कोयंबटूर: अनाइकट्टी में आदिवासी महिलाओं ने निर्यात के लिए इको-फ्रेंडली टेराकोटा चाय के कप बनाए हैं. मिट्टी के मिश्रण से लेकर अंतिम पैकेजिंग तक टेराकोटा चाय के प्याले बनाने की पूरी जिम्मेदारी इन्हीं महिलाओं ने ली. कई लोकप्रिय विनिर्माण कारखानों और उद्योगों को निर्यात में अपने उत्पादों को बेचने के लिए विभिन्न विज्ञापन रणनीतियों का इस्तेमाल किया गया था.
लेकिन तमिलनाडु में कोयंबटूर की कुछ आदिवासी महिलाएं बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तनों को निर्यात व्यवसाय कर रही हैं. उन्होंने अपने मिट्टी के बर्तनों को अपने पूरे श्रम से बनाया और एक ऐसे स्थान से एक चैरिटी संगठन के माध्यम से विदेशों में भेजा. अनाइकट्टी, कोयंबटूर के पास 'दया सेवा सदन' नामक एक चैरिटी संगठन में काम करने वाली एक आदिवासी महिला टीम इस काम में जुटी है.
वे टेराकोटा चाय के कप, प्लेट, हाथ से बुने हुए आसनों, हर्बल शहद और जैम का निर्माण और बिक्री कर रही हैं. ये आदिवासी महिलाएं पानापल्ली और कोंडनूर गांवों में रहती हैं. सुंदरराजन 2012 से आदिवासियों के लिए इस संगठन को चला रहे हैं. सुंदरराजन ने कहा, 'हम आदिवासी लोगों की आजीविका में सुधार के लिए विभिन्न हस्तशिल्प बना रहे हैं. यह केंद्र 30 से अधिक आदिवासी महिलाओं की आजीविका के रूप में कार्य कर रहा है.
उन्होंने कहा,'हम केले के रेशे से सूत लेकर योगा मैट बनाते हैं. इसके अलावा बैग और कपड़े बनाते हैं. हम टेराकोटा मिट्टी से विभिन्न वस्तुएं बनाते हैं. हम आयुर्वेद उत्पाद के रूप में अल्कोहल फ्री सैनिटाइजर बना रहे हैं. हम विभिन्न प्रकार के साबुन का निर्माण करते हैं. हम बच्चों के लिए आंवले का जैम और कटहल का जैम बनाते और बेचते हैं.
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वर्तमान में हमारे मिट्टी के चाय के कप कतर को निर्यात किए जा रहे हैं. इन महिलाओं ने निर्यात के लिए दस हजार इको-फ्रेंडली टेराकोटा टी कप तैयार किए.इस बारे में वहां काम करने वाली एक आदिवासी महिला ने कहा, 'एक कप चाय बनाना एक चुनौतीपूर्ण काम है. इसे विदेशों में निर्यात किया जाता है क्योंकि यह जोश और पूरे ध्यान के साथ तैयार किया जाता है. हमारे हस्तनिर्मित उत्पादों को विदेशों में जाते हुए देखकर खुशी होती है.