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Corbett Tiger Story: सल्तनत गंवा रहे बूढ़े बाघों का इंसानों में आतंक, कॉर्बेट में टाइगर की वर्चस्व की जंग

इतिहास में सत्ता पाने की जंग के दौरान राजाओं के आपसी संघर्ष के यूं तो कई किस्से मौजूद हैं, लेकिन कॉर्बेट में सल्तनत की लड़ाई के लिए खूनी संघर्ष आज भी चल रहा है. बात उन खूंखार बाघों की हो रही है जो एक इलाके पर अपना पूरा वर्चस्व चाहते हैं. इनकी वजह से आज इंसानी बस्तियां खौफ के साए में हैं.

Corbett Tiger Story
कॉर्बेट बूढ़े टाइगर
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Published : Jul 1, 2023, 12:48 PM IST

Updated : Jul 1, 2023, 4:28 PM IST

सल्तनत गंवा रहे बूढ़े बाघों का इंसानों में आतंक

देहरादून: ताकतवर और युवा बाघ जिन बूढ़े और कमजोर हो गए बाघों को उनकी सल्तनत से बेदखल करते हैं, वो इलाका छोड़ इंसानी बस्तियों की तरफ रुख कर रहे हैं. दरअसल जंगल का एक ही कानून है, जो ताकतवर है वही राज करेगा. जंगल के इसी कानून के तहत कॉर्बेट के जंगलों में ताकतवर और खूंखार बाघों के बीच घमासान मचा हुआ है.

सल्तनत गई तो शिकार भी बदला: एक छोटे से क्षेत्र में बाघों की संख्या इतनी अधिक हो चुकी है, कि आज कॉर्बेट टाइगर रिजर्व पार्क देश में बाघों की संख्या के लिहाज से सबसे अधिक घनत्व वाला क्षेत्र है. यानी यहां एक निश्चित क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाघ पाए जाते हैं. यह बात वन्य जीव संरक्षण के लिहाज से खुशी देने वाली तो है, लेकिन उससे ज्यादा चिंता पैदा करने वाली भी. ऐसा इसलिए क्योंकि बाघ ऐसा वन्य जीव है, जो अकेले रहना और शिकार करना पसंद करता है. इस बीच कोई प्रतिद्वंदी उसके सामने आ जाएं तो आपसी संघर्ष का खूनी होना तय है. कॉर्बेट में भी कुछ ऐसी ही स्थिति दिखाई दे रही है.

Corbett Tiger Story
वन्य जीव संघर्ष के हैं कई कारण

यहां काम करता है जंगल का कानून: स्थिति यह है कि कॉर्बेट में खुद के सर्वाइवल के लिए अक्सर टाइगर आमने सामने आ जाते हैं. फिर वही होता है जो जंगल का कानून कहता है. या तो आपसी संघर्ष में कमजोर और बूढ़ा बाघ अपनी जान खो देता है. या उसे जंगल छोड़कर दूसरी जगह शरण लेनी पड़ती है. फिलहाल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ऐसे ही संघर्ष के दौरान बूढ़े और कमजोर हो चुके बाघ जंगल से बाहर होने को मजबूर हैं. इन स्थितियों में कई बार वह इंसानी बस्तियों के पास पहुंच जाते हैं. सबसे पहले जानिए कॉर्बेट की क्षेत्रीय स्थिति क्या है.
ये भी पढ़ें: Global Tiger Day 2023: इस बार कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मनाया जाएगा विश्व बाघ दिवस, यहीं लॉन्च हुआ था प्रोजेक्ट टाइगर

जानिए कॉर्बेट नेशनल पार्क का गणित
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व 1288.32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है
करीब 821.99 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कोर जोन में शामिल है
466.32 वर्ग किलोमीटर बफर जोन में माना जाता है
बाघों की संख्या के लिहाज से कॉर्बेट हाई केयरिंग कैपेसिटी में पहुंचा
एक बाघिन को तकरीबन 50 वर्ग किलोमीटर तो बाघ को 150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की होती है जरूरत
बाघों की बढ़ती संख्या के लिहाज से कॉर्बेट में पर्याप्त जगह नहीं है

इंसानों पर बाघों के हमले बढ़े: वैसे तो बाघों के आपसी संघर्ष के उदाहरण कॉर्बेट के अलावा कई दूसरे जगह पर भी दिखाई देते हैं. लेकिन कम जगह पर बेहद ज्यादा बाघ होने के कारण कॉर्बेट में इसकी संभावना सबसे ज्यादा है. बड़ी बात यह है कि बाघों के आपसी संघर्ष के दौरान बूढ़े और कमजोर बाघों को युवा और ताकतवर बाघ जंगलों से बाहर कर देते हैं. इस हालात में बाघ कई बार इंसानी बस्तियों की तरफ जाने को मजबूर हो जाते हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति कॉर्बेट में भी कुछ मामलों में दिखाई देती है. खास बात यह है कि पिछले कुछ समय में बाघों के हमले इंसानों पर बढ़े हैं. इसके पीछे इसे भी एक वजह माना जा रहा है.
ये भी पढ़ें: चिंताजनक! उत्तराखंड में बाघ की मौत के बाद खुला राज, पहली बार इस वजह से हुई किसी बाघ की डेथ

ऐसा नहीं है कि वन विभाग इस बात से अनभिज्ञ है. इन हालातों को देखते हुए ही शायद वन विभाग ने कॉर्बेट समेत कुछ दूसरे क्षेत्रों में भी वन्यजीवों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करने के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को जिम्मेदारी दी है. यह बात वन विभाग के अफसर भी मानते हैं कि पिछले कुछ समय में बाघों के हमले इंसानों पर बढ़े हैं. इसमें लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ रही है. विभाग के अफसरों के इस कुबूलनामे के बीच आंकड़े क्या कहते हैं यह भी देखिए.

बाघ और मानव संघर्ष
उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद अब तक बाघ के हमलों में कुल 69 लोग मारे गए
साल 2000 से 2021 तक 48 लोगों के बाघ के हमले में मरने की खबर है
2022 में सबसे ज्यादा 16 लोगों को बाघ ने मौत के घाट उतारा था
साल 2023 में अब तक 5 लोगों की बाघ के हमले में मौत हो चुकी है
इस तरह 21 साल में 48 के मुकाबले पिछले डेढ़ साल में 21 लोग मारे जा चुके हैं
राज्य में अब तक 34 से ज्यादा बाघों को पिंजरे में बंद करने या मारने की अनुमति दी जा चुकी है

उत्तराखंड में बढ़े 200 बाघ: देश में हाल ही में बाघों की संख्या को लेकर आंकड़ा जारी किया गया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाघों की संख्या बढ़ने पर खुशी जताते हुए आंकड़ा जारी किया था. नए आंकड़े में उत्तराखंड और आसपास के क्षेत्रों में करीब 200 बाघों के बढ़ने की खबर है. लेकिन कॉर्बेट नेशनल पार्क के आसपास जिस तरह बाघों के हमले बढ़ने के आंकड़े आए हैं, वह चिंताजनक है. हालांकि कॉर्बेट में बाघों की बढ़ती संख्या के बीच कुछ बाघों को राजाजी में भी शिफ्ट किया जा चुका है. आगे भी शिफ्ट करने की तैयारी है.

Corbett Tiger Story
कॉर्बेट में बढ़ा मानव वन्य जीव संघर्ष

जानकार देते हैं ये सलाह: जानकार ऐसे हालातों में नए पार्क या सेंचुरी तैयार करने की भी सलाह देते हैं. कॉर्बेट में हाल ही में बाघों के आपसी संघर्ष में एक बाघ के जान गंवाने की बात भी सामने आई थी. बहरहाल इन सभी स्थितियों के बीच भारत सरकार के महानिदेशक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सीपी गोयल फिलहाल बाघों की मौजूदा स्थिति को लेकर संतोष व्यक्त करते हैं. गोयल बताते हैं कि वन विभाग बेहतर प्रयास कर रहा है. इसीलिए बाघों की संख्या बढ़ रही है. हालांकि आपकी संघर्ष को लेकर भी प्रयास किए जाने की बात कही जा रही है.
ये भी पढ़ें: बाघों की कब्रगाह बना उत्तराखंड! 5 महीने में 13 टाइगर की मौत, कॉर्बेट में पांच ने गंवाई जान

बाघ और गुलदार दोनों चुनौती: उत्तराखंड में जिस तरह बाघों के हमले बढ़ने के आंकड़े सामने आए हैं, उसने वन विभाग के सामने गुलदार के बाद एक नई चुनौती खड़ी होने का इशारा कर दिया है. बड़ी बात यह है कि कुमाऊं क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाघों के मरने की भी जानकारी आ रही है. ऐसे में इन हालातों ने कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के बढ़ते दबाव की चिंता को और भी बढ़ा दिया है.

सल्तनत गंवा रहे बूढ़े बाघों का इंसानों में आतंक

देहरादून: ताकतवर और युवा बाघ जिन बूढ़े और कमजोर हो गए बाघों को उनकी सल्तनत से बेदखल करते हैं, वो इलाका छोड़ इंसानी बस्तियों की तरफ रुख कर रहे हैं. दरअसल जंगल का एक ही कानून है, जो ताकतवर है वही राज करेगा. जंगल के इसी कानून के तहत कॉर्बेट के जंगलों में ताकतवर और खूंखार बाघों के बीच घमासान मचा हुआ है.

सल्तनत गई तो शिकार भी बदला: एक छोटे से क्षेत्र में बाघों की संख्या इतनी अधिक हो चुकी है, कि आज कॉर्बेट टाइगर रिजर्व पार्क देश में बाघों की संख्या के लिहाज से सबसे अधिक घनत्व वाला क्षेत्र है. यानी यहां एक निश्चित क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाघ पाए जाते हैं. यह बात वन्य जीव संरक्षण के लिहाज से खुशी देने वाली तो है, लेकिन उससे ज्यादा चिंता पैदा करने वाली भी. ऐसा इसलिए क्योंकि बाघ ऐसा वन्य जीव है, जो अकेले रहना और शिकार करना पसंद करता है. इस बीच कोई प्रतिद्वंदी उसके सामने आ जाएं तो आपसी संघर्ष का खूनी होना तय है. कॉर्बेट में भी कुछ ऐसी ही स्थिति दिखाई दे रही है.

Corbett Tiger Story
वन्य जीव संघर्ष के हैं कई कारण

यहां काम करता है जंगल का कानून: स्थिति यह है कि कॉर्बेट में खुद के सर्वाइवल के लिए अक्सर टाइगर आमने सामने आ जाते हैं. फिर वही होता है जो जंगल का कानून कहता है. या तो आपसी संघर्ष में कमजोर और बूढ़ा बाघ अपनी जान खो देता है. या उसे जंगल छोड़कर दूसरी जगह शरण लेनी पड़ती है. फिलहाल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ऐसे ही संघर्ष के दौरान बूढ़े और कमजोर हो चुके बाघ जंगल से बाहर होने को मजबूर हैं. इन स्थितियों में कई बार वह इंसानी बस्तियों के पास पहुंच जाते हैं. सबसे पहले जानिए कॉर्बेट की क्षेत्रीय स्थिति क्या है.
ये भी पढ़ें: Global Tiger Day 2023: इस बार कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मनाया जाएगा विश्व बाघ दिवस, यहीं लॉन्च हुआ था प्रोजेक्ट टाइगर

जानिए कॉर्बेट नेशनल पार्क का गणित
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व 1288.32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है
करीब 821.99 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कोर जोन में शामिल है
466.32 वर्ग किलोमीटर बफर जोन में माना जाता है
बाघों की संख्या के लिहाज से कॉर्बेट हाई केयरिंग कैपेसिटी में पहुंचा
एक बाघिन को तकरीबन 50 वर्ग किलोमीटर तो बाघ को 150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की होती है जरूरत
बाघों की बढ़ती संख्या के लिहाज से कॉर्बेट में पर्याप्त जगह नहीं है

इंसानों पर बाघों के हमले बढ़े: वैसे तो बाघों के आपसी संघर्ष के उदाहरण कॉर्बेट के अलावा कई दूसरे जगह पर भी दिखाई देते हैं. लेकिन कम जगह पर बेहद ज्यादा बाघ होने के कारण कॉर्बेट में इसकी संभावना सबसे ज्यादा है. बड़ी बात यह है कि बाघों के आपसी संघर्ष के दौरान बूढ़े और कमजोर बाघों को युवा और ताकतवर बाघ जंगलों से बाहर कर देते हैं. इस हालात में बाघ कई बार इंसानी बस्तियों की तरफ जाने को मजबूर हो जाते हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति कॉर्बेट में भी कुछ मामलों में दिखाई देती है. खास बात यह है कि पिछले कुछ समय में बाघों के हमले इंसानों पर बढ़े हैं. इसके पीछे इसे भी एक वजह माना जा रहा है.
ये भी पढ़ें: चिंताजनक! उत्तराखंड में बाघ की मौत के बाद खुला राज, पहली बार इस वजह से हुई किसी बाघ की डेथ

ऐसा नहीं है कि वन विभाग इस बात से अनभिज्ञ है. इन हालातों को देखते हुए ही शायद वन विभाग ने कॉर्बेट समेत कुछ दूसरे क्षेत्रों में भी वन्यजीवों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करने के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को जिम्मेदारी दी है. यह बात वन विभाग के अफसर भी मानते हैं कि पिछले कुछ समय में बाघों के हमले इंसानों पर बढ़े हैं. इसमें लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ रही है. विभाग के अफसरों के इस कुबूलनामे के बीच आंकड़े क्या कहते हैं यह भी देखिए.

बाघ और मानव संघर्ष
उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद अब तक बाघ के हमलों में कुल 69 लोग मारे गए
साल 2000 से 2021 तक 48 लोगों के बाघ के हमले में मरने की खबर है
2022 में सबसे ज्यादा 16 लोगों को बाघ ने मौत के घाट उतारा था
साल 2023 में अब तक 5 लोगों की बाघ के हमले में मौत हो चुकी है
इस तरह 21 साल में 48 के मुकाबले पिछले डेढ़ साल में 21 लोग मारे जा चुके हैं
राज्य में अब तक 34 से ज्यादा बाघों को पिंजरे में बंद करने या मारने की अनुमति दी जा चुकी है

उत्तराखंड में बढ़े 200 बाघ: देश में हाल ही में बाघों की संख्या को लेकर आंकड़ा जारी किया गया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाघों की संख्या बढ़ने पर खुशी जताते हुए आंकड़ा जारी किया था. नए आंकड़े में उत्तराखंड और आसपास के क्षेत्रों में करीब 200 बाघों के बढ़ने की खबर है. लेकिन कॉर्बेट नेशनल पार्क के आसपास जिस तरह बाघों के हमले बढ़ने के आंकड़े आए हैं, वह चिंताजनक है. हालांकि कॉर्बेट में बाघों की बढ़ती संख्या के बीच कुछ बाघों को राजाजी में भी शिफ्ट किया जा चुका है. आगे भी शिफ्ट करने की तैयारी है.

Corbett Tiger Story
कॉर्बेट में बढ़ा मानव वन्य जीव संघर्ष

जानकार देते हैं ये सलाह: जानकार ऐसे हालातों में नए पार्क या सेंचुरी तैयार करने की भी सलाह देते हैं. कॉर्बेट में हाल ही में बाघों के आपसी संघर्ष में एक बाघ के जान गंवाने की बात भी सामने आई थी. बहरहाल इन सभी स्थितियों के बीच भारत सरकार के महानिदेशक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सीपी गोयल फिलहाल बाघों की मौजूदा स्थिति को लेकर संतोष व्यक्त करते हैं. गोयल बताते हैं कि वन विभाग बेहतर प्रयास कर रहा है. इसीलिए बाघों की संख्या बढ़ रही है. हालांकि आपकी संघर्ष को लेकर भी प्रयास किए जाने की बात कही जा रही है.
ये भी पढ़ें: बाघों की कब्रगाह बना उत्तराखंड! 5 महीने में 13 टाइगर की मौत, कॉर्बेट में पांच ने गंवाई जान

बाघ और गुलदार दोनों चुनौती: उत्तराखंड में जिस तरह बाघों के हमले बढ़ने के आंकड़े सामने आए हैं, उसने वन विभाग के सामने गुलदार के बाद एक नई चुनौती खड़ी होने का इशारा कर दिया है. बड़ी बात यह है कि कुमाऊं क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाघों के मरने की भी जानकारी आ रही है. ऐसे में इन हालातों ने कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के बढ़ते दबाव की चिंता को और भी बढ़ा दिया है.

Last Updated : Jul 1, 2023, 4:28 PM IST
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