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G20 meet: जी20 बैठक में शामिल नहीं हुआ चीन, विशेषज्ञ ने कहा- यह अपेक्षित है क्योंकि वह अरुणाचल प्रदेश पर आपत्ति जताता है

अरुणाचल प्रदेश में आयोजित की गई जी20 बैठक में चीन शामिल नहीं हुआ. इसको लेकर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज जेएनयू के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा कि चीन से यही उम्मीद थी, क्योंकि उसके द्वारा अरुणाचल प्रदेश को अपने देश का हिस्सा बताया जाता है. पढ़िए ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट...

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Published : Mar 27, 2023, 5:32 PM IST

G20 meet
जी20 बैठक

नई दिल्ली: भारत के उत्तरपूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश में आयोजित जी20 बैठक में चीन ने भाग लिया. बता दें कि चीन के द्वारा अरुणाचल प्रदेश को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा किया जाता रहा है. हालांकि इस मामले पर विदेश मंत्रालय के साथ-साथ चीन की तरफ से भी अभी तक कोई टिप्पणी नहीं आई है. इस संबंध में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज जेएनयू के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा कि चीन से यही अपेक्षित है क्योंकि उसने अरुणाचल प्रदेश से संबंधित किसी भी चीज पर आपत्ति जताई थी. हालांकि भारत ने अक्साई चीन या अन्य विवादित क्षेत्रों में जाने पर आपत्ति नहीं जताई थी.

भारत वर्तमान में जी20 समूह का अध्यक्ष है और इस साल सितंबर में दिल्ली में होने वाले मुख्य जी20 शिखर सम्मेलन की तैयारी में जुटा है. इसी क्रम में वर्तमान में देश के 50 अलग-अलग शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. इसी कड़ी में अरुणाचल प्रदेश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 'रिसर्च इनोवेशन इनिशिएटिव, गैदरिंग' विषय पर बैठक आयोजित की गई थी. कोंडापल्ली ने कहा कि गलवान के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होने तक भारत की सीमाओं पर शांति है. हालांकि भारत और चीन के बीच संबंध अबतक के दशकों से सबसे निचले स्तर पर हैं और गलवान घाटी में झड़प के बाद और भी खराब हो गए हैं. यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि पूर्वी लद्दाख में चल रहे सीमा संघर्ष के बीच, भारतीय और चीन के सैनिक पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भी भिड़ गए थे.

इस बीच, दो अमेरिकी सीनेटरों ने भारत-चीन संबंधों पर अमेरिकी रुख को दोहराते हुए कांग्रेस के ऊपरी कक्ष में एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया है और कहा कि मैकमोहन रेखा को अरुणाचल प्रदेश में दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देता है. इसके अलावा यह प्रस्ताव भारत की स्पष्ट और सुसंगत स्थिति को स्वीकार करता है कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे चीन दक्षिण तिब्बत होने का दावा करता है, भारत का अभिन्न अंग है.

बता दें कि मैकमोहन रेखा पूर्वी क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सीमा के रूप में कार्य करती है. मैकमोहन रेखा विशेष रूप से तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की सीमा है, जैसा कि 1914 के शिमला सम्मेलन के हिस्से के रूप में दिल्ली में 24-25 मार्च 1914 को संबंधित पूर्णाधिकारियों द्वारा आदान-प्रदान किए गए मानचित्रों और नोटों में सहमति थी. हालांकि वैश्विक संदर्भ में प्रत्येक उच्च स्तरीय बैठक में चीन की चुनौती सबसे अधिक चर्चित बिंदुओं में से एक है. हाल ही में, भारत की अध्यक्षता में इस साल मार्च में नई दिल्ली में हुई जी20 विदेश मंत्री की बैठक बिना किसी संयुक्त विज्ञप्ति के समाप्त हुई थी लेकिन पश्चिम और रूस-चीन संयुक्त के बीच मतभेदों और विभाजन के बीच केवल एक अध्यक्ष का सारांश और परिणाम ही एकमात्र दस्तावेज था. वहीं अन्य देशों को छोड़कर चीन और रूस यूक्रेन संघर्ष पर जी20 के बयान को लेकर सहमत नहीं थे. इसी तरह इस साल फरवरी में हुई वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गर्वनरों की जी20 बैठक बिना किसी विज्ञप्ति के खत्म हो गई थी.

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि चीन के द्वारा भारत की जी20 अध्यक्षता में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है. इस सवाल के जवाब में कि क्या यूक्रेन संघर्ष को लेकर पश्चिम और रूस-चीन के बीच विभाजन से भारत का जी20 प्रभावित हो रहा है, कोंडापल्ली ने कहा, 'हां, यह 18 बनाम 2 है! विदेश मंत्री की हालिया घोषणा उसी पैटर्न के अनुसार थी. पिछले हफ्ते रूस-चीन का संयुक्त बयान भी इसी ओर इशारा करता है.'

गौरतलब है कि बीते पिछले सप्ताह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मॉस्को में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की थी. इस दौरान शी ने अपनी यात्रा के दौरान जोर देकर कहा कि चीन रूस के साथ संयुक्त राष्ट्र के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा के लिए काम करना जारी रखेगा. वहीं रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी चीन के विकास पथ की प्रशंसा की और चीन के साथ अपने मजबूत बंधन को दोहराया था.

ये भी पढ़ें - Next Round of G20 Meetings : जी20 के अगले दौर की बैठकें 27 मार्च से गुजरात में होगी

नई दिल्ली: भारत के उत्तरपूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश में आयोजित जी20 बैठक में चीन ने भाग लिया. बता दें कि चीन के द्वारा अरुणाचल प्रदेश को अपने क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा किया जाता रहा है. हालांकि इस मामले पर विदेश मंत्रालय के साथ-साथ चीन की तरफ से भी अभी तक कोई टिप्पणी नहीं आई है. इस संबंध में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज जेएनयू के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा कि चीन से यही अपेक्षित है क्योंकि उसने अरुणाचल प्रदेश से संबंधित किसी भी चीज पर आपत्ति जताई थी. हालांकि भारत ने अक्साई चीन या अन्य विवादित क्षेत्रों में जाने पर आपत्ति नहीं जताई थी.

भारत वर्तमान में जी20 समूह का अध्यक्ष है और इस साल सितंबर में दिल्ली में होने वाले मुख्य जी20 शिखर सम्मेलन की तैयारी में जुटा है. इसी क्रम में वर्तमान में देश के 50 अलग-अलग शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. इसी कड़ी में अरुणाचल प्रदेश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 'रिसर्च इनोवेशन इनिशिएटिव, गैदरिंग' विषय पर बैठक आयोजित की गई थी. कोंडापल्ली ने कहा कि गलवान के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होने तक भारत की सीमाओं पर शांति है. हालांकि भारत और चीन के बीच संबंध अबतक के दशकों से सबसे निचले स्तर पर हैं और गलवान घाटी में झड़प के बाद और भी खराब हो गए हैं. यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि पूर्वी लद्दाख में चल रहे सीमा संघर्ष के बीच, भारतीय और चीन के सैनिक पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भी भिड़ गए थे.

इस बीच, दो अमेरिकी सीनेटरों ने भारत-चीन संबंधों पर अमेरिकी रुख को दोहराते हुए कांग्रेस के ऊपरी कक्ष में एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया है और कहा कि मैकमोहन रेखा को अरुणाचल प्रदेश में दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देता है. इसके अलावा यह प्रस्ताव भारत की स्पष्ट और सुसंगत स्थिति को स्वीकार करता है कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे चीन दक्षिण तिब्बत होने का दावा करता है, भारत का अभिन्न अंग है.

बता दें कि मैकमोहन रेखा पूर्वी क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सीमा के रूप में कार्य करती है. मैकमोहन रेखा विशेष रूप से तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की सीमा है, जैसा कि 1914 के शिमला सम्मेलन के हिस्से के रूप में दिल्ली में 24-25 मार्च 1914 को संबंधित पूर्णाधिकारियों द्वारा आदान-प्रदान किए गए मानचित्रों और नोटों में सहमति थी. हालांकि वैश्विक संदर्भ में प्रत्येक उच्च स्तरीय बैठक में चीन की चुनौती सबसे अधिक चर्चित बिंदुओं में से एक है. हाल ही में, भारत की अध्यक्षता में इस साल मार्च में नई दिल्ली में हुई जी20 विदेश मंत्री की बैठक बिना किसी संयुक्त विज्ञप्ति के समाप्त हुई थी लेकिन पश्चिम और रूस-चीन संयुक्त के बीच मतभेदों और विभाजन के बीच केवल एक अध्यक्ष का सारांश और परिणाम ही एकमात्र दस्तावेज था. वहीं अन्य देशों को छोड़कर चीन और रूस यूक्रेन संघर्ष पर जी20 के बयान को लेकर सहमत नहीं थे. इसी तरह इस साल फरवरी में हुई वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गर्वनरों की जी20 बैठक बिना किसी विज्ञप्ति के खत्म हो गई थी.

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि चीन के द्वारा भारत की जी20 अध्यक्षता में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है. इस सवाल के जवाब में कि क्या यूक्रेन संघर्ष को लेकर पश्चिम और रूस-चीन के बीच विभाजन से भारत का जी20 प्रभावित हो रहा है, कोंडापल्ली ने कहा, 'हां, यह 18 बनाम 2 है! विदेश मंत्री की हालिया घोषणा उसी पैटर्न के अनुसार थी. पिछले हफ्ते रूस-चीन का संयुक्त बयान भी इसी ओर इशारा करता है.'

गौरतलब है कि बीते पिछले सप्ताह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मॉस्को में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की थी. इस दौरान शी ने अपनी यात्रा के दौरान जोर देकर कहा कि चीन रूस के साथ संयुक्त राष्ट्र के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा के लिए काम करना जारी रखेगा. वहीं रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी चीन के विकास पथ की प्रशंसा की और चीन के साथ अपने मजबूत बंधन को दोहराया था.

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