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एम्स का दावा, नीरी से पहले विकसित की 'सेलाइन गार्गल आरटी पीसीआर विधि'

एम्स ने नीरी (NEERI) के कोविड सैंपल की जांच के लिए 'सेलाइन गार्गल आरटी पीसीआर विधि' विकसित करने के दावा को खारिज कर दिया है. एम्स ने दावा किया है कि उसने एक साल पहले ही कोविड सैंपल की जांच के लिए इस तरह की तकनीक विकसित की थी, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय से स्वीकृति नहीं मिली.

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन
एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन
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Published : May 31, 2021, 10:22 PM IST

नई दिल्ली : नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) ने हाल ही में कोविड सैंपल की जांच के लिए 'सेलाइन गार्गल आरटी पीसीआर विधि' विकसित करने का दावा किया था. अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शोधकर्ताओं और डॉक्टरों ने एक साल पहले यह तकनीक विकसित करने का दावा किया है. उनका कहा कि उन्होंने एक साल पहले इसी तरह की 'गार्गल लैवेज तकनीक' विकासित की थी और इसका प्रस्ताव केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को दिया था, लेकिन स्वीकृति नहीं मिली.

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अमनदीप सिंह ने कहा कि एम्स के डॉक्टरों ने एक साल पहले गार्गल लैवेज तकनीक का विकास किया था और इसका प्रस्ताव दिया था, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन और आईसीएमआर से कोई स्वीकृति नहीं मिली थी.

उन्होंने कहा कि यह गलत है कि एनईईआरआई उचित श्रेय दिए बिना इसे विकसित करने का दावा कर रहा है. एम्स के युवा रेजिडेंट डॉक्टरों को तकनीक का श्रेय दिया जाना चाहिए.

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने दावा किया कि उनके शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के निदान के लिए 'गार्गल सेलाइन वाटर' के रूप में नमूने एकत्र करने की पहली उपलब्धि हासिल की थी. यह जांचने के लिए कि यह काम करता है या नहीं, इसके लिए ऐसे 50 रोगियों के नाक के स्वाब और 'गार्गल सेलाइन वाटर' लिए गए थे, जो कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे.

  • #IndiaFightsCorona

    📍Saline Gargle RT-PCR Method

    ➡️Innovative Patient-Friendly Saline Gargle RT-PCR Testing Method, developed by NEERI Nagpur

    ☑️Saline Gargle, No Swab, Simple, Fast, Economical

    ☑️Get Result within 3 Hours, Suitable for Rural and Tribal Areas

    1/3 pic.twitter.com/IxwpYTJtoI

    — #IndiaFightsCorona (@COVIDNewsByMIB) May 28, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

डॉ. अमनदीप सिंह ने बताया कि नाक के स्वाब और 'गार्गल सेलाइन वाटर' से 100 प्रतिशत समान परिणाम मिलते हैं. यहां तक ​​कि दोनों विधि से प्राप्त नमूनों में भी वायरल लोड लगभग समान था. हालांकि, कोविड-19 के लिए भारत की परीक्षण रणनीति में क्रांति लाने की क्षमता होने के बावजूद इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया.

गौरतलब है कि पिछले साल जून में एम्स की टीम ने आईसीएमआर को शोध पत्र पेश किया था. इनपुट के आधार पर, शोधकर्ताओं के इसी समूह ने विस्तारित अवधि के लिए सामान्य खारा (Normal Saline) में वायरल आनुवंशिक सामग्री की स्थिरता का मूल्यांकन करने के लिए एक और अध्ययन शुरू किया. इसके बाद एम्स ने अक्टूबर 2020 में एक फॉलो-अप रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया था.

इस नई विधि में एक व्यक्ति को मुंह में पांच मिलीलीटर खारा पानी लेना है और 30 सेकंड के लिए गरारे करना है. फिर इसे कीप की मदद से एक ट्यूब में वापस थूकना है. सेलाइन-गार्गल का उपयोग यह जांचने के लिए किया जा सकता है कि व्यक्ति कोविड -19 से संक्रमित है या नहीं.

डॉ. हर्षवर्धन ने बताया गेम चेंजर
गौर करने वाली बात यह है कि एनईईआरआई वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के तहत संचालित होता है. एनईईआरआई द्वारा 'गार्गल मेथड' की खोज के बाद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इसे गेम चेंजर करार दिया है.

यह भी पढ़ें- आरटी-पीसीआर : टेस्टिंग आसान, नीरी ने विकसित किया नया तरीका

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है, 'एनईईआरआई द्वारा विकसित 'सेलाइन गार्गल आरटी पीसीआर टेस्ट' देश में कोविड-19 परीक्षण को आसान बनाने के साथ जांच की गति को बढ़ाएगा. यह स्वाब मुक्त, गैर-आक्रामक परीक्षण तंत्र एक गेम चेंजर साबित हो सकता है.'

नीरी की सफाई- दोनों शोध में अंतर
एनईईआरआई (नीरी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि एम्स और नीरी द्वारा किए गए शोध में बड़ा अंतर है. उन्होंने कहा कि नीरी तकनीक एक आरएनए निष्कर्षण किट के उपयोग को खत्म करने के लिए एक हीटिंग विधि का उपयोग करती है, जबकि एम्स विधि में आरएनए निष्कर्षण किट की आवश्यकता होती है.

उन्होंने दावा किया है कि नीरी की सेलाइन गार्गल तकनीक को फॉस्फेट बफर्ड सेलाइन (पीबीएस) का उपयोग करके विकसित किया गया है.

नई दिल्ली : नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई) ने हाल ही में कोविड सैंपल की जांच के लिए 'सेलाइन गार्गल आरटी पीसीआर विधि' विकसित करने का दावा किया था. अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शोधकर्ताओं और डॉक्टरों ने एक साल पहले यह तकनीक विकसित करने का दावा किया है. उनका कहा कि उन्होंने एक साल पहले इसी तरह की 'गार्गल लैवेज तकनीक' विकासित की थी और इसका प्रस्ताव केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को दिया था, लेकिन स्वीकृति नहीं मिली.

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अमनदीप सिंह ने कहा कि एम्स के डॉक्टरों ने एक साल पहले गार्गल लैवेज तकनीक का विकास किया था और इसका प्रस्ताव दिया था, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन और आईसीएमआर से कोई स्वीकृति नहीं मिली थी.

उन्होंने कहा कि यह गलत है कि एनईईआरआई उचित श्रेय दिए बिना इसे विकसित करने का दावा कर रहा है. एम्स के युवा रेजिडेंट डॉक्टरों को तकनीक का श्रेय दिया जाना चाहिए.

एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने दावा किया कि उनके शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के निदान के लिए 'गार्गल सेलाइन वाटर' के रूप में नमूने एकत्र करने की पहली उपलब्धि हासिल की थी. यह जांचने के लिए कि यह काम करता है या नहीं, इसके लिए ऐसे 50 रोगियों के नाक के स्वाब और 'गार्गल सेलाइन वाटर' लिए गए थे, जो कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे.

  • #IndiaFightsCorona

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    — #IndiaFightsCorona (@COVIDNewsByMIB) May 28, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

डॉ. अमनदीप सिंह ने बताया कि नाक के स्वाब और 'गार्गल सेलाइन वाटर' से 100 प्रतिशत समान परिणाम मिलते हैं. यहां तक ​​कि दोनों विधि से प्राप्त नमूनों में भी वायरल लोड लगभग समान था. हालांकि, कोविड-19 के लिए भारत की परीक्षण रणनीति में क्रांति लाने की क्षमता होने के बावजूद इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया.

गौरतलब है कि पिछले साल जून में एम्स की टीम ने आईसीएमआर को शोध पत्र पेश किया था. इनपुट के आधार पर, शोधकर्ताओं के इसी समूह ने विस्तारित अवधि के लिए सामान्य खारा (Normal Saline) में वायरल आनुवंशिक सामग्री की स्थिरता का मूल्यांकन करने के लिए एक और अध्ययन शुरू किया. इसके बाद एम्स ने अक्टूबर 2020 में एक फॉलो-अप रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया था.

इस नई विधि में एक व्यक्ति को मुंह में पांच मिलीलीटर खारा पानी लेना है और 30 सेकंड के लिए गरारे करना है. फिर इसे कीप की मदद से एक ट्यूब में वापस थूकना है. सेलाइन-गार्गल का उपयोग यह जांचने के लिए किया जा सकता है कि व्यक्ति कोविड -19 से संक्रमित है या नहीं.

डॉ. हर्षवर्धन ने बताया गेम चेंजर
गौर करने वाली बात यह है कि एनईईआरआई वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के तहत संचालित होता है. एनईईआरआई द्वारा 'गार्गल मेथड' की खोज के बाद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इसे गेम चेंजर करार दिया है.

यह भी पढ़ें- आरटी-पीसीआर : टेस्टिंग आसान, नीरी ने विकसित किया नया तरीका

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है, 'एनईईआरआई द्वारा विकसित 'सेलाइन गार्गल आरटी पीसीआर टेस्ट' देश में कोविड-19 परीक्षण को आसान बनाने के साथ जांच की गति को बढ़ाएगा. यह स्वाब मुक्त, गैर-आक्रामक परीक्षण तंत्र एक गेम चेंजर साबित हो सकता है.'

नीरी की सफाई- दोनों शोध में अंतर
एनईईआरआई (नीरी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कृष्णा खैरनार ने कहा कि एम्स और नीरी द्वारा किए गए शोध में बड़ा अंतर है. उन्होंने कहा कि नीरी तकनीक एक आरएनए निष्कर्षण किट के उपयोग को खत्म करने के लिए एक हीटिंग विधि का उपयोग करती है, जबकि एम्स विधि में आरएनए निष्कर्षण किट की आवश्यकता होती है.

उन्होंने दावा किया है कि नीरी की सेलाइन गार्गल तकनीक को फॉस्फेट बफर्ड सेलाइन (पीबीएस) का उपयोग करके विकसित किया गया है.

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