नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है. पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने कहा कि दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी (Helicopter Company Pawan Hans) में 51% हिस्सेदारी की बिक्री के लिए आरक्षित मूल्य 199.92 करोड़ रुपये तय किया गया था. जबकि बोली में भाग लेने वाली कंपनियों ने क्रमशः 181.05 करोड़ व 153.15 करोड़ रुपये की बोलियां लगाईं.
सरकार की आधिकारिक वेबसाइट से प्राप्त दस्तावेजों को पेश करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने आरोप लगाया कि सरकार ने सिर्फ छह महीने पहले स्थापित एक कंपनी को कम कीमत पर 51% शेयर बेचे हैं. कहा कि मैसर्स बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड, मेसर्स महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड एसपीसी का कंसोर्टियम सिर्फ 6 महीने पहले 29 अक्टूबर 2021 को स्थापित किया गया था. मेसर्स स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड के पास अपना कोई हेलीकॉप्टर नहीं है. जबकि मेसर्स बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड के बेड़े में सिर्फ तीन हेलीकॉप्टर हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि इसके अलावा मैसर्स अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड एसपीसी की स्थापना केमैन आइलैंड्स के अधिकार क्षेत्र में की गई है. इसका इस क्षेत्र में कोई संबंध या अनुभव नहीं है. इसके अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय में मेसर्स बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स एजेन एविएशन प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक अदालती मामला चल रहा है. पवन हंस 42 हेलीकॉप्टरों के बेड़े के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी है. इसे ऑफ-शोर ऑपरेशन, दुर्गम क्षेत्रों को जोड़ने, चार्टर सेवाएं, खोज और बचाव कार्य, वीआईपी परिवहन, कॉर्पोरेट और विशेष चार्टर, इंसुलेटर की हॉटलाइन धुलाई और हेली-तीर्थयात्रा जैसी कुछ प्रमुख सेवाएं प्रदान की जाती हैं.
पवन हंस विनिवेश प्रक्रिया से पहले भारत सरकार के साथ 51% और ओएनजीसी के साथ 49% हिस्सेदारी के साथ ओएनजीसी, एचएएल और बीएसएफ को पूरा करने वाला एक बहुत ही रणनीतिक संगठन है. कंपनी 2017-18 तक लाभदायक रही लेकिन उसके बाद से वह लगातार घाटे में चल रही है. गौरव वल्लभ ने बताया कि ओएनजीसी के साथ या एक सहायक कंपनी बनाई लेकिन सरकार ने इस पर विचार नहीं किया. पवन हंस ने 2016-17 में 242.78 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया लेकिन 2018-19 से डाउनहिल हो गया है जिससे 2018-19 में 63.67 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
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कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि पवन हंस की बोली लगाने वाली सभी तीन कंपनियां कैमन आईलैंड में 6 महीने पहले ही बनाई गईं. सवाल यह है कि सरकार इस डील के लिए कैसे सहमत हो गई? वल्लभ ने इसके दस्तावेजी सबूत मीडिया के साथ भी साझा किए. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह मूल्यांकन को कम करने और किसी के लाभ के लिए बिक्री को आसान बनाने का प्रयास किया गया. क्योंकि कंपनी जो लगातार मुनाफा कमा रही थी वह अचानक 2018-19 के बाद से घाटे में जाने लगी. फिर विनिवेश को संशोधित किया गया.