नई दिल्ली : जलवायु परिवर्तन भारत में मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश को कहीं अधिक प्रभावित कर रहा है. इससे देश की एक अरब से अधिक की आबादी, अर्थव्यवस्था, खाद्य प्रणाली और कृषि क्षेेत्र के भी गंभीर रूप से प्रभावित होने की आशंका है. एक अध्ययन में यह दावा किया गया है.
अर्थ सिस्टम डायनैमिक्स जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है, जिसमें दुनिया भर से 30 से अधिक जलवायु प्रारूपों की तुलना की गई है.
मॉनसून की बारिश बढ़ने की आशंका
अध्ययन की मुख्य लेखक एवं जर्मनी स्थित पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) की एंजा काटाजेनबर्जर ने कहा, हमने इस बारे में मजबूत साक्ष्य पाए हैं कि प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से मॉनसून की बारिश के करीब पांच प्रतिशत बढ़ने की आशंका होगी.
21वीं सदी में मॉनसून की गतिशीलता प्रभावित
उन्होंने कहा, यहां हम पहले के अध्ययनों की भी पुष्टि कर सकते हैं, लेकिन यह पाते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग मॉनसून की बारिश को पहले से सोची गई रफ्तार से कहीं अधिक तेजी से बढ़ा रही है. यह (ग्लोबल वार्मिंग) 21वीं सदी में मॉनसून की गतिशीलता को काफी प्रभावित कर रही है.
अनावश्यक बारिश से नुकसान
अध्ययनकर्ताओं ने इस बात का जिक्र किया कि भारत और इसके पड़ोसी देशों में अनावश्यक रूप से ज्यादा बारिश कृषि के लिए अच्छी चीज नहीं है.
ज्यादा बारिश होने से पौधे को नुकसान
जर्मनी की लुडविंग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी से अध्ययन की सह लेखक जूलिया पोंग्रात्ज ने कहा, फसलों को शुरुआत में आवश्यक रूप से पानी की जरूरत होती है, लेकिन बहुत ज्यादा बारिश होने से पौधे को नुकसान हो सकता है, इनमें धान की फसल भी शामिल है, जिस पर भरण-पोषण के लिए भारत की बड़ी आबादी निर्भर करती है.
ज्यादा बारिश के लिए इंसान जिम्मेदार
उन्होंने कहा, यह भारतीय अर्थव्यवस्था और खाद्य प्रणाली को मॉनसून की पद्धतियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती है. अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक अतीत पर गौर करने से यह पता चलता है कि मानव गतिविधियां बारिश की मात्रा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं.
ग्रीन हाउस गैसों से मॉनसून प्रभावित
उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत 1950 के दशक में ही हो गई थी. हालांकि, 1980 के बाद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन ने मॉनसून को अव्यवस्थित करने में बड़ी भूमिका निभाई.
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नीति निर्माताओं के लिए खतरे की घंटी
सह लेखक एवं पीआईके और अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एंडर्स लीवरमैन ने कहा, मॉनसून की अवधि के कहीं अधिक अस्त-व्यस्त रहने से भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि और अर्थव्यवस्था को एक खतरा पैदा हो गया है. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में अत्यधिक कमी लाने को लेकर यह नीति निर्माताओं के लिए खतरे की एक घंटी है.