भरतपुर. विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा को मिली बंपर जीत के बाद भरतपुर के 'लाल' भजनलाल शर्मा प्रदेश के नए मुखिया का पदभार संभालेंगे. शुक्रवार (15 दिसंबर) को नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सीएम पद व गोपनीयता की शपथ लेंगे. प्रदेश में भाजपा सरकार बनने और भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब पूर्वी राजस्थान की 3.50 करोड़ जनता के मन में एक नई उम्मीद की किरण जगी है. वर्षों से अटकी पड़ी 13 जिलों की महत्वपूर्ण योजना ईआरसीपी के लिए नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा 'भगीरथ' साबित हो सकते हैं. अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और केंद्र में भाजपा है. ऐसे में अब ईआरसीपी योजना को हरी झंडी मिलने की पूरी संभावना है.
नए मुख्यमंत्री कर सकते हैं गतिरोध दूर: वरिष्ठ पत्रकार राजेश वशिष्ठ ने कहा कि वसुंधरा के समय तैयार की गई ईआरसीपी योजना को गहलोत सरकार अमली जामा नहीं पहना सकी. केंद्र भी योजना में कई कमियां बताता रहा था. इधर कांग्रेस इस योजना की देरी का ठीकरा केंद्र पर फोड़ती रही थी, लेकिन अब राजस्थान में भाजपा सरकार बनने जा रही है. राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में भरतपुर के ही भजनलाल शर्मा शपथ ग्रहण करने वाले हैं. उधर मध्य प्रदेश और केंद्र में भी भाजपा है. ऐसे नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अब मध्य प्रदेश और केंद्र से तालमेल बैठाकर ईआरसीपी योजना के गतिरोध दूर कर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा सकते हैं.
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क्या है ईआरसीपी: असल में पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों को सिंचाई, उद्योग और पेयजल उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2017 में वसुंधरा सरकार ने ईआरसीपी योजना तैयार की. योजना तैयार कर इसे जांच और अनुमति के लिए भारत सरकार को भेजा गया, लेकिन अगस्त 2018 में केंद्रीय जल आयोग ने जरूरी संशोधनों के लिए इसे वापस राज्य सरकार को भेज दिया था. उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सरकार के अन्य मंत्रियों का कहना था कि इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए, लेकिन जरूरी संशोधन नहीं होने की वजह से इस योजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं किया गया.
5 नदियों का पानी 2051 तक: पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) का उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान की चंबल, कुन्नू, पार्वती, काली सिंध और उसकी सहायक नदियों के बरसात के पानी को इकट्ठा करना है. इन नदियों के बरसाती जल को पूर्वी राजस्थान की बनास, बाणगंगा, मोरेल, गंभीर और पार्वती नदियों में पहुंचाया जाएगा. योजना का उद्देश्य है कि वर्ष 2051 तक इन नदियों के पानी का उपयोग राजस्थान के 13 पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी जिलों की पेयजल, औद्योगिक और कृषि की जरूरत को पूरा किया जाएगा.
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13 जिलों की 3.50 करोड़ जनता प्रभावित: इस योजना से प्रदेश के भरतपुर, सवाई माधोपुर, करौली, अलवर, दौसा, धौलपुर, झालावाड़, बारां,कोटा, बूंदी, अजमेर, टोंक और जयपुर जिलों को पानी मिलेगा. इस योजना के तहत 13 जिलों के 3.50 करोड़ लोगों को पीने के पानी के साथ ही 2 लाख हेक्टेयर नया सिंचाई क्षेत्र सृजित करना और 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को स्थिरीकरण प्रदान करने की योजना थी. साथ ही उद्योगों को भी पानी उपलब्ध कराया जाता.
अब तक इतना खर्च: पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में इस योजना पर 1000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे, जबकि गहलोत सरकार के समय में 700 करोड़ रुपए खर्च हो चुके. साथ ही गहलोत सरकार ने 13,800 करोड़ के कार्य कराने की घोषणा भी की थी.
तो प्रदेश को सिर्फ 40% खर्चा करना पड़ता: वर्ष 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समय ईआरसीपी की 40,000 करोड़ रुपए की डीपीआर तैयार की गई थी. यदि इस योजना को 75 प्रतिशत डिपेंडेबिलिटी पर तैयार किया जाता, तो राजस्थान सरकार को सिर्फ 40% यानी 16 हजार करोड़ रुपए ही खर्च करने होते. योजना के तहत राजस्थान को 2800 एमसीएम पानी मिलना था, लेकिन भाजपा सरकार चली गई और कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में यह योजना कई राजनीतिक और तकनीकी कारणों से आगे नहीं बढ़ पाई.
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भाजपा के ये थे आरोप: विधानसभा चुनाव 2023 से पहले भरतपुर दौरे के दौरान केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस योजना को लेकर गहलोत सरकार पर लापरवाही के आरोप लगाए थे. उनका कहना था कि ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के लिए गहलोत सरकार की तरफ से कई जरूरी कार्य नहीं किए गए. उन्होंने गहलोत सरकार पर आरोप लगाया था कि ना तो परियोजना के लिए तकनीकी स्वीकृति ली गई, ना एनवायरमेंट क्लीयरेंस, ना इन्वेस्टमेंट क्लीयरेंस लिया और ना ही वाइल्डलाइफ क्लीयरेंस लिया. राजस्थान सरकार ने पहला चरण ही पूरा नहीं किया.
कांग्रेस नेताओं ने लगाए थे ये आरोप: ईआरसीपी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के तमाम नेता भाजपा पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे. अशोक गहलोत का आरोप था कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री खुद राजस्थान के रहने वाले हैं, फिर भी ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करवा पाए. पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत का कहना था कि 6 फरवरी 2020 से 27 जनवरी 2021 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 6 बार पत्र भेजकर इस योजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का आग्रह किया गया. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.