्रेस की 'पोस्टर लेडी' बल्दी बाई की प्रसूता बहू और नवजात की जान सिस्टम ने ले ली. बल्दी बाई वहीं हैं जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अपने घर में कंदमूल खिलाए थे. उनका परिवार पैसों और सुविधाओं के लिए तरस रहा है. पढ़िये विशेष रिपोर्ट ...

कांग्रेस की 'पोस्टर लेडी'
कांग्रेस की 'पोस्टर लेडी'

रायपुर : छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में करीब 40 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने जब बल्दी बाई के हाथों कंदमूल खाएं होंगे तो बल्दी बाई ने एक बार सोचा जरूर होगा कि अब उसकी किस्मत बदलने वाली है. लेकिन ये सोच सिर्फ सोच ही रह गई. विशेष पिछड़ी कमार जनजाति के परिवार की ना हालत सुधरी और ना ही उन्हें किसी तरह की मदद मिली.

बल्दी बाई वो नाम है, जिसे छत्तीसगढ़ में हर पुराना कांग्रेसी जानता है. बिंद्रा नवागढ़ की राजनीति करने वाला हर कांग्रेसी कभी न कभी इनकी चौखट पर जरूर आया है. इनके साथ फोटो भी खिंचवाई होगी. बल्दी बाई कांग्रेस की पोस्टर लेडी बन गईं. नेताओं ने राजीव गांधी के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर इनके साथ फोटो खींची. बड़े-बड़े पोस्टर लगाए. हर साल राजीव गांधी की जयंती और पुण्यतिथि पर बिंद्रा नवागढ़ के कांग्रेसी इन्हें शॉल और श्रीफल से सम्मानित करना नहीं भूले. लेकिन इन्हें जिस आर्थिक मदद की सबसे ज्यादा जरूरत थी वो इन्हें कभी नहीं मिली. आर्थिक तंगी के बीच परिवार चलाने की जद्दोजहद करते-करते पहले इनके पति और फिर एक बेटे की मौत भी हो चुकी है.

कांग्रेस की 'पोस्टर लेडी'

सिर्फ पोस्टर तक सीमित रहीं बल्दी बाई

शासन प्रशासन ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चले जाने के बाद इस गांव की कोई खास सुध नहीं ली. विशेष पिछड़ी कमार जनजाति बाहुल्य इस इलाके में सरकारी सुविधाएं जैसे दम तोड़ती से नजर आती हैं. बीते सालों में कुछ सुधार जरूर हुआ है लेकिन गांव के लोगों को अब भी सरकारी योजनाओं का लाभ पूरी तरह नहीं मिल पाया है.

सिस्टम की लापरवाही ने ली बल्दी की बहू और पोते की जान

इतना महत्वपूर्ण परिवार होने के बाद भी सिस्टम की लापरवाही की वजह से परिवार की प्रसूता बहू और नवजात की जान चली गई. अभावों और परेशानियों के बीच जिंदगी जी रहे यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आज भी जद्दोजहद करनी पड़ती है. बल्दी बाई की प्रसूता बहू के साथ भी ऐसा ही हुआ. प्रसव पीड़ा होने पर इलाज के लिए 102 एंबुलेंस से मैनपुर चिकित्सालय ले जाया गया. जहां से गरियाबंद रेफर कर दिया गया. गरियाबंद में पेट में बच्चे की मौत होने की बात कहते हुए रायपुर रेफर किया गया. इसी बीच महिला को अभनपुर के एक निजी चिकित्सालय ले जाया गया.

4 से 5 बार बदले एंबुलेंस

मैनपुर की एंबुलेंस में प्रसूता को गरियाबंद छोड़ा. यहां से एक एंबुलेंस पांडुका तक लेकर गई. दूसरी एंबुलेंस राजिम लेकर पहुंची. फिर राजिम से एक एंबुलेंस अभनपुर लेकर गई. पेट में नवजात की मौत के बाद बार-बार एंबुलेंस बदलने से महिला की हालत और ज्यादा नाजुक हो गई थी. रायपुर मेकाहारा रेफर करने के बावजूद प्रसूता को अभनपुर के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया. वहां इलाज के नाम पर कुछ खानापूर्ति की गई. जहां महिला ने दम तोड़ दिया.

पढ़ें : राजस्थान के दो दिवसीय दौरे पर जाएंगे राहुल, ट्रैक्टर रैली में होंगे शामिल

शव ले जाने अस्पताल ने मांगे 25 हजार रुपये

इस परिवार पर परेशानी का सिलसिला यहीं नहीं थमा. अस्पताल में दाखिल होते समय उन्हें बताया गया था कि राशन कार्ड जमा कराने पर सरकारी खर्च में इलाज होगा लेकिन बच्चे और मां की मौत के बाद निजी अस्पताल प्रबंधन के सुर बदल गए. अस्पताल प्रशासन ने बड़ी विचित्र सी दलील देते हुए कहा कि प्रसूता अगर सुबह तक जिंदा होती तो राशन कार्ड जमा करते हुए इलाज सरकारी खर्च पर होता. लेकिन दोनों की रात को ही मौत हो गई. इसलिए अब अस्पताल का खर्च पीड़ित परिवार को देना ही पड़ेगा. तभी वे लाश ले जा सकेंगे.

कर्ज लेकर लाश छुड़ाया

बेहद गरीब परिवार होने के चलते परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे. रिश्तेदारों से संपर्क किया गया. उन्होंने भी मदद करते हुए तीन लोगों से 10-10 हजार और 5000 का कर्ज लिया और 25 हजार रुपये की व्यवस्था की. एक युवक को रुपये देकर मोटरसाइकिल से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर अभनपुर भेजा. तब जाकर मृतक की लाश परिजनों को सौंपी गई.

गांव पहुंचकर मां-बच्चे का किया अंतिम संस्कार

कर्ज लेकर लाश छुड़ाने के बाद परिजन सीधा अपने गांव पहुंचे और इसे ही अपनी नियति मानकर मृतका और नवजात का अंतिम संस्कार कर दिया.

पढ़ें : टीएमसी अब मात्र बुआ और भतीजे की पार्टी : भाजपा

मामला मीडिया में आने के बाद दी सहायता

सिस्टम की लापरवाही की भेंट चढ़े इस परिवार की सुध दिन भर किसी ने नहीं ली. मामला बल्दी बाई के परिवार का होने के कारण मीडिया में सुर्खियों में आया. पूर्व मुख्यमंत्री ने मामले में ट्वीट भी किया. तब कहीं जाकर शासन प्रशासन हरकत में आया और पीड़ित परिवार को 50 हजार की आर्थिक सहायता रेड क्रॉस से दी. कर्ज लेकर अस्पताल को चुकाई गई रकम भी वापस दिलवाने की बात कही. अस्पताल ने राशि भी लौटा दी है.

स्वास्थ्य अधिकारी ने भी मानी गलती

इस संबंध में जिला चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर एन. नवरत्न ने मामले में कई स्तर पर गलती होने की बात स्वीकारी है. उन्होंने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया. अभनपुर के निजी चिकित्सालय से पैसा वापस दिलवाने सहित उन पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया.

रायपुर : छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में करीब 40 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने जब बल्दी बाई के हाथों कंदमूल खाएं होंगे तो बल्दी बाई ने एक बार सोचा जरूर होगा कि अब उसकी किस्मत बदलने वाली है. लेकिन ये सोच सिर्फ सोच ही रह गई. विशेष पिछड़ी कमार जनजाति के परिवार की ना हालत सुधरी और ना ही उन्हें किसी तरह की मदद मिली.

बल्दी बाई वो नाम है, जिसे छत्तीसगढ़ में हर पुराना कांग्रेसी जानता है. बिंद्रा नवागढ़ की राजनीति करने वाला हर कांग्रेसी कभी न कभी इनकी चौखट पर जरूर आया है. इनके साथ फोटो भी खिंचवाई होगी. बल्दी बाई कांग्रेस की पोस्टर लेडी बन गईं. नेताओं ने राजीव गांधी के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर इनके साथ फोटो खींची. बड़े-बड़े पोस्टर लगाए. हर साल राजीव गांधी की जयंती और पुण्यतिथि पर बिंद्रा नवागढ़ के कांग्रेसी इन्हें शॉल और श्रीफल से सम्मानित करना नहीं भूले. लेकिन इन्हें जिस आर्थिक मदद की सबसे ज्यादा जरूरत थी वो इन्हें कभी नहीं मिली. आर्थिक तंगी के बीच परिवार चलाने की जद्दोजहद करते-करते पहले इनके पति और फिर एक बेटे की मौत भी हो चुकी है.

कांग्रेस की 'पोस्टर लेडी'

सिर्फ पोस्टर तक सीमित रहीं बल्दी बाई

शासन प्रशासन ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चले जाने के बाद इस गांव की कोई खास सुध नहीं ली. विशेष पिछड़ी कमार जनजाति बाहुल्य इस इलाके में सरकारी सुविधाएं जैसे दम तोड़ती से नजर आती हैं. बीते सालों में कुछ सुधार जरूर हुआ है लेकिन गांव के लोगों को अब भी सरकारी योजनाओं का लाभ पूरी तरह नहीं मिल पाया है.

सिस्टम की लापरवाही ने ली बल्दी की बहू और पोते की जान

इतना महत्वपूर्ण परिवार होने के बाद भी सिस्टम की लापरवाही की वजह से परिवार की प्रसूता बहू और नवजात की जान चली गई. अभावों और परेशानियों के बीच जिंदगी जी रहे यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आज भी जद्दोजहद करनी पड़ती है. बल्दी बाई की प्रसूता बहू के साथ भी ऐसा ही हुआ. प्रसव पीड़ा होने पर इलाज के लिए 102 एंबुलेंस से मैनपुर चिकित्सालय ले जाया गया. जहां से गरियाबंद रेफर कर दिया गया. गरियाबंद में पेट में बच्चे की मौत होने की बात कहते हुए रायपुर रेफर किया गया. इसी बीच महिला को अभनपुर के एक निजी चिकित्सालय ले जाया गया.

4 से 5 बार बदले एंबुलेंस

मैनपुर की एंबुलेंस में प्रसूता को गरियाबंद छोड़ा. यहां से एक एंबुलेंस पांडुका तक लेकर गई. दूसरी एंबुलेंस राजिम लेकर पहुंची. फिर राजिम से एक एंबुलेंस अभनपुर लेकर गई. पेट में नवजात की मौत के बाद बार-बार एंबुलेंस बदलने से महिला की हालत और ज्यादा नाजुक हो गई थी. रायपुर मेकाहारा रेफर करने के बावजूद प्रसूता को अभनपुर के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया. वहां इलाज के नाम पर कुछ खानापूर्ति की गई. जहां महिला ने दम तोड़ दिया.

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शव ले जाने अस्पताल ने मांगे 25 हजार रुपये

इस परिवार पर परेशानी का सिलसिला यहीं नहीं थमा. अस्पताल में दाखिल होते समय उन्हें बताया गया था कि राशन कार्ड जमा कराने पर सरकारी खर्च में इलाज होगा लेकिन बच्चे और मां की मौत के बाद निजी अस्पताल प्रबंधन के सुर बदल गए. अस्पताल प्रशासन ने बड़ी विचित्र सी दलील देते हुए कहा कि प्रसूता अगर सुबह तक जिंदा होती तो राशन कार्ड जमा करते हुए इलाज सरकारी खर्च पर होता. लेकिन दोनों की रात को ही मौत हो गई. इसलिए अब अस्पताल का खर्च पीड़ित परिवार को देना ही पड़ेगा. तभी वे लाश ले जा सकेंगे.

कर्ज लेकर लाश छुड़ाया

बेहद गरीब परिवार होने के चलते परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे. रिश्तेदारों से संपर्क किया गया. उन्होंने भी मदद करते हुए तीन लोगों से 10-10 हजार और 5000 का कर्ज लिया और 25 हजार रुपये की व्यवस्था की. एक युवक को रुपये देकर मोटरसाइकिल से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर अभनपुर भेजा. तब जाकर मृतक की लाश परिजनों को सौंपी गई.

गांव पहुंचकर मां-बच्चे का किया अंतिम संस्कार

कर्ज लेकर लाश छुड़ाने के बाद परिजन सीधा अपने गांव पहुंचे और इसे ही अपनी नियति मानकर मृतका और नवजात का अंतिम संस्कार कर दिया.

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मामला मीडिया में आने के बाद दी सहायता

सिस्टम की लापरवाही की भेंट चढ़े इस परिवार की सुध दिन भर किसी ने नहीं ली. मामला बल्दी बाई के परिवार का होने के कारण मीडिया में सुर्खियों में आया. पूर्व मुख्यमंत्री ने मामले में ट्वीट भी किया. तब कहीं जाकर शासन प्रशासन हरकत में आया और पीड़ित परिवार को 50 हजार की आर्थिक सहायता रेड क्रॉस से दी. कर्ज लेकर अस्पताल को चुकाई गई रकम भी वापस दिलवाने की बात कही. अस्पताल ने राशि भी लौटा दी है.

स्वास्थ्य अधिकारी ने भी मानी गलती

इस संबंध में जिला चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर एन. नवरत्न ने मामले में कई स्तर पर गलती होने की बात स्वीकारी है. उन्होंने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया. अभनपुर के निजी चिकित्सालय से पैसा वापस दिलवाने सहित उन पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया.

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