नई दिल्ली : पंजाब विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी राज्य में नए सिरे से शुरूआत करने की तैयारी कर रही है. पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी ने बताया कि पार्टी जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता के नामों की घोषणा करेगी. उन्होंने कहा कि इन दो प्रमुख पदों के लिए पार्टी ने संभावित नामों पर चर्चा की है, आलाकमान जल्द ही इस पर अंतिम फैसले लेगा.
2017 में 77 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में 18 विधायकों तक सिमट गई. चुनाव परिणाम की समीक्षा में यह सामने आया कि पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सार्वजनिक विवाद को मतदाताओं ने पार्टी से दूरी बना ली. दिलचस्प बात यह है कि नवजोत सिद्धू को पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की मंशा के विपरीत राज्य इकाई का प्रमुख बनाया गया था. इसके बाद अमरिंदर सिंह से बेवजह पार्टी ने इस्तीफा ले लिया.
अमरिंदर ने संकट के लिए हाईकमान को जिम्मेदार ठहराया था और विधानसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई . उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन गठबंधन को कोई खास फायदा नहीं हुआ. चुनाव में हार के बाद कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू से इस्तीफा ले लिया और पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय माकन को स्थिति की समीक्षा करने और राज्य इकाई में सुधार के तरीके सुझाने का जिम्मा सौंपा.
सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता को लेकर पार्टी में कई दौर की चर्चा हो चुकी है. सुखजिंदर सिंह रंधावा, प्रताप सिंह बाजवा, राजकुमार वेरका, अमरिंदर सिंह राजा वारिंग और परगट सिंह दावेदारों में शामिल हैं. इन दावेदारों के समर्थक पार्टी की बैठकों में शक्ति प्रदर्शन भी कर चुके हैं. एआईसीसी प्रभारी ने कहा कि एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने और संगठन को फिर से संगठित करने के लिए कांग्रेस एक नई पारी की तैयारी कर रही है. अब स्टेट यूनिट में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी. नई टीम को कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के साथ समान रूप से जुड़ना होगा. हरीश चौधरी ने कहा कि हम एक रचनात्मक विपक्ष होंगे और सरकार को याद दिलाते रहेंगे कि लोगों को धोखा न दें और अपने वादों को पूरा करें. .
बता दें कि चुनाव में हार के बाद पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने स्वीकार किया कि पंजाब में पूर्व कांग्रेस सरकार के खिलाफ मतदाताओं में व्यापक गुस्सा था. चुनाव से कुछ महीने पहले एक दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने से पार्टी को नुकसान कम करने में मदद मिली.
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