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राजनीतिक दलों पर सीआईसी के फैसले का इस्तेमाल न्यायालय का आदेश लेने के लिए नहीं हो सकता: केंद्र - सूचना का अधिकार

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाने के लिए अदालत से रिट मांगने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 25, 2023, 5:45 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले का इस्तेमाल शीर्ष अदालत से आदेश लेने के लिए नहीं किया जा सकता. दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ये दलील दी.

इन याचिकाओं में राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. मेहता ने पीठ से कहा कि सीआईसी के आदेश का इस्तेमाल राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के लिए आदेश (आधिकारिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए सरकार को एक न्यायिक आदेश) मांगने के संदर्भ के तौर पर नहीं किया जा सकता है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की तरफ से पेश वकील पीवी दिनेश ने कहा कि पार्टी को वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के संबंध में आरटीआई पर कोई आपत्ति नहीं है.

माकपा के वकील ने कहा कि लेकिन (आरटीआई के तहत) यह अनुरोध नहीं किया जा सकता है कि किसी उम्मीदवार का चयन क्यों किया गया...ना ही किसी पार्टी की निर्णय लेने की आंतरिक प्रक्रिया पर विवरण मांगा जा सकता है.

एक याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सीआईसी ने 2013 में एक आदेश पारित किया था कि राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से कर संबंधी छूट और भूमि जैसे लाभ प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाया जाना चाहिए.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मामले को देखने वाले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी यात्रा पर हैं जिसके कारण वह उपलब्ध नहीं हैं. इसके बाद पीठ ने एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई एक अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाने के अनुरोध वाली दो जनहित याचिकाओं से चुनावी बॉण्ड योजना, 2018 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को अलग कर दिया था. उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने से वे जवाबदेह बनेंगे और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाने में मदद मिलेगी.

याचिका में केंद्र को भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकरण के खतरे से निपटने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है. याचिका में कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित करें, ताकि उन्हें पारदर्शी और लोगों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सके और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाया जा सके.

जनहित याचिका में निर्वाचन आयोग को आरटीआई अधिनियम और राजनीतिक दलों से संबंधित अन्य कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने और उनका पालन करने में विफल रहने पर पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के फैसले का इस्तेमाल शीर्ष अदालत से आदेश लेने के लिए नहीं किया जा सकता. दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ये दलील दी.

इन याचिकाओं में राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. मेहता ने पीठ से कहा कि सीआईसी के आदेश का इस्तेमाल राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने के लिए आदेश (आधिकारिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए सरकार को एक न्यायिक आदेश) मांगने के संदर्भ के तौर पर नहीं किया जा सकता है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की तरफ से पेश वकील पीवी दिनेश ने कहा कि पार्टी को वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के संबंध में आरटीआई पर कोई आपत्ति नहीं है.

माकपा के वकील ने कहा कि लेकिन (आरटीआई के तहत) यह अनुरोध नहीं किया जा सकता है कि किसी उम्मीदवार का चयन क्यों किया गया...ना ही किसी पार्टी की निर्णय लेने की आंतरिक प्रक्रिया पर विवरण मांगा जा सकता है.

एक याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सीआईसी ने 2013 में एक आदेश पारित किया था कि राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से कर संबंधी छूट और भूमि जैसे लाभ प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाया जाना चाहिए.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मामले को देखने वाले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी यात्रा पर हैं जिसके कारण वह उपलब्ध नहीं हैं. इसके बाद पीठ ने एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई एक अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाने के अनुरोध वाली दो जनहित याचिकाओं से चुनावी बॉण्ड योजना, 2018 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को अलग कर दिया था. उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने से वे जवाबदेह बनेंगे और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाने में मदद मिलेगी.

याचिका में केंद्र को भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकरण के खतरे से निपटने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है. याचिका में कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित करें, ताकि उन्हें पारदर्शी और लोगों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सके और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाया जा सके.

जनहित याचिका में निर्वाचन आयोग को आरटीआई अधिनियम और राजनीतिक दलों से संबंधित अन्य कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने और उनका पालन करने में विफल रहने पर पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.

(पीटीआई-भाषा)

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