नई दिल्ली : कांग्रेस (Congress) ने राज्यसभा में 2010 में ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित करने का श्रेय शुक्रवार को लिया (Congress claims credit over womens bill). नई दिल्ली में इस संबंध में 8 क्षेत्रीय दलों के धरने का स्वागत किया और सरकार से संसद के बजट सत्र के दूसरे भाग के दौरान इसे लाने के की मांग की.
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिल पहली बार 1996 में पेश किया गया था और पिछले 27 वर्षों से लंबित है. बाद में जब यूपीए केंद्र में सत्ता में आई तब यूपीए अध्यक्ष और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार को राज्यसभा में विधेयक पारित करने के लिए दबाव डाला.
कांग्रेस प्रवक्ता अलका लांबा ने कहा, '9 मार्च, 2010 को जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए केंद्र में सत्ता में थी, हमने अपने सहयोगियों की मदद से राज्य सभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया. लेकिन लोकसभा में बहुमत नहीं होने के कारण बिल पास नहीं हो सका.'
उन्होंने कहा कि 'लोकसभा में बिल है. लोकसभा में बीजेपी सरकार के पास बहुमत है. उन्होंने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी इस बिल का जिक्र किया था. हम मांग करते हैं कि केंद्र को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और बजट सत्र के दूसरे भाग में विधेयक पेश करना चाहिए. सरकार को बिल पास कर महिलाओं को उनका हक दिलाना चाहिए.'
दिल्ली के जंतर-मंतर पर बिल को लेकर विरोध के बीच कांग्रेस की प्रतिक्रिया आई, जिसे BRS, SP, CPI-M और CPI, अकाली दल, TMC और JD-U और RJD जैसे दलों का समर्थन प्राप्त है. विपक्षी दल 13 मार्च से 6 अप्रैल तक होने वाले बजट सत्र के दूसरे भाग में विधेयक लाने की मांग कर रहे हैं.
संसद के ऊपरी सदन के माध्यम से बिल लाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली कांग्रेस सभी को इस तथ्य की याद दिलाना चाहती थी और विपक्षी एकता की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहती थी.
लांबा ने कहा कि 'हम उन राज्य दलों का स्वागत करते हैं जो नई दिल्ली आए हैं और केंद्र से सवाल पूछ रहे हैं.' गुरुवार को बीआरएस नेता के. कविता ने संसद के ऊपरी सदन में बिल का समर्थन करने के लिए कांग्रेस की पूर्व प्रमुख सोनिया गांधी की प्रशंसा की थी. तकनीकी रूप से विधेयक को संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक, 2008 कहा जाता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई आरक्षित करना चाहता है.
आरक्षित सीटों का आवंटन बिल के अनुसार संसद के निर्धारित प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा. विधेयक के अनुसार, लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की कुल संख्या का एक तिहाई उन समूहों की महिलाओं के लिए आरक्षित होगा. इसके अलावा, आरक्षित सीटों को किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में बारी-बारी से आवंटित किया जा सकता है.
विधेयक के अनुसार संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा. इस मुद्दे को सभी पार्टियों में महिला सांसदों का व्यापक समर्थन मिला है, लेकिन योग्यता के मुद्दे, उपयुक्त उम्मीदवारों की कमी और पार्टियों द्वारा टिकट आवंटन में समान आरक्षण की आवश्यकता जैसे मामले में अटकी हुई थी.