वाराणसी: वाराणसी कोर्ट में मंगलवार को 22 साल पुराने मामले (Sanvasini Grih Case) में आरोपी कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला कोर्ट में पेश हुए. दरअसल, रणदीप सिंह सुरजेवाला मंडलायुक्त कार्यालय और न्यायालय पोर्टिको में प्रदर्शन और तोड़फोड़ मामले में आरोपी हैं. बता दें कि इससे पहले 31 अगस्त को सुरजेवाला अदालत में हाजिर हो चुके हैं. तब अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी किया था. उनके हाजिर होने के बाद अदालत ने गिरफ्तारी वारंट निरस्त किया. जिसके बाद सुरजेवाला ने अगली सुनवाई में अदालत में मौजूद रहने का लिखित आश्वासन दिया था. इसी मामले की आज सुनवाई हुई. इस मामले में अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी.
आपको बता दें कि चर्चित संवासिनी गृह कांड में तब कांग्रेसी नेताओं को आरोपी बनाया गया था. जिसको लेकर 21अगस्त सन् 2000 को युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे रणदीप सिंह सुरजेवाला (congress leader randeep singh surjewala) के नेतृत्व में युवा कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वयं प्रकाश गोस्वामी समेत काफी संख्या में नेता वाराणसी जिला मुख्यालय पर सभा कर रहे थे. जहां वह नारेबाजी करते हुए बेकाबू भीड़ मंडलायुक्त कार्यालय पहुंच गई. न्यायालय पोर्टिको में बवाल करने लगी. जिसके बाद सुरक्षा में लगी पुलिस फोर्स ने बवाल बढ़ता देख लाठीचार्ज किया था.
इस मामले में रणदीप सिंह सुरजेवाला, स्वयं प्रकाश गोस्वामी समेत दो दर्जन नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. इसके बाद तत्कालीन जिला जज शैलेन्द्र सक्सेना की अदालत ने 25 अगस्त सन् 2000 को जमानत अर्जी मंजूर किया था. कैंट पुलिस ने उसी वर्ष विवेचना पूरी कर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में रणदीप सिंह सुरजेवाला, स्वयं प्रकाश गोस्वामी समेत 25 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था.
गैर जमानती वारंट हुआ था जारी: आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (पंचम) की अदालत में चल रही है. अदालत में सुनवाई की अब तक लगभग 120 तिथियां पड़ चुकी हैं. जिसमें लगभग दस आरोपित ही हाजिर होते हैं. अनुपस्थित रहने वाले आरोपियों के खिलाफ अदालत ने वर्ष 2004 में वारंट जारी किया था. इसके बाद भी जब रणदीप सिंह सुरजेवाला, स्वयं प्रकाश गोस्वामी समेत अन्य आरोपित हाजिर नहीं हुए, तो अदालत ने 05 अप्रैल 2006 को सभी के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था.
बनारस में सन् 2000 में उठा था संवासिनी गृह कांड: आपको बता दें कि बनारस में 2000-01 में संवासिनी कांड हुआ था. तब संवासिनी गृह की लड़कियों ने तत्कालीन प्रोबेशन अधिकारी और संवासिनी गृह की अधीक्षिका पर लड़कियों की सप्लाई तक का आरोप लगाया था. तब कैंट थाने में मुकदमा दर्ज हुआ और तत्कालीन सीओ कैंट जीके गोस्वामी ने जांच शुरू की, जिसमें कई तथ्य सामने आए. यहां तक कि तत्कालीन डीआईजी भी जांच के घेरे में आ रहे थे. इस प्रकरण में यूपी सरकार के एक संगठन के चेयरमैन विपुल पाठक, कांग्रेस नेता आनंद मिश्र, व्यवसायी शाहिद परवेज की गिरफ्तारी हुई.
तब भी सूबे में बीजेपी की सरकार थी. एक वरिष्ठ मंत्री के बेटे का भी नाम संवासिनी कांड से जुड़ा था, लेकिन सत्ता पक्ष के दबाव में उसे दबा दिया गया. इस मामले ने तूल पकड़ा 03 जून 2000 को जब शहर युवक कांग्रेस अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव अन्नू ने मामले को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया. फिर जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालू , जो अब भाजपा से यूपी सरकार के आयुष मंत्री ने जिला व महानगर कांग्रेस के साथ आदोलन को आगे बढ़ाया.
तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सलमान खुर्शीद भी आए और अन्नू की सीबीआई जांच की मांग स्वीकार की गई. उस प्रकरण में गंगा किनारे कई नरकंकाल भी पाए गए थे, जिसके बारे में बताया गया कि वो नरकंकाल संवासिनी गृह की लड़कियों के थे. इस प्रकरण में कई आईएएस व आईपीएस के नाम भी सामने आए थे. तत्कालीन डीआईजी तो व्यवसायी शाहिद परवेज की गिरफ्तारी के बाद सारनाथ थाने धमक गए थे. हालांकि, इस आंदोलन को कांग्रेस ने पूरे दमखम से चलाया. इसके बाद पूरी कांग्रेस सीबीआई जांच की मांग पर अड़ गई.
नतीजतन शासन सीबीआई जांच के लिए राजी भी हो गया. जांच शुरू भी हुई और कई तथ्य सामने आए लेकिन, कई सफेदपोश और आला अफसरों के नाम आने के बाद सीबीआई जांच में भी लीपा-पोती कर सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा कर दिया गया. हालांकि, यह मुकदमा आज भी कायम है. जिसकी सुनवाई मंगलवार को हुई.