हैदराबाद: मोदी मंत्रिमंडल विस्तार का हो चुका है. चुनावी और जातिगत गणित बिठाने के साथ सहयोगियों को भी साथ लेने की कोशिश की गई. लेकिन बिहार में अपने दो सहयोगियों जेडीयू और एलजेपी को जिस तरह से एक-एक मंत्रिपद दिया गया है उसमें सिर्फ और सिर्फ बीजेपी की जीत नजर आ रही है. इस मंत्रिमंडल विस्तार में नीतीश कुमार के चहेते और चिराग पासवान के चाचा को एंट्री तो मिल गई है लेकिन नुकसान नीतीश और चिराग का ही हुआ है.
6 सांसद और 16 सांसदों का गणित
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. इनमें से सबसे ज्यादा 17 सीटें बीजेपी के पास हैं. जबकि मौजूदा दौर में एनडीए की सहयोगी जेडीयू के 16 और एलजेपी के 6 सांसद हैं. अब सवाल है कि 6 सांसदों वाली एलजेपी को भी मोदी मंत्रिमंडल में सिर्फ एक मंत्री पद मिला है और 16 सांसदों वाली जेडीयू को भी. इस लिहाज से नुकसान किसका हुआ है साफ नजर आ रहा है.
चाचा मंत्री बने तो चिराग को समझ जाना चाहिए
एलजेपी में चाचा-भतीजे की तकरार जगजाहिर है. चिराग पासवान को छोड़कर बाकी सांसदों का समर्थन चिराग के चाचा पशुपति पारस के साथ है. दोनों खुद को पार्टी का असली अध्यक्ष बता रहे हैं लेकिन मोदी मंत्रिमंडल में पशुपति पारस को जगह मिलने के बाद साफ हो गया है कि सियासी बयार किस तरफ बह रही है.
वैसे ये सब तब हुआ जब चिराग खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे हैं. पीएम मोदी के लिए नीतीश के खिलाफ बयानबाजी करते रहे. यहां तक कि विधानसभा चुनाव में सिर्फ जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे. जब 5 सांसदों के समर्थन से चाचा पार्टी अध्यक्ष बन गए तो भी पीएम मोदी से मदद की गुहार भी लगाई और मंत्रिमंडल विस्तार से पहले चाचा पशुपति पारस को मंत्री ना बनाने की गुजारिश भी की. लेकिन कुछ काम नहीं आया क्योंकि ये सियासत है यहां सब जायज है.
अब चाचा मंत्री बन गए हैं तो भतीजे चिराग को समझ जाना चाहिए कि पारस के नेतृ्त्व वाली एलजेपी को बीजेपी ने अपने साथ बिठाया है क्योंकि पारस के साथ चिराग को छोड़कर बाकी सभी सांसद हैं. और चिराग फिलहाल अकेले हाथ मलते रह गए हैं.
नीतीश ने मांगे 3 मंत्री, मिला एक
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार से पहले केंद्र में 3 मंत्रिपद मांगे थे. एलजेपी के 6 सांसदों के मुकाबले 16 सांसदों वाली जेडीयू की ये मांग एक तरह से जायज भी थी लेकिन मोदी मंत्रिमंडल में जेडीयू की कोटे से सिर्फ नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह को ही जगह मिली. जिसपर बिहार में विपक्षी दल आरजेडी ने नीतीश पर चुटकी लेते हुए कहा है कि जेडीयू ने घुटने टेककर मोदी मंत्रिमंडल में एक पद पर राजी हो गई है.
दोनों एक ही नाव के सवार लेकिन नीतीश की जीत, चिराग की हार
16 सांसद होने के बावजूद जेडीयू के कोटे से सिर्फ एक सांसद को मंत्रीपद मिला है और एलजेपी के कोटे से चिराग के चाचा को पशुपति पारस को मंत्रीपद मिला है. ऐसे में देखे तो नीतीश और चिराग दोनों एक ही नाव के सवार लगते हैं लेकिन यहां नीतीश कुमार ने कुछ हारा है तो उनके बदले की भी जीत हुई है लेकिन चिराग पासवान खाली हाथ हैं क्योंकि उन्हें हर मोर्चे पर मुंह की खानी पड़ी है.
चिराग पासवान नीतीश कुमार के धुर विरोधी रहे हैं, उनके खिलाफ लगातार बयानबाजी करते रहे हैं. कहा जा रहा है कि चिराग को चित करने के लिए नीतीश ने पहले पशुपति पारस को बागी बनाकर एलजेपी पर हक दिलवाया और केंद्रीय कैबिनेट में पशुपति पारस की एंट्री पुख्ता होने पर जेडीयू के 3 मंत्री बनाने की जिद भी छोड़ दी. इस तरह नीतीश ने चिराग को डबल झटका दिया और चिराग पासवान चाचा से लेकर पार्टी और नीतीश कुमार से लेकर बीजेपी तक हर मोर्चे पर हार गए.
बीजेपी का फायदा ही फायदा
उधर इस पूरी कहानी में फायदा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को हुआ है. उन्हें बिना चिराग पासवान के एलजेपी का समर्थन भी मिल गया और नीतीश-चिराग के बदले की जंग में जेडीयू को एक मंत्रीपद पर झुकाने का मौका भी. वैसे बीजेपी अपने 2019 के फॉर्मूले पर ही टिकी रही, जिसमें वो जेडीयू को एक मंत्री पद दे रही थी.
बात नीतीश कुमार की करें, तो ये वही नीतीश हैं जो सिर्फ एक मंत्रीपद मिलने की वजह से 2019 में मोदी मंत्रिपरिषद में रहना कुबूल नहीं किया था हालांकि सरकार को समर्थन देते रहे. मजबूरी देखिये 2020 में पहले बीजेपी के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा और अब 16 सांसद होने के बावजूद उसी एक मंत्रीपद से संतोष करना पड़ा है, जिसे दो साल पहले छोड़ा था.
उधर हमेशा पीएम मोदी का गुणगान और बीजेपी के साथ होने की बात कहने वाले चिराग पासवान इस वक्त सिर्फ हाथ मलते रह गए हैं. इस मंत्रिमंडल विस्तार ने फिर बताया है कि सियासत में कोई सगा या पराया नहीं होता बल्कि सियासत में सिर्फ फायदा देखा जाता है. इसलिये सियासत में सब जायज़ है.
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